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निठारी कांड में CBI की जांच पर इलाहाबाद HC ने जताई निराशा, कहा- मानव अंगों के व्यापार को भी साबित नहीं कर पाई एजेंसी

नोएडा में निठारी गांव के 17 वर्ष पुराने जिस जघन्य कांड ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था उसके अभियुक्तों मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली को सजा दिलाने में अभियोजन नाकामयाब रहा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को दोनों को निर्दोष करार देते हुए सीबीआई कोर्ट गाजियाबाद द्वारा सुनाई गई फांसी की सजा को रद्द कर दिया है।

By Jagran NewsEdited By: GeetarjunUpdated: Tue, 17 Oct 2023 12:12 AM (IST)
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मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली (फाइल फोटो)।
जागरण संवाददाता, प्रयागराज/नोएडा। नोएडा में निठारी गांव के 17 वर्ष पुराने जिस जघन्य कांड ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था, उसके अभियुक्तों मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली को सजा दिलाने में अभियोजन नाकामयाब रहा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को दोनों को निर्दोष करार देते हुए सीबीआई कोर्ट गाजियाबाद द्वारा सुनाई गई फांसी की सजा को रद्द कर दिया है।

सीबीआई कोर्ट ने पंढेर को दो और कोली को 12 मामलों में फांसी की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने कहा है कि यदि किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हों तो दोनों अभियुक्तों को रिहा किया जाए। हाईकोर्ट ने 2010 से 2023 तक चली 134 सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया गया है।

न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति एसएचए रिजवी की खंडपीठ ने फैसला 14 सितंबर को सुरक्षित कर लिया था। सीबीआई के अधिवक्ता का कहना है कि निर्णय का अध्ययन करने के बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की जा सकती है।

यह फैसला इस वजह से ऐतिहासिक कहा जा रहा है कि एक साथ 12 अपराधों में मिली फांसी की सजा हाईकोर्ट ने संभवत: पहली बार रद्द की है। बता दें, सीबीआइ कोर्ट के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में 28 मई, 2010 को चुनौती दी गई थी।

कोर्ट ने कहा- जांच से हम निराश

कोर्ट ने कहा, अभियोजन संदेह से परे अपराध साबित करने में नाकाम साबित रहा है। जो परिस्थितिजन्य साक्ष्य पेश किए गए हैं, वह दुष्कर्म व हत्या का दोषी करार देने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। जिस तरह जांच की गई है, उससे हम निराश हैं। अभियोजन केवल कोली के जुर्म कुबूलने के इकबालिया बयान पर ही केंद्रित है, जो अन्य साक्ष्यों से समर्थित नहीं है।

कंकाल बरामदगी में जो निर्धारित कानूनी प्रक्रिया है, वह नहीं अपनाई गई। उसे पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया। गिरफ्तारी, बरामदगी और इकबालिया बयान में महत्वपूर्ण बिंदु गायब हैं।

अभियुक्त की न मेडिकल जांच कराई गई, ना ही बयान दर्ज करते समय उसे विधिक सहायता उपलब्ध कराई गई। अभियोजन, मानव अंग व्यापार में कोली की संलप्तितता भी शामिल करने में विफल रहा है।

बच्चों, युवतियों की हत्याएं अमानवीय

308 पृष्ठ के अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि बच्चों और युवतियों की हत्याएं अत्यंत अमानवीय हैं, किंतु इतने मात्र से किसी अभियुक्त को निष्पक्ष ट्रायल के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। यह उसका मौलिक अधिकार है।

एकमात्र स्वतंत्र चश्मदीद गवाह पप्पूलाल ने कहा है कि वह मौके पर कंकाल बरामदगी के बाद पहुंचा। अभियोजन इस सवाल का जवाब नहीं दे सका है कि पुलिस ने 60 दिन तक अपनी अभिरक्षा में कोली को क्यों रखा? उसे बयान के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष एक मार्च, 2007 को क्यों नहीं पेश किया गया? पुलिस ने यातनाएं दीं इसलिए उसके द्वारा जुर्म कुबूलने का बयान धारा 164 के तहत मान्य नहीं है। उसे सच नहीं माना जा सकता।

19 मामले दर्ज किए थे सीबीआई ने

सीबीआई ने 2007 में सुरेंद्र कोली के खिलाफ 19 मुकदमे दर्ज किए थे। तीन मामलों में साक्ष्यों के अभाव में शुरुआत में ही क्लोजर रिपोर्ट लगा दी गई। बचे 16 मामलों में से तीन में कोली पहले ही बरी हो गया था। एक रिंपा हलदर मामले में हाईकोर्ट ने उसकी फांसी की सजा आजीवन कारावास में बदल दी थी। 12 मामलों में उसे सोमवार को बरी कर दिया गया।

सुरेंद्र कोली के मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर के खिलाफ छह मामले थे। इनमें से तीन में वह सत्र न्यायालय से पहले ही बरी हो चुका है। एक मामले में 2009 में हाईकोर्ट ने बरी कर दिया था। शेष दो मामलों में उसे हाईकोर्ट ने सोमवार को बरी कर दिया गया।

इस समय सुरेंद्र कोली गाजियाबाद व पंढेर नोएडा की जेल में हैं। पंढेर सभी मामलों में अब बरी हो चुका है, इसलिए उसके जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो गया, लेकिन कोली को आजीवन कारावास की सजा भुगतनी पड़ेगी।

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  • 28 मई, 2010 को हाईकोर्ट में फांसी की सजा को दी गई थी चुनौती।
  • छह जनवरी, 2015 को हाईकोर्ट में पहली बार हुई सुनवाई।
  • 12 मामलों में सुरेंद्र कोली को सुनाई गई थी सजा।
  • 16 अक्टूबर, 2023 को सुनाया गया निर्णय।

इन बिंदुओं पर अभियोजन फेल

  • कंकाल बरामदगी में निर्धारित कानूनी प्रक्रिया नहीं अपनाई गई।
  • गिरफ्तारी, बरामदगी व इकबालिया बयान में महत्वपूर्ण बिंदु गायब।
  • अभियुक्त की मेडिकल जांच नहीं कराई गई।
  • 60 दिन तक पुलिस की अभिरक्षा में रखने का कोई जवाब नहीं
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