Sawan 2022: दिल्ली से 50 किमी दूर यूपी के इस शिव मंदिर का लंकापति रावण से है सीधा कनेक्शन
Sawan 2022 सावन के हर सोमवार को मंदिर की साज सज्जा और जगह-जगह होने वाले भंडारे से गांव का माहौल ही बदल जाता है। दूरदराज इलाकों से मंदिर में श्रद्धालुओं का आवागमन होता है। मंदिर में स्थित शिवलिंग व खूबसूरत मूर्तियां मंदिर के आकर्षण का केंद्र है।
By Abhishek TiwariEdited By: Updated: Thu, 14 Jul 2022 02:46 PM (IST)
ग्रेटर नोएडा, जागरण संवाददाता। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा के बिसरख गांव स्थित शिव मंदिर शहर के फेमस मंदिरों में से एक है। मंदिर में विभिन्न देवी देवताओं की मूर्ति स्थापित है। सावन (Sawan 2022) के महीने में मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है। पूरे सावन यहा शिव भक्तों का ताता लगा रहता है। लंकापति रावण से इस शिव मंदिर का सीधा कनेक्शन है।
मंदिर का इतिहास
बिसरख गांव के शिव मंदिर का इतिहास लंकापति रावण से जुड़ा है। कहा जाता है कि रावण के पिता ऋषि विश्रवा की बिसरख क्षेत्र तपोस्थली था। रावण के जन्म के लिए उन्होंने इसी मंदिर पर पूजा अर्चना की थी। इसके बाद रावण का जन्म हुआ। इस शिवलिंग को ऋषि विश्रवा ने ही स्थापित कर अराधना की थी।
अष्टभुजाधारी यह शिवलिंग आज भी गांव के पुराने मंदिर में मौजूद है। ऐसा शिवलिंग हरिद्वार तक किसी मंदिर में नहीं मिलता। मंदिर के समीप ही रावण का भी मंदिर है। जिसमें भी दर्जनों देवी देवताओं की मूर्ति विराजमान है।
मंदिर की विशेषता
प्राचीन शिव-पारवती मंदिर के बारे में विशेषता है कि यदि सावन में शिवलिंग के दर्शन कर लिए जाए तो दर्शन मात्र से ही मनोकामना पूरी हो जाती है। लोग दूर-दराज के इलाकों से यहां अपनी मनोकामना लेकर आते हैं। सावन में लोगों की आस्था और भी गहरी हो जाती है।चर्चित तांत्रिक चंद्रास्वामी ने करवाया था यज्ञमंदिर में अन्य देवी देवताओं की मूर्ति होने की वजह से सावन के साथ-साथ यहां नवरात्र में भी गहमागहमी होती है। चर्चित तांत्रिक चंद्रास्वामी ने इस मंदिर पर यज्ञ कराया था। इस दौरान उन्होंने शिवलिंग की खुदाई कराई थी। बीस फुट खुदाई के बाद भी शिवलिंग का छोर नहीं मिला। इसके बाद खुदाई बंद करा दी गई थी। खुदाई के दौरान एक गुफा भी मिली थी, जो पास के खंडहरों में जाकर समाप्त हो गई।
कैसे पहुंचे मंदिरनोएडा व गाजियाबाद से बिसरख गांव पहुंचने के लिए ग्रेटर नोएडा नोएडा वेस्ट से सबसे सुगम रास्ता है। किसान चौक से बिसरख गांव की दूरी मात्र पांच किलो मीटर है। हालांकि परिवहन व्यवस्था के नाम पर अभी कोई इंतजाम नहीं है। निजी वाहन या ऑटो से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।मंदिर महंत रामदास ने कहा कि बिसरख क्षेत्र ऋषि विश्रवा की प्रमाणिक तपोस्थली है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग की गहराई का कोई अनुमान नहीं है। मान्यता है कि रावण का जन्म मंदिर के समीप ऋषि के आश्रम में हुआ था। आज भी यहां के लोग दशहरा पर रावण दहन नहीं करते।
मंदिर के पुजारी विनय भारद्वाज ने कहा कि सावन के महीने में मंदिर का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। सावन में शिवलिंग की विशेष पूजा होती है। श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर आते हैं।
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