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सेवानिवृत्त कर्मचारी के खिलाफ विभागीय जांच नहीं हो सकती: इलाहाबाद हाई कोर्ट

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि कर्मचारी के सेवानिवृत्त होने के बाद उसके खिलाफ नियमानुसार विभागीय जांच नहीं की जा सकती है। कोर्ट ने सेवानिवृत्त कर्मचारी के खिलाफ प्रबंध निदेशक द्वारा 2721930.26 रुपये की वसूली आदेश रद कर दिया। कोर्ट ने कहा कि विभागीय जांच में कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और याची को साक्ष्य देने व सुनवाई का मौका नहीं दिया गया।

By Jagran News Edited By: Abhishek Pandey Updated: Fri, 30 Aug 2024 07:54 AM (IST)
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सेवानिवृत्त कर्मचारी के खिलाफ विभागीय जांच नहीं हो सकती: इलाहाबाद हाई कोर्ट
विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि कर्मचारी के सेवानिवृत्त होने के बाद वह कर्मचारी नहीं रह जाता। इसलिए सेवानिवृत्ति के बाद उसके खिलाफ नियमानुसार विभागीय जांच नहीं की जा सकती है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने राज्य भंडारण निगम फतेहपुर से सेवानिवृत्त कर्मचारी के खिलाफ प्रबंध निदेशक द्वारा 27,21,930.26 रुपये की वसूली आदेश रद कर दिया। कहा, विभागीय जांच में कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।

याची को साक्ष्य देने व सुनवाई का मौका नहीं दिया गया और एकपक्षीय जांच रिपोर्ट के आधार पर सेवा से हटाकर वसूली आदेश जारी किया गया। कोर्ट ने राज्य भंडारण निगम के वरिष्ठ अधिवक्ता ओपी सिंह के इस तर्क को मानने से इन्कार कर दिया कि नियमित जांच करने के लिए प्रकरण विभाग में वापस भेजा जाए क्योंकि विभागीय जांच याची के सेवानिवृत्त होने से पहले शुरू की गई थी और बाद में दंडित किया गया।

कोर्ट ने कहा, सेवानिवृत्त होने के बाद याची निगम का कर्मचारी ही नहीं रहा तो उसके खिलाफ विभागीय जांच कैसे की जा सकती है? यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार ने भंडारण सहायक रहे सुंदरलाल की याचिका आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया है।

याची के अधिवक्ता आशुतोष त्रिपाठी का कहना था कि विभागीय जांच में जांच अधिकारी द्वारा मौखिक साक्ष्य के लिए कोई तारीख तय नहीं की गई। उसे सफाई का मौका नहीं दिया गया। चार्जशीट के जवाब पर विचार नहीं किया गया। जवाब से असंतुष्ट होने का कोई कारण नहीं बताया गया। जांच में कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। याची को जांच में भाग लेने नहीं दिया गया और रिपोर्ट दे दी गई।

रेग्यूलेशन 16(3) का पालन नहीं किया गया। इस खामी को निगम के अधिवक्ता ने स्वीकार किया और कहा, फिर से जांच करने के लिए विभाग को मौका दिया जाए। इसे कोर्ट ने उचित नहीं माना और प्रबंध निदेशक की तरफ से 24 अक्टूबर 2016 को जारी वसूली आदेश रद कर दिया।

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