Success Story: असफलता का सामना कर चढ़ी सफलता की सीढ़ी, जीवन में दर्द से मिली हिम्मत ने दिलाई जीत
UPPSC PCS 2021 Result उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के टापर अतुल कुमार सिंह को इस उपलब्धि को पाने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा। यह संघर्ष सिर्फ किताबों से नहीं बल्कि खुद से और सामाजिक दायित्वों से भी था।
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Sun, 23 Oct 2022 11:23 AM (IST)
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। सफलता हमेशा संघर्ष से ही मिलती है। संघर्ष में जो तकलीफ होती है वह हिम्मत देती है। यह हिम्मत ही लक्ष्य को पाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। प्रतापगढ़ के अतुल कुमार सिंह अपने जीवन में कुछ ऐसे ही दर्द से गुजरे पर कठिन परिश्रम और सफलता प्राप्ति की अदम्य इच्छाशक्ति के बल पर दर्द से पार पाते हुए वे उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीसीएस-2021) के टापर बने। वे कहते हैं कोविड से मां की मृत्यु के बाद वे बुरी तरह से टूट गए तो पत्नी और पिता ने हर कदम पर साथ दिया और खोया हुआ आत्म विश्वास लौटाया। यह खुशी असीम होती यदि मैं अपनी मां के साथ इस खुशी को बांट पाता।
प्रतापगढ़ के मांधाता राजगढ़ के गांव गोसाईपुर निवासी सेवानिवृत सांख्यिकी अधिकारी ओम प्रकाश सिंह के बेटे अतुल कुमार सिंह ने 2009 आआइआइटी से जैव प्रौद्योगिकी से बीटेक किया था। उसके बाद मल्टीनेशनल कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर दस लाख रुपये वार्षिक पैकेज पर नौकरी भी शुरू कर दी थी। पैसा और पद सब था लेकिन इस नौकरी से वे खुश नहीं थे। उनको अपना वर्क प्रोफाइल यानी काम पसंद नहीं आ रहा था। वे बताते हैं कि मुझे मंदी के दौर में यह नौकरी मिली थी, जो उस समय बड़ी बात थी लेकिन मैं खुश नहीं था। हमेशा इच्छा होती थी कि प्रशासनिक अधिकारी बनूं, लेकिन सामान्य मध्यम वर्गीय परिवारों में जिम्मेदारियों के बीच यूं नौकरी छोड़ना आसान नहीं होता है। इस बीच शादी भी हो गई। परिवार की जिम्मेदारियां भी बढ़ गईं। पांच वर्ष तक इसी धेड़बुन में नौकरी करता रहा। एक दिन पत्नी पिंकी सिंह से अपनी इच्छा बताई तो उन्होंने कहा कि नौकरी छोड़कर सपने को पूरा करो। इसके बाद 2015 में नौकरी छोड़ दी और तैयारी शुरू कर दी। वर्ष 2017 में वे भारतीय वन सेवा के साक्षात्कार में शामिल हुए पर दो नंबर कम होने के कारण चयनित नहीं हो सके लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी। उन्होंने तैयारी जारी रखी। 2019 में अतुल का चयन खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) और सहायक वन संरक्षक (एसीएफ) क्षेत्रीय वन अधिकारी (आरएफओ) में हुआ। वर्तमान में कोयंबटूर में एसीएफ के पद पर ट्रेनिंग कर रहे हैं।
समय पर मां के पास नहीं मौजूद रहने का दर्द: अतुल बताते हैं कि मां अस्थमा की मरीज थी। उनको कोविड वैक्सीन का पहला डोज दिया था। मैं यह मान रहा था कि मां को कोविड से कुछ नहीं होगा। इस बीच मेरी पत्नी के पिता को कैंसर हो गया, उनको हृदयरोग भी था। दो महीने बाद पीसीएस की प्रारंभिक परीक्षा भी होनी थी। इन तमाम हालातों के बीच मैं पत्नी के पिता के साथ दिल्ली के अस्पताल में था। इस बीच मां का स्वास्थ्य खराब होने की सूचना मिली। मां का आक्सीजन स्तर 40 से नीचे पहुंच चुका था। अस्पताल भर्ती नहीं कर रहे थे और मां का स्वास्थ्य गिरता जा रहा था। एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में दौड़ लगा रहे थे इस बीच मां ने बड़े अस्पताल में शिफ्ट करने के दौरान अंतिम सांस ली। यह मेरे लिए सदमे से कम नहीं था। दो महीने बाद जून में प्रारंभिक परीक्षा थी। मैं निढाल हो गया। मेरा पढ़ाई में मन नहीं लगता था। मैं सोचता था कि किसके लिए अब मैं कुछ बनूं। उम्मीद खत्म हो गई। हालांकि बाद में कोविड के कारण यह दो महीने के लिए टल गई थी। इन हालातों में पत्नी ने मुझे संभाला और हौंसला बढ़ाया। परेशानी की चरम स्थिति में मैने प्रारंभिक परीक्षा दी।
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