प्रतापगढ़ में कांटे की लड़ाई, राजे-रजवाड़ों की धरती पर भाजपा के सामने साख बचाने की चुनौती; पढ़ें Ground Report
राजे-रजवाड़ों की धरती है प्रतापगढ़। अब तक राजनीति के कई रंग देख चुकी है यह धरा। इसे अवध क्षेत्र का प्रवेश द्वार माना जाता है। आजादी के आंदोलन में भी इस क्षेत्र का बड़ा नाम रहा है। राजनीति में यहां से निकले कई चेहरे पूरे देश में चमके। इस बार चुनावी लड़ाई कांटे की है। भाजपा के सामने साख बचाने की चुनौती है। रमेश रामनाथ यादव की रिपोर्ट...
Pratapgarh Lok Sabha Election: इस बार आम चुनाव में भाजपा सांसद संगम लाल गुप्ता के सामने जहां जीतने की चुनौती है, वहीं समाजवादी पार्टी प्रत्याशी डॉ. एसपी सिंह पटेल के पास अपने नाम के आगे सांसद लिखवाने का मौका है।
बसपा ने युवा प्रथमेश मिश्र सेनानी को मैदान में उतारकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। आमतौर पर मुद्दे दरकिनार हैं। विकास की चर्चा होती है तो जातीय समीकरण की भी। संसदीय क्षेत्र क्रमांक 39 प्रतापगढ़ के मुद्दों की बात करें तो यह कोई एक नहीं, अनेक हैं।
आंवला किसानों को उचित मूल्य नहीं मिलता। खारा पानी मुसीबत है। ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों की दशा ठीक नहीं है। उद्योग नहीं हैं। रोजगार के अवसर के लाले पड़े हैं। बड़ी संख्या में लोग सूरत, मुंबई, दिल्ली, पंजाब, कानपुर में रोजी रोटी के लिए हैं। उच्च शिक्षा संस्थानों की भारी कमी है। हास्टल नहीं हैं। ट्रैफिक प्लान नहीं है, मुख्यालय में जाम बड़ी समस्या है।
कभी कांग्रेस का गढ़ था प्रतापगढ़
ऐतिहासिक स्थल उपेक्षित हैं। पर्यटन के नक्शे पर इसे उभारा नहीं जा सका है। संसदीय क्षेत्र कभी कांग्रेस का गढ़ था। कालाकांकर राजघराने से राजा रामपाल सिंह कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में थे। इसी राजघराने के राजा दिनेश सिंह कांग्रेस से सांसद व विदेश मंत्री तक बने।
उनकी बेटी राजकुमारी रत्ना सिंह भी तीन अलग-अलग चुनावों में कांग्रेस से सांसद बनीं, हालांकि मौजूदा समय में वह भाजपा में हैं। इस बार कांग्रेस यहां सीधे मुकाबले में नहीं है। वह सपा के साथ गठबंधन में है। बसपा अकेले लड़ रही है।
मायावती, प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल और उनकी पार्टी के अन्य नेता यहां आ चुके हैं। मतदाता भी अब काफी हद तक खुलने लगे हैं। कचहरी रोड पर चाय पी रहे संजय पटवा कहते हैं ‘अबकी मुकाबला बड़ा दिलचस्प दिख रहा है।
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