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देखो राम आए हैं... दिल्ली से चले 89 कारसेवकों के जत्थे में से 12 ही पहुंच पाए थे अयोध्या

30 अक्टूबर की सुबह करीब नौ बजे हम अयोध्या पहुंचे गए थे। वास्तव में परिंदा पर नहीं मार पाने वाला सुरक्षा घेरा वहां पर था। हर तरफ पुलिस का पहरा था। इसको देखते हुए कुछ लोगों ने गिरफ्तारी देने की भी बात कही लेकिन नेतृत्व से ऐसा कोई निर्देश नहीं था और ज्यादातर कारसेवक भी विवादित ढांचे तक पहुंचना चाहते थे।

By Ajay Chauhan Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Mon, 22 Jan 2024 11:04 AM (IST)
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देखो राम आए हैं... दिल्ली से चले 89 कारसेवकों के जत्थे में से 12 ही पहुंच पाए थे अयोध्या

अजय चौहान, नोएडा। संगठन की योजना के अनुसार 26 अक्टूबर को गोमती एक्सप्रेस से लखनऊ के लिए हमारी 89 कारसेवकों की वाहिनी रवाना हुई। बच्चन सिंह नेगी हमारे वाहिनी प्रमुख थे।

जब हम लखनऊ के चार बाग स्टेशन पहुंचे तो केवल 32 कारसेवक ही बचे थे, शेष की गिरफ्तारी हो चुकी थी। अलीगढ़ में सबसे सख्त जांच हुई थी। सबसे ज्यादा लोग यहीं पर पकड़े गए। कोच में घुस-घुस कर पुलिस ने लोगों को पकड़ा, जबकि पहले से ही सभी लोगों के नाम बदले गए थे।

इससे आप सख्ती का आकलन कर सकते हैं। यह कहना है कि 1990 की कारसेवा में शामिल रहे सेक्टर-56 के रहने वाले मुरारी सिंह का। उन्होंने कारसेवा में शामिल होने के अपने संस्मरण विस्तार से साझा किए हैं।

'हमें गोरखपुर की ट्रेन पकड़नी थी...'

हमें बताया गया था कि लखनऊ से आगे जाने की जानकारी वहीं के स्थानीय कार्यकर्ता देंगे। योजना के अनुसार एक सज्जन हमारे आए और बोले कारसेवक। हम ने हां में उत्तर दिया तो बोले पीछे आ जाओ।

उन्होंने चलते-चलते आगे का रूट समझाया। हमें गोरखपुर की ट्रेन पकड़नी थी और लगभग दो घंटे की दूरी तय करने के बाद मनका में उतरना था। वहां अयोध्या के लिए आगे पैदल ही बढ़ना था। सीधे अयोध्या जाने वाली सभी ट्रेन रद थी। मैं अयोध्या का ही रहने वाला था।

ऐसे में मैंने उनसे ट्रेन की जगह सड़क मार्ग से जाने का प्रस्ताव दिया और हम लखनऊ से ही पैदल अयोध्या के लिए निकल गए। पांच से छह किमी की दूरी ही तय की होगी कि जानकारी मिली की बस सेवा बंद होने से अयोध्या में फंसे यात्रियों के लिए सरकार की तरफ से एक बस भेजी जा रही है।

लखनऊ पहुंचने के बाद में भाषा और क्षेत्र के लिए स्थानीय हो गया था। हम लोग भी अयोध्या के स्थानीय लोग कह बस में बैठ गए। रास्ते में पुलिस ने दो जगह जांच की। हमारे वाहिनी प्रमुख बच्चन सिंह नेगी समेत कुछ अन्य साथी पकड़े गए और अंत में 12 साथ ही अयोध्या पहुंच पाए।

