पापा ने खेल को छुड़वाया तो दादी ने थामा दिए बाक्सिंग ग्लव्स, पढ़ें मानसी तरार की प्रेरणादायी कहानी
कहावत है कि कि किसी व्यक्ति को तिल जितना सहारा मिल जाए तो वह ताड़ जैसी सफलता हासिल कर सकता है। ऐसी ही एक कहानी शामली के सिलावर गांव में रहने वाली बॉक्सर मानसी तरार की है। जहां पुराने समय के लोग घर की बेटियों को छोटी उम्र में ब्याह देते थे वहीं एक दादी ने अपनी पोती को ग्लव्स थमाकर समाज में मिसाल पेश की है।
अंकुर त्रिपाठी,ग्रेटर नोएडा। कहावत है कि कि किसी व्यक्ति को तिल जितना सहारा मिल जाए तो वह ताड़ जैसी सफलता हासिल कर सकता है। ऐसी ही एक कहानी शामली के सिलावर गांव में रहने वाली बॉक्सर मानसी तरार की है, जिनकी कामयाबी में दादी ने अहम भूमिका निभाई है।
जहां पुराने समय के लोग घर की बेटियों को छोटी उम्र में ब्याह देते थे वहीं एक दादी ने अपनी पोती को ग्लव्स थमाकर समाज में मिसाल पेश की है। दादी के थमाए ग्लव्स ने मानसी की पूरी जिदंगी ही बदल डाली।
यूपी पुलिस में सेवाएं दे रहीं मानसी
मेरठ में मानसी उत्तर प्रदेश पुलिस में अपनी सेवाएं दे रही हैं। मानसी ने बताया कि यदि उनकी दादी उनका साथ उस समय नहीं देती जब उनके पिता ने खेल छुड़वा दिया था तो वह आज प्रदेश की सुरक्षा की पहरेदारी नहीं कर पाती।दादी ने सारी पुरानी परंपरा तोड़ कर उन्हें आगे बढ़ाया। उन्होंने बताया कि उनके पिता को लोग तंज कसते थे कि बेटी को बॉक्सिंग क्यों खेलने देते हो।
बॉक्सिंग के पंच से उसका चेहरा खराब हो जाएगा फिर कोई शादी करने के लिए तैयार नहीं होगा। वह लोगों की बातों में आ गए और उन्होंने खेल छु़ड़वा दिया,लेकिन दादी ने पापा से चुपचाप खेलने के लिए प्रेरणा दी। वर्तमान में पिता दादी के फैसले पर नाज करते हैं।
चोट लगने के बाद फिर से की वापसी
गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय में चल रही सातवीं महिला राष्ट्रीय बॉक्सिंग चैंपियनशिप में उत्तरप्रदेश की टीम का हिस्सा मानसी ने बताया कि बॉक्सिंग के दौरान पर चोट लगाने के बाद घायल हो गई थी।
कई साल बाद रिंग में वापसी करने पर उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ा,लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।स्कूल के समय से ही बॉक्सिंग ग्लव्स को थाम लिया था। कई जिला स्तरीय से लेकर राष्ट्रीय पदक अपने नाम किए। वर्तमान में अब वह लोग अपनी बेटियों को इस खेल में आगे बढ़ा रहे है। जो कभी पापा से मेरे लिए मना करते थे।
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