जिस देश में बच्चियों की पूजा, वहीं मासूमों से दुष्कर्म बढ़ना चिंताजनक: हाई कोर्ट
मुकदमे से जुड़े तथ्यों के अनुसार 21 अप्रैल 2024 को बच्ची घर के बाहर गई थी। लोगों ने परिवार को बताया कि याची उसे जबरन साथ ले गया है। परिवार वालों ने लड़की की तलाश शुरू की। रेलवे गेट क्रासिंग के पास परिवार वालों को देख याची भाग खड़ा हुआ। बच्ची बेहोश व निर्वस्त्र थी। शरीर पर कई चोटें थीं। प्राथमिकी के अनुसार दुष्कर्म की कोशिश की गई थी।
विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि जिस देश में बच्चियां पूजी जाती हैं, वहां इनके साथ दुष्कर्म जैसा घृणित अपराध हो रहा है। ऐसी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। यह केवल पीड़िता ही नहीं, समाज के विरुद्ध गंभीर अपराध है। अनुच्छेद 21 में मिले जीवन के मूल अधिकारों का हनन है। यदि सही निर्णय नहीं लिया गया तो न्याय व्यवस्था से जनता का विश्वास उठ जाएगा।
इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने चार वर्ष की बच्ची के साथ दुष्कर्म के आरोपित की जमानत अर्जी खारिज कर दी है। साथ ही ट्रायल एक साल में पूरा करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने कहा कि जिस बच्ची को अपराध का मतलब नहीं मालूम, उसके साथ दुष्कर्म की कोशिश की गई। यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने कटघर, मुरादाबाद निवासी अभियुक्त अहसान की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए दिया है।मुकदमे से जुड़े तथ्यों के अनुसार 21 अप्रैल 2024 को बच्ची घर के बाहर गई थी। लोगों ने परिवार को बताया कि याची उसे जबरन साथ ले गया है। परिवार वालों ने लड़की की तलाश शुरू की। रेलवे गेट क्रासिंग के पास परिवार वालों को देख याची भाग खड़ा हुआ। बच्ची बेहोश व निर्वस्त्र थी। शरीर पर कई चोटें थीं।
प्राथमिकी के अनुसार दुष्कर्म की कोशिश की गई थी। याची ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा है कि उसे झूठा फंसाया गया है। 21 अप्रैल की घटना की प्राथमिकी छह दिन बाद 27 अप्रैल को लिखाई गई है। देरी का कारण नहीं बताया है। वह 31 मई से जेल में बंद है। याची का कहना है कि उसने शिकायतकर्ता के चालक वसीम के खिलाफ शिकायत की थी। वह गलत काम के बाद भागकर मेरे घर में घुस गया। पीड़िता के दोनों बयानों में विरोधाभास की बात भी की गई।
कहा गया कि मेडिकल रिपोर्ट में अंदरुनी व बाहरी कोई चोट नहीं मिली जबकि प्राथमिकी में शरीर पर चोटों का जिक्र है। याची ने अपने खिलाफ चार आपराधिक केस बताए हैं। सरकारी वकील ने जमानत का विरोध करते हुए कहा -अपराध जघन्य है। आरोपित जमानत पर रिहा किए जाने लायक नहीं है।
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