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Pilibhit Lok Sabha election 2024: पीलीभीत में क्‍या है स‍ियासी समीकरण, क्‍या कह रही जनता? पढ़ें ग्राउंड र‍िपोर्ट

UP Lok Sabha election 2024 पीलीभीत के चुनावी मैदान में इस बार मेनका गांधी हैं न वरुण गांधी क्या उनकी कमी खलेगी? इन नामों के कारण वीआईपी बन चुकी सीट से जुड़े इस सवाल पर दो छोर से एक जवाब आता है। बरेली की सीमा से जुड़े ललौरीखेड़ा के कुलदीप हों या उत्तराखंड की सीमा से जुड़े न्यूरिया के मेहंदी हसन दोनों का जवाब है- बहुत फर्क तो नहीं पड़ेगा।

By Jagran News Edited By: Vinay Saxena Updated: Mon, 08 Apr 2024 03:57 PM (IST)
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पीलीभीत लोकसभा सीट पर द‍िलचस्‍प हुआ मुकाबला।
अभिषेक पांडेय, पीलीभीत। Pilibhit constituency UP Lok Sabha Chunav 2024: जिस जिले की तासीर में टाइगर की दहाड़ हो, वहां का मतदाता भला मौन कैसे रह सकता है। जल-जंगल के बीच बसे पीलीभीत संसदीय क्षेत्र में चेहरों पर बहस होती है, मुद्दों पर तर्कशक्ति युक्त संवाद होता है। नेपाल, उत्तराखंड सीमा से जुड़ी इस तराई के लोग राजनीति पर मौन नहीं, मुखर हैं। यहां के समीकरणों को समझते हैं और प्रस्तुत भी करते हैं। 35 वर्ष तक मेनका गांधी तो कभी वरुण गांधी को प्रतिनिधित्व सौंपने वाला जिला राजनीति के नए प्रयोगों पर असमंजस में नहीं, आत्मविश्वास में दिखता है। पीलीभीत संसदीय क्षेत्र से अभिषेक पांडेय की रिपोर्ट...

पीलीभीत के चुनावी मैदान में इस बार मेनका गांधी हैं न वरुण गांधी, क्या उनकी कमी खलेगी...? इन नामों के कारण वीआईपी बन चुकी सीट से जुड़े इस सवाल पर दो छोर से एक जवाब आता है। बरेली की सीमा से जुड़े ललौरीखेड़ा के कुलदीप सिंह हों या उत्तराखंड की सीमा से जुड़े न्यूरिया के मेहंदी हसन, दोनों का जवाब है- बहुत फर्क तो नहीं पड़ेगा। अब जो मैदान में हैं, सांसद तो उन्हीं में किसी एक को चुनना है। हां, इतना है कि मेनका गांधी या वरुण गांधी के कारण पीलीभीत को दूर तक पहचान मिली थी। फिलहाल, संतोष इस बात का है कि बदलते वक्त ने टाइगर रिजर्व और गोमती उद्गम स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर दिया।

अजय कहते हैं, सही मायने में विकास के नाम पर अभी तक सिर्फ यही दो अध्याय पढ़े जा सकते हैं। जरूरत तो औद्योगिक क्षेत्र की भी है, बाघों के हमले में मारे जा रहे ग्रामीणों की सुरक्षा की भी है और रोजगार के नए अवसरों की भी। इस चुनाव के लिए यही मुद्दे प्रत्याशियों के सामने रखेंगे, इन्हीं की कसौटी पर कसेंगे। अब तक कुछ मिला...? इसके जवाब में माधोटांडा के शकील हों या मानपुर के महिपाल, उनके चेहरे पर संतोष झलकता है।

