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श्रीमहानिर्वाणी अखाड़ा ने आमंत्रण पत्र पर लिखा छावनी प्रवेश-अमृत स्नान, पेशवाई-शाही स्नान शब्द का प्रयोग बंद

प्रयागराज महाकुंभ का बिगुल बज चुका है। ऐसे में श्रीमहानिर्वाणी अखाड़े ने अपने आमंत्रण पत्र पर छावनी प्रवेश-अमृत स्नान शब्द का प्रयोग किया है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी ने पेशवाई की जगह छावनी प्रवेश व शाही स्नान को राजसी स्नान लिखने का आह्वान किया था। उनके साथ नौ अखाड़े हैं दूसरे पक्ष से चार अखाड़े जुड़े हैं।

By Sharad Dwivedi Edited By: Vivek Shukla Updated: Thu, 07 Nov 2024 11:27 AM (IST)
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महानिर्वाणी अखाड़ा का आमंत्रण कार्ड। सौ. अखाड़ा
जागरण संवाददाता, प्रयागराज। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आह्वान पर अखाड़ों ने पेशवाई व शाही स्नान शब्द का प्रयोग बंद कर दिया है। प्रयागराज में छह अक्टूबर को मुख्यमंत्री ने अखाड़ों के प्रमुख संतों के साथ बैठक करके कहा था कि सनातन धर्म की परंपरा से गुलामी के प्रतीक नामों का प्रयोग बंद होना चाहिए।

इसके बाद अखाड़ों ने पेशवाई व शाही स्नान शब्द का प्रयोग करना बंद कर दिया, लेकिन अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद में दो गुट होने के कारण किसी नाम पर सहमति नहीं बन पायी है।

अखाड़ा परिषद अध्यक्ष (मनसा देवी ट्रस्ट के प्रमुख) श्रीमहंत रवींद्र पुरी ने पेशवाई की जगह छावनी प्रवेश व शाही स्नान को राजसी स्नान लिखने का आह्वान किया था। उनसे जुड़े नौ अखाड़ों में अधिकतर ने उस पर सहमति प्रदान कर दी।

कुंभ मेला को लेकर खाक चौक में समतलीकरण करती जेसीबी।-जागरण


वहीं, अखाड़ा परिषद के दूसरे गुट (श्रीमहानिर्वाणी) से जुड़े अखाड़े उससे सहमत नहीं हुए। श्रीमहानिर्वाणी, निर्मल अखाड़ा ने अपने आमंत्रण कार्ड में कुंभ मेला छावनी प्रवेश और कुंभ अमृत स्नान लिखवाया है। महानिर्वाणी अखाड़ा का भूमि पूजन छह दिसंबर, धर्मध्वजा पूजन 22 दिसंबर, कुंभ मेला छावनी प्रवेश शोभायात्रा दो जनवरी को है।

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अखाड़ा के सचिव श्रीमहंत यमुना पुरी का कहना है कि हमने गुलामी के प्रतीक नामों का प्रयोग बंद कर दिया है। इसकी जगह छावनी प्रवेश व अमृत स्नान लिखा गया है। यह नाम किसी के विरोध को लेकर नहीं लिखा। अभी किसी एक नाम पर आपसी सहमति नहीं बनी है। समय कम बचा है इस कारण अखाड़ों के संतों की राय लेकर नए नाम तय किए गए हैं।

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अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (मनसा देवी ट्रस्ट के प्रमुख) के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी ने बताया कि छावनी प्रवेश व राजसी स्नान शब्द काे लेकर सनातन धर्म के धर्माचार्यों, विद्वानों से राय ली गई थी। हमारे महामंत्री महंत हरि गिरि ने तमाम भाषाविदों से चर्चा की। इसके बाद नया नाम तय किया गया है। शासन-प्रशासन भी हमारे नाम का प्रयोग कर रहा है। हमारे साथ नौ अखाड़े हैं, दूसरे पक्ष से चार अखाड़े जुड़े हैं। उन्हें हमारी बात काटकर खुद को अलग दिखाना है। इस कारण नया नाम रखा है। यह अनुचित है। ऐसा नहीं करना चाहिए।

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