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HC ने तस्करी करने के आरोपी की जमानत अर्जी की खारिज, कहा- यौनशोषित बच्चों को सशक्त बनाने को वैधानिक सहायता प्रणाली हो

Allahabad High Court इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पोक्सो एक्ट के तहत यौन अपराध के पीड़ितों को सशक्त बनाने के लिए वैधानिक सहायता प्रणाली के महत्व पर जोर दिया है। कोर्ट ने कहा कि इन पीड़ितों को मानसिक आघात सामाजिक हाशिए पर होने और संसाधनों की कमी सहित अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो न्याय पाने की उनकी क्षमता में बाधा डालते हैं।

By Jagran News Edited By: Abhishek Pandey Updated: Tue, 22 Oct 2024 10:30 AM (IST)
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HC ने तस्करी करने के आरोपी की जमानत अर्जी की खारिज

विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पोक्सो अधिनियम के तहत यौन अपराध के ऐसे पीड़ितों को समर्थन देने के महत्व पर जोर दिया है, जो समाज का कमजोर वर्ग है। न्यायमूर्ति अजय भनोट ने कहा, इन पीड़ितों को मानसिक आघात, सामाजिक हाशिए पर होने और संसाधनों की कमी सहित अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो न्याय पाने की उनकी क्षमता में बाधा डालते हैं।

कोर्ट ने यह टिप्पणी 14 वर्षीय बेटी की तस्करी के आरोपित पिता की जमानत अर्जी खारिज करते हुए की है। आरोपित चार नवंबर, 2022 से जेल में बंद है। उसके खिलाफ मुकदमा थाना चौबेपुर, वाराणसी में दर्ज है। कोर्ट ने कहा, ‘कानूनी सहायता, चिकित्सा देखभाल और परामर्श जैसी वैधानिक सहायता प्रणालियां इन बच्चों को कानूनी प्रक्रिया को प्रभावी ढंग से संचालित करने व सशक्त बनाने के लिए आवश्यक हो जाती हैं।’

कोर्ट का कहना था कि कानून द्वारा गारंटीकृत सहायता प्रणालियों के अभाव में पोक्सो एक्ट के तहत यौन अपराधों के पीड़ित बच्चे सक्षम न्यायालय के समक्ष अपने मामलों को प्रभावी ढंग से नहीं चला सकते हैं। यौन अपराधों के पीड़ित बच्चों का सशक्तीकरण न्याय की उनकी खोज में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए अनिवार्य आवश्यकता है। यह उनके वैधानिक अधिकारों के फलस्वरूप प्राप्त किया जा सकता है।

अदालती कार्रवाई के दौरान यौन अपराधों के पीड़ित बच्चों को दिए गए अधिकारों से वंचित करना कानून के विधायी इरादे को पराजित करेगा और न्याय की विफलता का कारण बनेगा।’

दरअसल मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि पीड़िता को किसी सहायक व्यक्ति और कानूनी परामर्शदाता के अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं दी गई थी। न्यायालय ने अपने आदेश में पुलिस, बाल कल्याण समिति, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, चिकित्सा अधिकारी और जिला प्रशासन पुलिस सहित विभिन्न प्राधिकारियों की जिम्मेदारियों पर प्रकाश डाला ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसे पीड़ितों को उनका हक प्राप्त हो। हाई कोर्ट ने आदेश की प्रति डीजी पुलिस, एडीजीपी अभियोजन, महिला एवं बाल विकास लखनऊ को भेजने का निर्देश दिया है।

छात्राओं के यौन शोषण में प्रधानाचार्य को जमानत नहीं

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने नौ से 13 साल की छात्राओं का यौन शोषण करने के आरोपित सरकारी स्कूल के प्रधानाचार्य को जमानत देने से इन्कार कर दिया है। मामला बुलंदशहर का है। घटना की रिपोर्ट 25 मार्च 2024 को बुलंदशहर के अरनिया थाने में दर्ज की गई थी। न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की पीठ ने याची प्रताप सिंह को जमानत देने के लिए उपयुक्त मामला नहीं पाया।

पुलिस ने आइपीसी की विभिन्न धाराओं के साथ ही एससी-एसटी व पाक्सो अधिनियम में मामला दर्ज किया है। आरोप है कि याची बच्चों के निजी अंगों को छूता था और अपने मोबाइल पर अपलोड यौन सामग्री दिखाता था। याची के वकील ने कहा कि पीड़ितों को राज्य से कोई छात्रवृत्ति नहीं मिली, इसलिए झूठा फंसाया गया है। याची के पूर्व में कैंसर का मरीज होने की भी दलील दी गई।

कहा गया कि वह इस बीमारी से फिर प्रभावित हो सकता है। यह भी कहा कि याची कफ व सांस की बीमारी से ग्रस्त है। बच्चों का मेडिकल नहीं है। आरोपित केस दर्ज होने के बाद से ही जेल में बंद है। सरकार के वकील ने पीड़ितों की उम्र का हवाला देते हुए कहा कि अपराध गंभीर प्रकृति का है। याची की तरफ से प्रस्तुत मेडिकल प्रमाणपत्र नकली हैं। इसे बाद में याची ने प्राप्त किया है।

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