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स्लीपर बसें जानलेवा! डिजाइन में छेड़छाड़ कर 47 की जगह लगा रहे 65 सीट, पलटने का रहता है खतरा

नोएडा की निजी बसें यात्रियों की जान जोखिम में डाल रही हैं। परिवहन विभाग की जांच में सामने आया है कि बस संचालक अतिरिक्त लाभ कमाने के चक्कर में बसों की मूल डिजाइन में छेड़छाड़ कर रहे हैं। बीते दो माह में 167 स्लीपर बसों में यह गड़बड़ी पाई गई है। इनमें नागालैंड दमन दीव अरुणाचल प्रदेश और बिहार की बसें शामिल हैं।

By Ajay Chauhan Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Sun, 01 Sep 2024 08:16 AM (IST)
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दो महीने में पकड़ गई 167 स्लीपर बसें। फोटो- जागरण
अजय चौहान, नोएडा। निजी बस संचालक अतिरिक्त लाभ कमाने के चक्कर में बसों की मूल डिजाइन में छेड़छाड़ कर हर दिन हजारों मुसाफिरों की जान जोखिम में डाल रहे हैं। परिवहन विभाग की जांच में बस संचालकों का यह खेल उजागर हुआ है। बीते दो माह में ऐसी 167 स्लीपर बस पकड़ गई हैं।

इसमें नागालैंड, दमन दीव, अरुणाचल प्रदेश, बिहार की बसें शामिल हैं। इन राज्यों में बसों की डिजाइन के लिए तय ऑटोमैटिक आइडेंटिफिकेशन सिस्टम (एआईएस) कोड में बरती जा रही शिथिलता का बस संचालक लाभ उठा रहे हैं। देश में सभी बसों के लिए अलग-अलग एआईएस डिजाइन कोड है। इसके अनुसार ही सीटों का निर्धारण होता है।

मोटे मुनाफे के चक्कर करते हैं बदलाव

प्राइवेट बसों तय एआईएस 52 कोड के तहत स्लीपर बसों में 30 लेटने वाली या 15 लेटने और 32 बैठने की सीट तय है। बस संचालक अतिरिक्त लाभ कमाने के चक्कर में इसमें बदलाव कर देते हैं। पूर्ण स्लीपर बस में 30 की जगह 36 लेटने वाली सीट लगा देते हैं। वहीं, मिश्रित बस में 15 स्लीपर के साथ बैठने वाली 18 अतिरिक्त सीट लगा दे हैं। इससे बैठने वाली यात्रियों की संख्या 32 से 50 हो जाती है।

बस में यात्रियों की कुल संख्या 47 से बढ़कर 65 हो जाती है। इससे बस में अतिरिक्त भार होने से पटलने का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही सीट बढ़ाने के लिए आपातकाल द्वार बंद देते हैं। एक स्लीपर बस में चार आपातकाल द्वार होते है।

आग लगने या हादसा के समय यह खतरनाक हो जाता है। यह बसें दिल्ली से बिहार और पूर्व उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों के लिए चलती है। यात्रियों की जान जोखिम में डालने के साथ यह परिवहन निगम को राजस्व का भी नुकसान पहुंचाते है।

डेढ़ कुंतल अतिरिक्त भार कर रहे वहन

प्राइवेट बस संचालक एक बस में डेढ़ कुंतल तक अतिरिक्त भार वहन करते हैं। प्रत्येक यात्री का 60 किग्रा शारीरिक और 25 किग्रा सामान का वजन मान ले तो औसत भार 85 किग्रा हो जाता है।

इस तरह 18 यात्रियों का कुल भार 1530 किग्रा हो जाता है। इसके अलावा बस की छत पर अतिरिक्त करियर लगा कर सामान लाद देते हैं, जबकि यात्री बस में छत पर किसी प्रकार का सामान लादने की अनुमति नहीं होती है। इसके बाद भार कई गुना बढ़ जाता है।

भार क्षमता के अनुसार ही तय होती सीट

संभागीय परिवहन अधिकारी विनय सिंह ने बताया कि बस की सीट क्षमता भार संतुलन के आधार पर तय होती है। प्रत्येक वाहन में आगे और पीछे के टायरों के बीच की दूरी के आधार पर व्हीलबेस तय होता है। इससे ही सीट निर्धारित होती है। ऐसे में अगर मूल डिजाइन से छेड़छाड़ की जाती है तो बस का संतुलन बिगड़ सकता है। यही कारण है कि अक्सर प्राइवेट बसों के पलटने की घटनाएं सामने आती है।

इस तरह होती है कार्रवाई

अन्य राज्यों में पंजीकृत होने से कार्रवाई के लिए भी लंबी प्रक्रिया अपनानी पड़ती है। संभागीय निरीक्षक ऐसी बसों की जांच कर मूल राज्यों को पंजीकरण व फिटनेस निलंबन के लिए पत्र लिखते हैं। वहां से कार्रवाई होने के बाद वाहन स्वामी से मूल डिजाइन में वापस लाने का शपथ पत्र लेने के बाद बस छोड़ी जाती है।

लंबी दूरी की स्लीपर बसों में एआईएस कोड के जांच के लिए जुलाई माह में विशेष अभियान चलाया गया था। अगस्त माह में भी जांच की गई। 198 ऐसी बस पकड़ में आइ है। सभी पर कार्रवाई के लिए मूल राज्यों को पत्र लिखा गया है। - डॉ. उदित नारायण, एआरटीओ प्रवर्तन।

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