'तलाक, ट्रिपल तलाक का केस है या नहीं यह ट्रायल कोर्ट में तय होगा...', हाई कोर्ट ने की टिप्पणी
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) कानून की धारा 3/4के तहत जारी समन रद करने से इन्कार कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि तलाक ट्रिपल तलाक है अथवा नहीं यह तथ्य का विषय है और ट्रायल कोर्ट में साक्ष्य लेकर तय होगा। इसलिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत अंतर्निहित शक्ति का इस्तेमाल से केस रद्द नहीं हो सकता।
विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ट्रिपल तलाक (तलाक -ए -बिद्दत) को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। कोर्ट ने कहा है कि तलाक, ट्रिपल तलाक है अथवा नहीं, यह तथ्य का विषय है और ट्रायल कोर्ट में साक्ष्य लेकर तय होगा। इसलिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत अंतर्निहित शक्ति का इस्तेमाल कर दाखिल चार्जशीट या केस कार्रवाई रद नहीं की जा सकती।
कोर्ट ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) कानून की धारा 3/4के तहत जारी समन रद करने से इन्कार कर दिया है। हालांकि कहा है भारतीय दंड संहिता की धारा 494 (एक बीवी के रहते दूसरी शादी करने पर ) दंड के मामले में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 198 अदालत को संज्ञान लेने से रोकती है। इसलिए इस धारा में जारी समन अवैध होने के कारण रद किया जाता है।
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याची के खिलाफ केवल ट्रिपल तलाक के आरोप में ही ट्रायल चलेगा। यह आदेश न्यायमूर्ति राजबीर सिंह ने थाना खोराबार, गोरखपुर के जान मोहम्मद की याचिका निस्तारित करते हुए दिया है। याची की तरफ से अधिवक्ता सैयद वाजिद अली ने बहस की।
इनका कहना था कि याची के खिलाफ ट्रिपल तलाक का केस नहीं बनता, क्योंकि उसने एक माह के अंतराल पर तलाक की तीन नोटिस देने के बाद तलाक दिया है। यह तलाक -ए-बिद्दत नहीं है और धारा 494के अपराध पर कोर्ट को संज्ञान लेने का अधिकार नहीं है। यह धारा 198 से वर्जित है, यदि पीड़िता ने शिकायत न की हो।
पीड़िता ने दूसरी शादी की शिकायत नहीं की है इसलिए याची के खिलाफ दायर चार्जशीट समन और केस कार्रवाई रद की जाए। सरकारी वकील का कहना था कि याची के बेटे सलमान खान ने भी तीन तलाक दिए जाने का बयान दिया है। साथ ही शिकायतकर्ता के तीन तलाक देने के आरोप पर पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की है और अदालत ने उस पर संज्ञान भी लिया है ।
इसे भी पढ़ें-'बहू साथ ले गई बलिदानी बेटे की यादें, छलका कैप्टन...,' अंशुमान के माता-पिता का दर्द, अब इस बात की कर रहे मांगऐसे में यह नहीं कह सकते कि प्रथमदृष्टया याची पर अपराध नहीं बनता, इसलिए याचिका खारिज की जाए। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के भजनलाल केस सहित तमाम केसों का हवाला देते हुए कहा कि यदि प्रथमदृष्टया अपराध सामने आता है तो हाई कोर्ट चार्जशीट व प्राथमिकी रद नहीं कर सकती।
उसे केस के तथ्यों की जांच करने का अधिकार नहीं है। केवल असामान्य स्थिति में ही केस कार्रवाई रद की जा सकती है। कोर्ट ने धारा 494 की कार्रवाई रद कर दी है परंतु कहा है कि धारा 3/4 डब्ल्यू एम एक्ट के तहत केस चलेगा।
क्या है धारा 482दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 उच्च न्यायालयों को अंतर्निहित शक्तियां प्रदान करती है। उन्हें कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने और न्याय का उद्देश्य सुरक्षित करने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र के प्रयोग करने का अधिकार देती है।
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