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Nithari Killing: फांसी पर लटकते-लटकते बचा था कोली, जानिए मामले में एक बार आधी रात को क्यों खुला था सुप्रीम कोर्ट?

Nithari Case मासूम बच्चों की हत्या का आरोपित सुरेंद्र कोली करीब नौ वर्ष फांसी के फंदे पर लटकते-लटकते बचा था। सोमवार को उच्च न्यायालय द्वारा 12 मामलों में फांसी की सजा से दोषमुक्त किए जाने के बाद फंदा भी खुल गया है। देर रात को सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल आवेदन दायर पर सुनवाई करते हुए फांसी की सजा पर रोक लगा दी थी।

By Gaurav SharmaEdited By: GeetarjunUpdated: Tue, 17 Oct 2023 06:00 AM (IST)
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नोएडा सेक्टर-31 डी-5 के पास से साक्ष्य इकट्ठा करती पुलिस (फाइल फोटो)।

जागरण संवाददाता, नोएडा। मासूम बच्चों की हत्या का आरोपित सुरेंद्र कोली करीब नौ वर्ष फांसी के फंदे पर लटकते-लटकते बचा था। सोमवार को उच्च न्यायालय द्वारा 12 मामलों में फांसी की सजा से दोषमुक्त किए जाने के बाद फंदा भी खुल गया है। देर रात को सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल आवेदन दायर पर सुनवाई करते हुए फांसी की सजा पर रोक लगा दी थी। बाद में फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया।

मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली (फाइल फोटो)।

3 सितंबर 2014 को कोली के खिलाफ कोर्ट ने मौत का वारंट जारी किया था, जिसके बाद 7 से 13 सितंबर के बीच कोली काे फांसी दी जानी थी। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले के आलोक में वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह द्वारा विशेष याचिका दायर की गई थी। जिस पर सुनवाई करते हुए फांसी पर रोक लगाई गई थी।

नोएडा सेक्टर-31 डी-5 के पास से साक्ष्य इकट्ठा करती पुलिस (फाइल फोटो)।

रात को न्यायाधीश को जगाया गया

रोक लगने के बाद वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जय सिंह ने बताया था कि उन्हें सात सितंबर की रात तत्काल आवेदन दायर करना होगा। रात के 12 बजे थे। रात एक बजे न्यायाधीश को जगाया गया, स्टाफ को बुलाया गया और उन्होंने याचिका पर सुनवाई की। जिसके बाद फांसी के आदेश पर एक सप्ताह के लिए रोक लगा दी गई।

आदेश में पीठ ने कहा कि कोली की समीक्षा याचिका में 24 जुलाई को पारित आदेश की समीक्षा के लिए एक आवेदन 8 सितंबर को आया। आवेदन में कहा गया है कि सोमवार 8 सितंबर सुबह 5:30 बजे डेथ वारंट जारी होगा।

हाईकोर्ट ने कोली को सुनाई थी मौत की जा

कोली को दिसंबर 2006 में नोएडा में लापता हुई लड़की रिंपा हलदर की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था। कोली और पंढेर दोनों को मौत की सजा सुनाई गई, लेकिन बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पंढेर को बरी कर दिया और कोली की मौत की सजा बरकरार रखी। इसके बाद सर्वाेच्च न्यायालय ने सुनवाई करते हुए फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था।

कानून का जानकार हो गया था कोहली

केस से जुड़े लोग बताते हैं कि एक दशक से अधिक समय से आपराधिक मामलों में घिरा सुरेंदर कोली कानून का जानकार हो गया था। काेर्ट में अपनी पैरवी खुद भी करने लगता था। बहस के दौरान अपने पक्ष में इस तरह दलील रखता था कि बड़े-बड़े सोचने पे मजबूर हो जाते थे।

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कब-कब सुनाई सजा

  • 13 फरवरी 2009: सुरेंद्र कोली एवं मोनिंदर सिंह पंढेर फांसी की सजा। हाई कोर्ट से पंढेर बरी।
  • 12 मई 2010: सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा।
  • 28 अक्तूबर 2010: सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा।
  • 22 दिसंबर 2010: सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा।
  • 24 दिसंबर 2012: सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा।
  • 7 अक्तूबर 2016: सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा।
  • 16 दिसंबर 2016: सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा।
  • 24 जुलाई 2017: सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा, पंढेर बरी।
  • 08 दिसंबर 2017: सुरेंद्र कोली एवं मोनिंदर सिंह पंढेर को फांसी की सजा।
  • 02 मार्च 2019: सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा। पंढेर बरी।
  • 06 अप्रैल 2019: सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा। पंढेर बरी।
  • 15 जनवरी 2021: सुरेंद्र कोली को फांसी। मोनिंदर पंढेर बरी।
  • 26 मार्च 2021: सुरेंद्र कोली बरी।
  • 19 मई 2022: सुरेंद्र कोली को फांसी व मोनिंदर पंढेर को सात साल कैद।

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