सीओ ने अपने गाड़ी से कर्फ्यू से बाहर निकाला

अयोध्या पहुंचते ही हम लोग भी सहम गए। शहर में कर्फ्यू और चारों तरफ पुलिस ही पुलिस थी। सामने खड़े एक नौजवान सीओ खड़े थे। मैं उनके पास गया और 10 किमी दूर अपने गांव सिरसिंडा सरायराशी के बारे में बताया। हमें परेशान देख उन्होंने अपने चालक को हमें पहुंचाने को कहा।

इस तरह रात के तीन बजे में हमें शहर से बाहर पहुंचाया। वहां से हम पैदल ही निकले। मुझे पूरी भौगोलिक जानकारी थी तो कोई दिक्कत नहीं हुई। रास्ते में एक गांव में कारसेवकों के लिए रुकने की व्यवस्था की गई थी।

रात में हम वहीं पुवाल पर सोए। उसके बाद हम 29 अक्टूबर तक मेरे गावं में रुके और रात्रि में सरयू के किनारे होते हुए अयोध्या की तरफ कूच किया। दूसरे गांवों में रुके कारसेवक भी मिलते गए।

रात के अंधेरे में एक स्थानीय टार्च लेकर आगे चल रहे थे और बाकी सब उनके पीछे। यह सब प्रभु श्रीराम की ही कृपा थी। आज अपने सामने रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा होते देखना गर्व की अनुभूति है।

अशोक सिंघल के घायल होने पर टूटा कारसेवकों धैर्य

30 अक्टूबर की सुबह करीब नौ बजे हम अयोध्या पहुंचे गए थे। वास्तव में परिंदा पर नहीं मार पाने वाला सुरक्षा घेरा वहां पर था। हर तरफ पुलिस का पहरा था। इसको देखते हुए कुछ लोगों ने गिरफ्तारी देने की भी बात कही, लेकिन नेतृत्व से ऐसा कोई निर्देश नहीं था और ज्यादातर कारसेवक भी विवादित ढांचे तक पहुंचना चाहते थे।

इसी बीच अशोक सिंघल के हनुमान गढ़ी के पास लाठी चार्ज में घायल होने की सूचना हम सब तक पहुंची। इसके बाद तो कारसेवकों का धैर्य जवाब दे गया। यहां तक पहुंचने की कठिन प्रक्रिया ने हमारे अंदर और ज्यादा जोश और उत्साह का संचार कर दिया था।

देखते ही देखते हजारों की संख्या में कारसेवक हनुमान गढ़ी होते हुए विवादित ढांचे तक पहुंच गए। इसी बीच पुलिस ने आंसू गैस के गोले दाग दिए। मुझे ध्यान है कि छोटी छावनी तक पहुंचते-पहुंचते हम सिर्फ सात लोग बच्चे थे।

दिगंबर अखाड़े पर अकारण ही चला दी थी गोली

मोरारी सिंह बताते है कि दो नवंबर को कारसेवक दिगंबर अखाड़े के पास एकत्रित हो रहे थे। सब कुछ शांति पूर्ण चल रहा था। उस वक्त मैं अपने साथियों के साथ आचार्य धर्मेन्द्र से प्रवचन सुन रहा था।

तभी पता चला की दिगंबर अखाड़े के पास कारसेवकों पर गोली चल रही है। सब कि तक चीजें सामान्य हो चुकी थी, लेकिन तत्कालीन सरकार की हठधर्मिता के चलते यह हुआ। ह्रदय विदारक दृश्य था।

पुलिस से बचने के लिए पहली बार पी सिगरेट

रात में लगभग 10 बजे चारबाग उतरने के बाद मैं और बच्चन सिंह नेगी स्टेशन से बाहर निकले तो देखा की दो सिपाही हमारा पीछा कर रहे हैं। जैसे ही हमें इसकी भनक लगी। हम तुरंत पान की दुकान पर मुड़ गए और सिगरेट लेने लगे। यह पहली बार था, जब मैंने सिगरेट पी। हमें स्थानीय समझ कर पुलिस वाले आगे निकल गए।

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