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Nithari Kand के दोषी हुए बरी, बच्चों संग हैवानियत के खौफनाक किस्से सुन आज भी सिहर जाते हैं लोग

17 साल पहले 2006 में नोएडा के निठारी में जब एक नाले से नर कंकालों के निकलने का सिलसिला शुरू हुआ तो इसके साथ ही दो इंसानों की हैवानियत का किस्सा भी पूरी दुनिया के सामने आ गया। इनकी करतूतों की वजह से नरपिशाच कहलाए। यह लोग मासूम बच्चों को बहलाकर अपने घर बुलाते थे फिर उनके साथ कुकर्म करते थे और फिर उन्हें पकाकर खा जाते थे। बचे हिस्सों को नाले में फेंक देते थे।

By Pooja TripathiEdited By: Pooja TripathiUpdated: Tue, 17 Oct 2023 04:13 PM (IST)
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निठारी कांड के 17 साल और अब 12 मामलों में कोली बरी 2 में पंढेर, हाईकोर्ट ने रद्द की फांसी।
डिजिटल डेस्क, नोएडा। साल 2006 में जब देश की राजधानी से सटे उत्तर प्रदेश के नोएडा के निठारी में जब एक नाले से नर कंकाल निकलने शुरू हुए तो सबके होश उड़ गए। देखते ही देखते यह खबर देश-दुनिया के मीडिया की सुर्खियां बन गई।

हर कोई हैरान कि आखिर नाले में इतने नर कंकाल कैसे मिल रहे हैं। जैसे-जैसे पुलिस की जांच आगे बढ़ती लोगों की हैरत और आक्रोश बढ़ता ही जाता था।

देश के हर कोने से अब निठारी के आरोपियों को फांसी देने की मांग होने लगी। मामला गंभीर होता देख इसकी जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी।

2007 में सीबीआई ने शुरू की थी जांच

11 जनवरी 2007 को यह केस सीबीआई ने पूरी तरह से अपने हाथ में ले लिया। इस मामले में नरपिशाच के नाम से विख्यात हुए सुरेंद्र कोली का पहली बार इकबालिया बयान 28 फरवरी को दिल्ली में एसीएमएम के सामने दर्ज कराया गया था।

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सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर पर 2007 में कुल 19 केस दर्ज हुए थे। इसमें से सीबीआई ने तीन केस में सबूतों के अभाव में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी। बाकी बचे 16 मामले में से कोली को तीन केस में बरी कर दिया गया था और एक केस में मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था।

एक मामला जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, वह अब भी लंबित है। वहीं अन्य 12 मामलों में सोमवार (16 अक्टूबर, 2023) को कोली को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है।

पंढेर को शुरुआत में छह केस में आरोपी बनाया गया था। उसे इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा तीन केस में पहले ही बरी किया जा चुका है।

पंढेर की कोठी बनी खंडहर

17 बच्चों को बनाया शिकार

अदालत ने सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर को भले ही कई मामलों में बरी कर दिया हो, लेकिन आज भी निठारी कांड की बात आते ही हर उस शख्स की आंखों में वह मंजर तैर जाते हैं, जब एक-एक कर नाले से नर कंकाल निकल रहे थे।

करोड़पति मोनिंदर सिंह पंढेर की कोठी डी-5 पर आज फिर मीडिया का जमावड़ा लगा है। हालांकि अब कोठी की हालत ऐसी हो चुकी है जिसे देखकर कोई नहीं कह सकता कि 17 साल पहले यहां पर कोई कोठी थी।

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इसी कोठी में दो हैवानों ने 17 बच्चों को अपना शिकार बनाया और उन्हें उसी के नीचे गाड़ दिया। इसी कोठी में पंढेर और कोली आसपास के गांव से भोले-भाले बच्चों को किसी न किसी बहाने बुलाते थे।

हत्या के बाद करते थे शव के साथ दरिंदगी

बेहद चालाकी से बच्चों को अपनी कोठी में बुलाने के बाद ये लोग बच्चों के साथ कुकर्म करते थे और फिर गला दबाकर उनकी हत्या कर देते थे। इतने से भी मन नहीं भरता तो वह बच्चों के छोट-छोटे टुकड़े कर उसे पका कर खा जाते थे और कुछ टुकड़ों को कोठी के पीछे बह रहे नाले में फेंक देते थे।

यह लोग इतनी चालाकी से बच्चों को गायब करते थे कि कोई समझ ही नहीं पाता था। लगभग दो सालों तक ये सिलसिला चलता रहा और गांववाले ये समझते रहे कि कोठी के पास पानी की टंकी में कोई भूत है जो बच्चों को गायब कर रहा है।

2006 में एक केस से सामने आया मामला

हालांकि जब सुरेंद्र कोली का नाम साल 2006 में एक बच्ची के गायब होने के मामले में सामने आया और फिर पुलिस ने गहनता से जांच शुरू की तो एक-एक कोठी मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर और उसके नौकर सुरेंद्र कोली की करतूतें सामने आने लगीं।

17 में से 12 केस में मिली थी कोली को फांसी की सजा, जजों की टिप्पणियां बेहद सख्त

कोली को जिन मामलों में मौत की सजा सुनाई गई उनमें जजों ने बेहद सख्त टिप्पणी की है। एक मामले में जज ने कहा था कि कोली के प्रति कोई दया नहीं दिखाई जानी चाहिए। वहीं एक अन्य मामले में जज ने कहा था कि जब तक इसकी जान न जाए तब तक फांसी पर लटकाए रखो।

2005 के रिम्पा हलदर हत्याकांड में मृत्युदंड सुनाते हुए 15 फरवरी 2011 सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोली सीरियल किलर है और उसके प्रति कोई दया नहीं दिखाई जानी चाहिए।

एक केस में सुरेंद्र कोली को दोषी मानते हुए सीबीआई की विशेष अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। उस वक्त जस्टिस एस. लाल ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि दोषी के मन में हमेशा यही भावना बनी रहती है कि किसको मारूं, काटूं या खाऊं। वह इन परिस्थितियों में समाज के लिए खतरा बन चुका है।

आरोपी के सुधार और पुनर्वास की गुंजाइश भी नहीं है। मृतका की आत्मा को तभी शांति मिल सकती है, जब अभियुक्त को मृत्यु दंड से ही दंडित किया जाए। अभियुक्त को गर्दन में फांसी लगाकर तब तक लटकाया जाए, जब तक उसकी मृत्यु न हो जाए।

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