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निठारी कांड : दो साल में गायब हुए थे 44 बच्चे, गांव में खोली गई थी मिसिंग सेल; हर रोज दर्ज होते थे 40 से 50 मामले

निठारी कांड के दौरान पुलिस पर लापरवाही के आरोप यूं ही नहीं थे। महज दो वर्षों में 44 नाबालिक बच्चे लापता हुए थे। इनमें से महज 12 ही स्वजन की मदद से बरामद हो पाए थे। तीन बच्चों के मारे जाने की पुष्टि हुई थी। कंकाल कांड का पर्दाफाश होने के बाद चार जनवरी 2007 को गांव में मिसिंग सेल खोली गई थी।

By Gaurav SharmaEdited By: Shyamji TiwariUpdated: Tue, 17 Oct 2023 09:41 PM (IST)
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दो साल में गायब हुए थे 44 बच्चे, गांव में खोली गई थी मिसिंग सेल

गौरव भारद्वाज, नोएडा। निठारी कांड के दौरान पुलिस पर लापरवाही के आरोप यूं ही नहीं थे। कोतवाली सेक्टर-20 क्षेत्र से महज दो वर्षों में 44 नाबालिक बच्चे लापता हुए थे। इनमें से महज 12 ही स्वजन की मदद से बरामद हो पाए थे। तीन बच्चों के मारे जाने की पुष्टि हुई थी।

2007 में गांव में खोली गई थी मिसिंग सेल

कंकाल कांड का पर्दाफाश होने के बाद चार जनवरी 2007 को गांव में मिसिंग सेल खोली गई थी। जिसमें लापता हुए बच्चों की जानकारी दर्ज की जा रही थी। ताकि खाेदाई के दौरान मिले कंकालों से उनका मिलान किया जा सके।

मिसिंग सेल में नोएडा में रहने वाले लोगों में पीड़ित स्वजन के अलावा दिल्ली, हरियाणा, मेरठ, अलीगढ़, गाजियाबाद, बुलंदशहर, बागपत समेत कई अन्य जिलों के लोगों ने 600 से अधिक बच्चों के लापता होने की सूचनाएं दर्ज कराई थीं। हाथ में बच्चों के फोटो, हुलिया, गुमशुदगी की तारीख, परिस्थितियां, गुम होने से पहले पहने हुए कपड़ों के रंग आदि की जानकारी पुलिस को दी गई थी।

हर रोज आते थे 40-50 मामले

गुमशुदगी की सूचना देने वाले अभिभावकों में सबसे ज्यादा दिल्ली के थे। मिसिंग सेल में रोजाना 40 से 50 मामले दर्ज किए जा रहे थे। यह मिसिंग सेल लापता बच्चों के स्वजन की शिकायत पर गौर करने के लिए तत्कालीन एसएसपी के निर्देश पर खोली गई थी।

एनसीआर में गुम बच्चों की सीबीआई ने की थी जांच

निठारी कांड को आधार बनाकर सीबीआई ने पूरे एनसीआर से गायब हुए बच्चों की पड़ताल शुरू कर दी थी। इस मकसद से सीबीआई की टीम विभिन्न शहरों व कस्बों में पहुंची थी। आलम यह था कि एनसीआर के दायरे में आने वाले उत्तर प्रदेश के जिलों से गायब बच्चों का कोई रिकॉर्ड तक उपलब्ध नहीं था, जिसे सीबीआई ने काफी गंभीरता से लिया था।

वहीं, दूसरी ओर उत्तर प्रदेश पुलिस की जांच प्रक्रिया में खामियां गिनाते हुए सीबीआइ ने डीएनए टेस्ट के नमूनों को भी खारिज कर दिया था। केस से जुड़ी गुत्थियों को सुलझाने के लिए सीबीआई कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहती थी। बच्चों की नृशंस हत्या के अति महत्वपूर्ण मामले को सुलझाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर के एक दर्जन जासूसों को सीबीआई ने उस समय बुलाया था।

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कंप्यूटर और इंटरनेट से बच्चों के प्रति बढ़ते अपराधों पर चर्चा के बहाने सीबीआई ने एक उच्चस्तरीय कार्यशाला भी आयोजित की थी, जिसमें दुनिया के जाने-माने खुफिया जांच विशेषज्ञों को बुलाया गया था। चार दिनों की इस कार्यशाला में यूरोप, अफ्रीका और एशियाई देशों के कुल 65 विशेषज्ञों ने भाग लिया था। इनमें संयुक्त राज्य अमेरिका के वाशिंगटन स्थित इंटरनेशनल सेंटर फार मिसिंग एंड एक्सप्लायटेड चिल्ड्रेन ने भी हिस्सा लिया था।

2005 से 2006 में ये बच्चे और व्यस्क हुए थे लापता

पायल (5), पायल (28), ज्योति (10), हर्ष (4), रचना (5), आरती (7), पुष्पा (10), सतेंद्र उर्फ मैक्स (5), निशा (11), दीपाली (12), पिंकी (19), मधु (20), नंदा देवी, अल्ला देवी, शेख रजा (9), सोनी (3), सुबोध (12), नीतू कुमारी (14), आकाश (14), रिंकू (16), रोशनी (4), सविता (15), सुनील (16), अनिता (18), भीम बहादुर (28), अमित कुमार, अजेय (14), शिरोमणि (18), गंगा सिंह (10), मनीषा (12), नरेंद्र (14), विकास (5) को पुलिस खोज नहीं पाई थी।

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इन बच्चों की हुई थी बरामदगी

लक्ष्मी, दीपू, पायल, पूजा, शिवम और उसका मित्र, सरला, जस्सी, रजनीश, सन्नी गुप्ता, कुमारी नेहा, दिलशाद थे। वहीं रिंपा, डिंपल और राखी की मौत की पुष्टि हुई थी।