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Noida News: पेयजल में क्लोरीन की गुणवत्ता से बीमारियों पर लगी लगाम, पेट संबंधी बीमारियों की प्रमुख वजह है पानी

दो वर्ष पूर्व कराए गए सर्वे में सामने आया था कि लोगों में पेट संबंधी बीमारियों का प्रमुख कारण पानी में क्लोरीन की सही मात्रा का न होना है। कई तरह की जलीय अशुद्धि‍यों से सेहत को नुकसान होने का खतरा रहता है। व्यक्ति को दांतों की बीमारी होती है।

By Manesh TiwariEdited By: Abhishek TiwariUpdated: Sat, 05 Nov 2022 08:57 AM (IST)
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Noida News: पेयजल में क्लोरीन की गुणवत्ता से बीमारियों पर लगी लगाम

ग्रेटर नोएडा, जागरण संवाददाता। पीने के पानी में क्लोरीन की सही मात्रा स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। पानी में क्लोरीन का कम या ज्यादा होना कई बीमारियों को जन्म देता है। सर्वे के दौरान पाया गया था कि क्लोरीन की कम या ज्यादा मात्रा होने से लोगों को विभिन्न प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है।

इसे देखते हुए जल शक्ति मंत्रालय ने टाटा ट्रस्ट के साथ मिलकर पायलट प्रोजेक्ट के रूप में देश के दस शहरों में आइओटी बेस्ड स्मार्ट वाटर मैनेजमेंट सिस्टम की शुरुआत की है। तकनीक से पानी में क्लोरीन की सही मात्रा की पल-पल जानकारी मिलती है। साथ ही सप्लाई होने वाला पानी यदि लीकेज के कारण बर्बाद होता है तो उसकी सूचना तत्काल मिल जाती है। प्रोजेक्ट की सफलता को देखते हुए सरकार जल्द ही इसे देश के अन्य शहरों में भी लगा सकती है।

पेट संबंधी बीमारियों का प्रमुख कारण पानी

पानी में विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया होते हैं। पानी के माध्यम से शरीर में प्रवेश करने पर यह विभिन्न प्रकार की बीमारियों को जन्म देते हैं। बैक्टीरिया को मारने के लिए पानी में क्लोरीन की एक निर्धारित मात्रा मिलाई जाती है, लेकिन देखते में आता है कि पानी में अंदाज से ही क्लोरीन मिला दिया जाता है। इस कारण कभी वह ज्यादा तो कभी कम हो जाता है। देश के विभिन्न हिस्सों में लगभग दो वर्ष पूर्व कराए गए सर्वे में सामने आया था कि लोगों में पेट संबंधी बीमारियों का प्रमुख कारण पानी में क्लोरीन की सही मात्रा का न होना है।

क्या है आइओटी तकनीक

आइओटी तकनीक को घरों में सप्लाई होने वाले पानी की टंकी के ऊपर लगाया जाता है। तकनीक पूरी तरह से सेंसर युक्त है। टंकी के पानी में क्लोरीन की मात्रा मापने के लिए मशीन में एक लेवल सेंसर लगा होता है। एक फ्लो मीटर एंड प्रिसोर सेंसर सप्लाई होने वाले पानी के पहले व एक अंतिम छोर पर लगाया जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पेयजल में क्लोरीन की मात्रा . 2 से . 4 पार्ट पर मिलियम (पीपीएम) होनी चाहिए। मशीन में लगा सेंसर क्लोरीन की मात्रा कम या ज्यादा होने पर सूचना दे देता है। जिसके आधार पर क्लोरीन की कमी को पूरा किया जा सकता है।

पानी लीक होने पर चल जाता है पता

सरकार की गाइड लाइन के अनुसार एक व्यक्ति को प्रतिदिन 55 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। पायलट प्रोजेक्ट के तहत जिस-जिस गांव में तकनीक का प्रयोग किया जाता है वहां की आबादी का सर्वे होता है। उसके अनुरूप पानी की सप्लाई होती है। घरों में जा रही पानी की पाइप में भी वाटर मीटर लगा होता है।

सप्लाई होने वाले पानी के पाइप में लगे फ्लो मीटर एंड प्रिसोर सेंसर से पता किया जाता है कि कितना पानी छोड़ा गया और अंतिम छोर तक कितना पहुंचा। यदि अंतिम छोर तक कम पानी पहुंचता है तो लीकेज का पता चल जाता है।

क्लोरीन कम या ज्यादा होने से क्या होती है दिक्कत

पानी में क्लोरीन कम होने पर बैक्टीरिया नहीं मरते। कई तरह की जलीय अशुद्धि‍यों से सेहत को नुकसान होने का खतरा रहता है। व्यक्ति को दांतों की बीमारी होती है। उल्टियां हो सकती हैं, फेफड़े खराब हो सकते हैं पेट संबंधी परेशानी होती है।

इन शहरों में चल रहा पायलट प्रोजेक्ट

योजना के तहत लेह लद्दाख, उत्तराखंड, हिमांचल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट, आंध्र प्रदेश व कर्नाटक के एक-दो गांव में पायलट प्रोजेक्ट के तहत काम चल रहा है। पायलट प्रोजेक्ट के इंजीनियर नरेंद्र सिंह बंगारी का कहना है कि एक हजार लीटर पानी में दो मिली ग्राम क्लोरीन मिलाया जाता है। जांच में पाया गया है कि क्लोरीन की मात्रा नियमित रूप से सही होने के कारण लोगों को पानी में क्लोरीन की मात्रा कम या ज्यादा से होने वाली परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ रहा है।

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