यही भाव नेपाल सीमा से सटे नौजल्हा गांव के अमित सरकार और बिलसंडा निवासी शांतिस्वरूप के शब्दों में जाहिर होता है- ‘देखिए, राशन योजना ने हर जरूरतमंद का पेट भरने की व्यवस्था कर दी। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि ने खेती में खाद-बीज के खर्च में सहारा दे दिया। इनकी आवश्यकता शहरवालों की समझ में भले न आए, मगर गांव वाले सबसे ज्यादा इत्तेफाक रखते हैं। ‘सिर्फ उनके कहने पर इस दावे को मुकम्मल नहीं माना जा सकता इसलिए न्यूरिया के कलीमुल्ला से भी यही सवाल हुआ तो जवाब आया- पांच किलो राशन पकेगा कैसे? दाल, घी, तेल, गैस सिलेंडर की महंगाई कहां पहुंच चुकी है? सिर्फ योजनाओं से काम कब तक चलेगा, नियमित रूप से काम मिलेगा तभी पेट भरने का पुख्ता इंतजार हो सकेगा।

वह प्रधानमंत्री आवास योजना पर यह कहकर सवाल उठाते हैं कि क्या सिर्फ ढाई लाख रुपये में मकान बन सकता है? उनके इस सवाल को इसी नगर पंचायत के विमल किशोर यह कहकर खारिज कर देते हैं ‘क्या सबकुछ सरकार ही दे देगी, खुद के मकान में अपनी पूंजी भी तो लगाओ। मान लो कि योजना न होती तो... सौ प्रतिशत खर्च अपनी जेब से करना होता, कब तक कच्चे मकान में रहते?’

उनके इस जवाब की प्रतिक्रिया में दूसरी ओर से तल्खी न आ जाए, इस आशंका को समाप्त करने के लिए हमने विषय टाल दिया। हां, यह सवाल दिमाग में कौंधता रहा कि क्या योजनाओं पर यह शुद्ध बहस थी या पृष्ठभूमि में ध्रुवीकरण समाया है। पूरनपुर, बिलसंडा, बीसलपुर, बरखेड़ा में घूमेंगे तो ध्रुवीकरण दिखेगा और बड़े विषयों पर चर्चा भी। यहां के लोग स्थानीय चेहरों के बजाय सरकार के बड़े निर्णयों और देश के नेतृत्व की चर्चा करते हैं।

सीट तो अब भी वीआईपी...

वरुण के स्थान पर भाजपा प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री जितिन प्रसाद को प्रत्याशी बनाकर सीट का महत्व बरकरार रखा है। ब्राह्मण प्रत्याशी देने के पीछे जातिगत संतुलन का समीकरण भी साधा है। पूरनपुर के सौरभ कहते हैं, जितिन बगल वाले जिले से आए हैं। क्षेत्र में उनके आने का इंतजार नहीं करना पड़ेगा, जरूरत पड़ी तो शाहजहांपुर (जितिन का घर) है ही कितनी दूर।

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सपा ने बरेली के नवाबगंज के पूर्व विधायक भगवत सरन गंगवार को प्रत्याशी बनाया। इस पर बरखेड़ा के प्रकाश कहते हैं कि कुर्मी वोटरों की राजनीतिक दिलचस्पी किसी से छिपी नहीं है। भगवत सरन गंगवार भी नवाबगंज के रहने वाले हैं। यही कारण है कि भाजपा कुर्मी बहुलता वाले क्षेत्रों में स्थानीय मंत्री संजय सिंह गंगवार को आगे लेकर चल रही। बसपा ने यहां से अनीस अहमद खां फूल बाबू को प्रत्याशी बनाया है। वह भी पूर्व मंत्री हैं। बीसलपुर के रहने वाले हैं और मुस्लिम मतदाताओं में अच्छी पकड़ रखते हैं।

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पांच प्रमुख मुद्दे

  • बाघों से सुरक्षा और जंगल के सीमावर्ती गांवों में तार फेंसिंग की जरूरत
  • वृहद औद्योगिक क्षेत्र की आवश्कता, अब तक एक भी नहीं है।
  • नेपाल के सीमावर्ती गांवों का पिछड़ापन दूर करने को स्वरोजगार के अवसर चाहिए।
  • शारदा नदी के उफान से हर मानसून में दर्जनों गांव डूबते हैं, बचाव के स्थायी इंतजाम हों।
  • कृषि प्रधान जिले में कृषि महाविद्यालय की मांग अब तक पूरी नहीं।

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