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सबूत व तथ्य भिन्न होने पर ही एक ही घटना में हो सकती है दूसरी प्राथमिकी, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जारी किए आदेश

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि एक ही घटना के लिए दूसरी प्राथमिकी तभी दर्ज की जा सकती है जब सबूत और तथ्य अलग हों। कोर्ट ने कहा कि एक ही घटना के लिए दूसरी प्राथमिकी दर्ज करना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। हालांकि अगर घटनाक्रम अलग है या नए तथ्य सामने आए हैं तो दूसरी प्राथमिकी मंजूर की जा सकती है।

By Jagran News Edited By: Abhishek Pandey Updated: Tue, 15 Oct 2024 07:55 AM (IST)
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इलाहाबाद हाई कोर्ट की तस्वीर (फाइल फोटो)

विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि एक ही घटना की दूसरी प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती, ऐसा करना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है, किंतु घटनाक्रम भिन्न है, अलग तथ्य का खुलासा हुआ है तो दूसरी प्राथमिकी अनुमन्य है।

न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की एकलपीठ ने यह कहते हुए पति की हत्या के षड्यंत्र की प्राथमिकी दर्ज करने से मजिस्ट्रेट द्वारा इन्कार किए जाने व इसके खिलाफ पुनरीक्षण अदालत से अर्जी निरस्त करने संबंधी आदेशों को रद कर दिया है। साथ ही सीजेएम मथुरा को याची की तरफ से धारा 156(3) की अर्जी पर नए सिरे से आदेश पारित करने का निर्देश दिया है। यह आदेश संगीता मिश्रा की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया गया है।

मुकदमे से जुड़े तथ्यों के अनुसार, पुलिस ने तीन मई, 2020 को लावारिस शव बरामद किया था। दारोगा ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर गला दबाकर हत्या तथा साक्ष्य मिटाने के आरोप में प्राथमिकी लिखी। याची के कबूलनामे पर चार्जशीट दाखिल कर उसे जेल भेज दिया गया। जब याची जेल से बाहर आई तो उसने कोर्ट में हत्या की इसी घटना में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए अर्जी दी, जिसे मजिस्ट्रेट ने निरस्त कर दिया।

इसके खिलाफ पुनरीक्षण अर्जी भी निरस्त कर दी गई। दोनों ही आदेशों को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। कहा गया कि याची व उसके पति की जानकारी के बिना याची के ससुर ने संपत्ति का बेटों में बंटवारा कर दिया। पता चलने पर विवाद हुआ। विवाद खत्म करने के लिए उसके पति को उसके ही (पति के) भाई कहीं ले गए। पति लौट कर नहीं आए।

याची ने दूसरे दिन लापता होने की थाने में शिकायत की और 28 मई को दोबारा शिकायत की। पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। बाद में रिपोर्ट दर्ज की गई। पुलिस की प्राथमिकी के तथ्य अलग थे। इसमें पत्नी पर ही गला दबाकर पति की हत्या करने का आरोप है। इस मामले में चार्जशीट दाखिल की गई है।

‘अनिश्चितकाल तक किसी को निलंबित नहीं रख सकते’

विधि संवाददाता, जागरण: प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बिजली विभाग के जूनियर इंजीनियर के निलंबन आदेश पर रोक लगाते हुए वेतन सहित बहाल करने का आदेश दिया है। कहा है कि विभागीय कार्यवाही लंबित रहने के आधार पर किसी को अनिश्चितकाल तक निलंबित नहीं रखा जा सकता। कोर्ट ने राज्य सरकार से याचिका पर जवाब मांगा है।

मामले में अगली सुनवाई 17 नवंबर को होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार ने अनंत कुमार की याचिका पर दिया है। याची बिजली विभाग, मवाना मेरठ में जेई है। मीटर रीडिंग नहीं लेने व अन्य आरोप लगाकर अधीक्षण अभियंता ने तीन मई, 2024 को उसे निलंबित कर दिया और विभागीय जांच बैठा दी। इस आदेश को चुनौती दी गई है।

याची का कहना है कि जो आरोप लगाया गया है, वह उसकी जिम्मेदारी में नहीं आता। दूसरे की लापरवाही के लिए उसे निलंबित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने राज्य सरकार व बिजली विभाग से चार सप्ताह में जवाब मांगा और कहा कि इस आदेश से याची के खिलाफ विभागीय कार्यवाही प्रभावित नहीं होगी।

बांकेबिहारी मंदिर दीर्घा मामले में आज सुनवाई

विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट मंगलवार को मथुरा में बांकेबिहारी मंदिर दीर्घा (गलियारा) प्रकरण की सुनवाई करेगा। पिछली सुनवाई चार सितंबर को हुई थी। इसमें कोर्ट ने मंदिर के अतिक्रमण को चिह्नित कर हलफनामे के माध्यम से रिकार्ड पर लाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने यह आदेश जिलाधिकारी मथुरा को दिया था।

अनंत शर्मा व अन्य की जनहित याचिका पर हाई कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ आठ नवंबर 2023 को दीर्धा के लिए अपनी सहमति दे दी थी। इस आदेश को संशोधित करने के लिए राज्य सरकार ने अर्जी दी है। राज्य सरकार का कहना है कि उसे दीर्धा के लिए मंदिर की राशि खर्च करने की अनुमति दी जाए।

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