आपराधिक केस लंबित होने पर नियुक्ति देना या न देना नियोक्ता का अधिकार: इलाहाबाद हाई कोर्ट
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि आपराधिक केस लंबित होने के कारण किसी अभ्यर्थी को नियुक्ति देना या न देना नियोक्ता का अधिकार है। कोर्ट ने राज्य सरकार के आपराधिक केस लंबित होने के आधार पर नियुक्ति देने से इन्कार करने के आदेश को सही ठहराया है। सरकारी आदेश की वैधता की चुनौती में दाखिल विशाल सारस्वत की याचिका खारिज कर दी है।
विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक केस लंबित होने के कारण अभ्यर्थी को नियुक्ति देना या न देना नियोक्ता का अधिकार है। कोर्ट ने राज्य सरकार के आपराधिक केस लंबित होने के आधार पर नियुक्ति देने से इन्कार करने के आदेश को सही ठहराया है।
सरकारी आदेश की वैधता की चुनौती में दाखिल मथुरा के निवासी विशाल सारस्वत की याचिका खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय ने दिया है। वर्ष 2017 में याची की भाभी ने उनके बड़े भाई समेत परिवार के अन्य सदस्यों पर दहेज उत्पीड़न सहित विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था।
21 दिसंबर 2020 को याची को राज्य सभा सचिवालय में प्रोटोकाल अधिकारी के रूप में अनंतिम नियुक्ति दी गई थी। यह नियुक्ति आपराधिक मामले के परिणाम के अधीन थी। इसके बाद उसका चयन मुख्य कार्यकारी अधिकारी, रुड़की छावनी बोर्ड, उत्तराखंड में हो गया। इस बीच याची ने संयुक्त राज्य और उच्च अधीनस्थ सेवा परीक्षा 2019 में आवेदन किया और सफल घोषित किया गया। इसके खिलाफ आपराधिक मामला लंबित होने के कारण नियुक्ति देने से इन्कार कर दिया गया।
याची ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी। याची का कहना था कि वह केंद्र सरकार की सेवा में कार्यरत है। ऐसे में उसे अधीनस्थ सेवा परीक्षा में नियुक्ति दी जाय। न्यायालय ने कहा कि केंद्र सरकार की सेवाओं में कर्मचारी होने मात्र से किसी को राज्य की सेवाओं में नियुक्ति का अधिकार नहीं मिल जाता।
न्यायालय ने कहा कि सक्षम प्राधिकारी के आदेश में कोई दुर्भावना या पूर्वाग्रह नहीं दिखाई पड़ रहा है। अपर मुख्य सचिव, नियुक्ति अनुभाग-III, उत्तर प्रदेश शासन के आदेश में कोई त्रुटि न पाते हुए याचिका हस्तक्षेप से इन्कार कर खारिज कर दी।
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