रिश्तों की डोर टूटने से बचाकर घर और परिवार को भी बचा रहीं रेनू बाला, छोटे से प्रयास से संवर रही जिंदगी
अब तक करीब 60 परिवारों को टूटने से बचाने के साथ उन्हें हंसती खेलती जिंदगी में बदलने का कार्य किया है सेक्टर-44 की रहने वाली रेनू बाला शर्मा ने। बचपन में जो संघर्ष उन्होंने अपनी मां के जीवन में देखा था। इसके अलावा वो बेटियां जो आर्थिक कारणों के चलते स्कूल नहीं पहुंच पाती है ऐसी करीब 100 बच्चियों को सरकारी व प्राइवेट स्कूलों में प्रवेश दिला चुकी हैं।
लोकेश चौहान, नोएडा। अक्सर छोटी-छोटी बातों पर दंपती के बीच होने वाले विवादों में रिश्ते टूट जाते हैं। इन रिश्तों की डोर को टूटने से बचाने के लिए छोटा सा प्रयास ही काफी हो सकता है, बशर्ते वह प्रयास पूरे मन से किया गया हो।
कुछ ऐसा ही प्रयास कर अब तक करीब 60 परिवारों को टूटने से बचाने के साथ उन्हें हंसती खेलती जिंदगी में बदलने का कार्य किया है सेक्टर-44 की रहने वाली रेनू बाला शर्मा ने। बचपन में जो संघर्ष उन्होंने अपनी मां के जीवन में देखा था, उसे देखकर निर्णय लिया था कि जब भी कोई जरूरतमंद उनके पास आएगा, या किसी भी संपर्क से उन्हें मिलेगा, तो उसकी हर संभव मदद मिलेगी।
200 बेटियों को दिलाई कंप्यूटर शिक्षा
विशेष तौर पर अगर कहीं किसी परिवार को टूटने से बचाने की बात आती है तो प्रयास और गंभीरता से किया जाता है। परिवारों की टूटती डोर को बचाने के साथ ही महिला उन्नति संस्थान की गौतमबुद्ध नगर अध्यक्ष रेनू बाला शर्मा गरीब व वंचित परिवार की 200 बेटियों को कंप्यूटर शिक्षा दिलाकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने में भी मदद कर चुकी हैं।इसके अलावा गरीब वर्ग की ऐसी बेटियां जो आर्थिक कारणों के चलते स्कूल तक नहीं पहुंच पाती है, ऐसी करीब 100 बच्चियों को सरकारी व प्राइवेट स्कूलों में प्रवेश दिला चुकी हैं। इनमें कई बच्चियां इस समय 12वीं की पढ़ाई कर रही है और जल्द ही अपने करियर के ऐसे पड़ाव पर होंगी, जहां स्वयं के परिवार के लिए संबल बनने के साथ दूसरों की मदद करने की स्थिति में भी होंगी।
इस समय उनके साथ 25 महिलाओं की टीम है, जो अपने आसपास काम करने वाले और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की मदद करने को हमेशा तैयार रहती हैं। इनमें विशेष तौर पर उन महिला और युवतियों पर ध्यान दिया जाता है, जो उत्पीड़न का शिकार हैं या फिर आर्थिक कारणों से शिक्षा से वंचित होने की कगार पर हैं।
ऐसा था मां का संघर्ष
रेनू बाला शर्मा बताती हैं कि उनके पिता संपन्न परिवार से थे। उनकी मां का व्यवहार काफी सरल था। बिना किसी बात पर बिना कोई अनबन हुए उनकी मां, पिता और उन्हें थोड़े से आटे और कुछ बर्तनों के साथ घर से अलग कर दिया गया।
सरल स्वभाव की उनकी मां ने इस निर्णय को बिना किसी विरोध स्वीकार किया और अपनी सास के साथ वह घर से निकल गई। उन दिनों किए गए संघर्ष में कई ऐसे पड़ाव आए, जब स्थिति काफी खराब भी रही।इन सभी परिस्थितियों से लड़ते हुए उन्होंने न सिर्फ अपनी गृहस्थी को संभाला, बल्कि अपने बच्चों को भी इस लायक बनाया कि वह दूसरों की मदद कर सकें। मां के संघर्ष से इस बात की सीख ले ली थी कि जीवन में जब भी कोई जरूरतमंद मिलेगा, उसकी हरसंभव मदद करनी है।
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