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Rhodotorula Meningitis: नोएडा में मिला इस दुर्लभ बीमारी का दुनिया का दूसरा मरीज, क्या होता है ये संक्रमण?

रोडोटुकला मेनिनजाइटिस और सीएमवी मेनेनिजाइटिस से ग्रस्त दो माह एक बच्चे के सफल इलाज का दावा किया है। शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. आशुतोष सिन्हा ने बताया की बच्चे को बुखार चिड़चिड़ेपन और आंखों के उलटने की समस्या थी।

By Jagran NewsEdited By: Nitin YadavUpdated: Wed, 03 May 2023 09:02 AM (IST)
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रोडोटुरुला मेनिंजाइटिस और सीएमवी मेनिंजाइटिस से पीड़ित 2 माह के शिशु का सफल उपचार।
नोएडा, जागरण संवाददाता। रोडोटुकला मेनिनजाइटिस और सीएमवी मेनेनिजाइटिस से ग्रस्त दो माह एक बच्चे के सफल इलाज का दावा किया है। मेडिकल रिकॉर्डस के मुताबिक यह दुनिया में सीएमवी मेनिंजाइटिस का दूसरा मामला है। जिसका बायोफायर यह सीएमवी साइटोमेगालोवायरस नामक वायरस के कारण मस्तिष्क की सतह के संक्रमण और सूजन के कारण होता है।

बच्चे को थी यह समस्या

शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. आशुतोष सिन्हा ने बताया की बच्चे को बुखार, चिड़चिड़ेपन और आंखों के उलटने की समस्या था। बच्चे को भर्ती कर शिशु की एमआरआई, सीएसएफ (सेरीब्रोस्पाइनल फ्लूड) समेत कई प्रकार की मेडिकल जांच की गई, जिससे इंफेक्शन सामने आया और पता चला कि शिशु मेजिंजाइटिस से ग्रस्त था।

शिशु को दौरे भी पड़ने लगे थे और उसकी अनियंत्रित अवस्था को देखते हुए उसे तत्काल ट्यूब के जरिए एंटीबायोटिक्स दी गई। क्लीनिकल स्तर पर शिशु की हालत में सुधार दिखाई देने लगा था और फीडिंग भी सही तरीके से करने लगा, लेकिन तेज बुखार ठीक नहीं हो रहा था।

उसे प्रतिदिन 3-4 बार बुखार आ रहा था, इसलिए दोबारा से सीएसएफ जांच की गई और बायोफायर जांच के लिए भेजा गया। जिसमे सीएमवी पॉजिटिव पाया गया। शिशु को गैन्सीक्लोविर का इंजेक्शन छह सप्ताह तक दिया गया। हालांकि, आईवी से गैन्सीक्लोविर दिए जाने के 10 दिन बाद भी बुखार कम नहीं हुआ।

सीएसएफ फगल कल्चर में रोडोटुरुला संक्रमण की मौजूदगी का पता चला जो दुनिया भर में पहली बार रिपोर्ट किया गया। बच्चे का शुरू में आईवी के जरिये एंटीबायोटिक्स और एंटीपीलेप्टिक्स के साथ इलाज किया गया । हालांकि, उसे बेहोशी के कई दौरे पड़े थे, जिसके लिए उसे वैकल्पिक रूप से इंटुवेटेड किया गया और मैकेनिकल वैटिलेशन और आईवी मिडाजोलम पर रखा गया।

10 दिनों तक बना रहा बुखार

बेहोशी की हालत से राहत मिलने के 48 घंटे बाद बच्चे को बाहर निकाला गया। क्नीनिकली बच्चे में सुधार दिखा, लेकिन तेज बुखार ठीक नहीं हो रहा था। इसके बाद जांच मे साइटोमेगालोवायरस मेनिंजाइटिस (सीएमवी) का पता चला था। जिसकी वजह से बच्चे को गैन्सीक्लोविर का इंजेक्शन लगाया गया जो छह सप्ताह तक जारी रहा। बावजूद बुखार 10 दिनों तक बना रहा।

बार-बार होने वाले सीएसएफ फंगल कल्चर से एक दुर्लभ यीस्ट रोडोटुरुला प्रजाति की उपस्थिति का पता चला, जिसे दुनिया में कहीं भी सीएमवी मैं पहचाना या देखा नहीं गया है। इसके बाद एम्फोटेरिसिन बी शुरू किया गया और उसे चार सप्ताह तक दिया गया, जिससे शिशु को ठीक होने में मदद मिली और उसका बुखार भी कम हो गया। तत्काल और सही इलाज के बिना उसके बचने की संभावना कम थी।

अगर बीमारी को अनियंत्रित छोड़ दिया जाता और उपचार नहीं किया जाता तो इसमें जोखिम थे जैसे कि उच्च मृत्यु दर, न्यूरोडिसेबिलिटी और अन्य संबंधित जटिलताएं। साइटोमेगालोवायरस एक सामान्य वायरस है और एक बार संक्रमित होने के बाद, शरीर में जीवन भर के लिए वायरस बना रहता है। अधिकांश लोगों को पता नहीं होता कि उन्हें सीएमवी है, क्योंकि यह शायद ही कभी स्वस्थ लोगों में समस्याएं पैदा करता है।

मस्तिष्क का संक्रमण बेहद दुर्लभ

यह संक्रमण आम तौर पर कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले और एचआईवी रोगियों या कीमोथेरेपी कराने वालों में होता है। जन्म से पहले मां से या जन्म के बाद स्तनपान के माध्यम से प्राप्त शिशुओं में सीएमवी संक्रमण के मामले सामने आए हैं, लेकिन मस्तिष्क का संक्रमण बेहद दुर्लभ है।

कुछ बच्चों में जन्म के बाद स्तनपान से यह संक्रमण हो सकता है। हालांकि इस मामले में यह पता लगाना संभव नहीं था कि क्या स्तन का दूध वाहक था, लेकिन हमने जोखिम को सीमित करने के लिए स्तनपान रोक दिया था।

बच्चे को दवा देने में होती थी परेशानी

शिशुओं को आईवी के जरिये दवा देने के लिए नस खोजने में हमेशा चुनौती होती है। यह दो महीने का बच्चा था और हमें एक महीने से अधिक समय तक इंट्रा-वेनस दवाओं को तत्काल देने की आवश्यकता थी। कैमोपोर्ट का उपयोग आमतौर पर उन रोगियों में किया जाता है जिन्हें कीमोथेरेपी के कई राउंड की आवश्यकता होती है।

इसे क्लैडिकल के नीचे की त्वचा में डाला जाता है और कैथेटर का उपयोग करके बड़ी नस से जोड़ा जाता है। इस मामले में यह एक चुनौती थी क्योंकि कैथेटर का व्यास छोटे शिरा नसों में फिट नहीं हो सकता था।

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