पांचवीं के बाद पढ़ाई छूटी तो हाथों को बनाया हुनरमंद
बंगाली कॉलोनी में रहने वाले कालीपद मंडल गरीबी के कारण पांचवीं कक्षा के बाद आगे की पढ़ाई नहीं कर सके। किताबें उनके हाथों से छूट गईं। आर्थिक दुश्वारियों ने उन्हें सरस्वती से दूर कर दिया था लेकिन बड़े होकर वह इन्हीं देवी के साधक बन गए। इस दौरान वह आजीविका के लिए मूर्तिकला सीख चुके थे। उन्होंने मां सरस्वती की प्रतिमाएं बनानी शुरू कर दीं। उनकी बनाई सरस्वती की मूर्तियों की मांग जिले के अलावा बरेली और पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के कई इलाकों तक पहुंचती हैं।
पीलीभीत,जेएनएन : बंगाली कॉलोनी में रहने वाले कालीपद मंडल गरीबी के कारण पांचवीं कक्षा के बाद आगे की पढ़ाई नहीं कर सके। किताबें उनके हाथों से छूट गईं। आर्थिक दुश्वारियों ने उन्हें सरस्वती से दूर कर दिया था लेकिन बड़े होकर वह इन्हीं देवी के साधक बन गए। इस दौरान वह आजीविका के लिए मूर्तिकला सीख चुके थे। उन्होंने मां सरस्वती की प्रतिमाएं बनानी शुरू कर दीं। उनकी बनाई सरस्वती की मूर्तियों की मांग जिले के अलावा बरेली और पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के कई इलाकों तक पहुंचती हैं।
कालीपद मंडल करीब ढाई दशक से मूर्तियां बनाने का कार्य कर रहे हैं। इससे होने वाली कमाई से ही परिवार चलता है। वह अलग-अलग त्योहारों पर सरस्वती के अलावा भी विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाते हैं। इसी हुनर से कमाई करके दो बेटियों और बड़े बेटे की शादी कर चुके। छोटे बेटे संजीत उर्फ सोनू को वह खूब पढ़ाना चाहते हैं। खुद पढ़ाई नहीं कर सके, उसकी कसर बेटे को उच्च शिक्षा दिलाकर कराना चाहते हैं। छोटे बेटे ने इंटर तक की पढ़ाई पूरी कर ली है। वह बी फार्मा की तैयारी करने में जुटा है। कालीपद बताते हैं कि सरस्वती की मूर्तियों के आर्डर उन्हें पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के खटीमा, टनकपुर और सितारगंज से मिलते हैं। साथ ही बरेली से भी अक्सर मूर्तियों की मांग के आर्डर आते हैं। कहते हैं कि वसंत पंचमी पर्व पर मां सरस्वती की मूर्तियों की मांग बढ़ जाती है। जब त्योहारों का सीजन नहीं होता तो मजदूरी करते हैं। कालीपद बताते हैं कि बंगाली समाज के लिए वैसे भी वसंत पंचमी का पर्व सरस्वती पूजन से जुड़ा है, उनके समाज में मां सरस्वती की बहुत मान्यता है।