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LKG छात्र की याचिका पर कोर्ट ने शराब दुकान का नवीनीकरण रोका, कहा-ठेका देने के बाद बना स्कूल तो 2025 के बाद न बढ़ाएं अवधि

Allahabad High Court News याची का कहना था कि शासनादेश का उल्लंघन कर स्कूल के बगल में शराब ठेका दिया गया है। इस कारण आए दिन शराबियों की हुड़दंग से परेशानी होती है। कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा था कि शराब के ठेके का नवीनीकरण हर वर्ष कैसे होता जा रहा है? तो सरकार ने कहा कि ठेका स्कूल खुलने से पहले था और उपबंधों का हवाला दिया।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Wed, 08 May 2024 10:14 AM (IST)
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छात्र ने स्कूल से 20 फीट दूर स्थित शराब ठेके को हटाने की मांग की थी।
 विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि यदि स्कूल के समीप पहले से शराब का ठेका है तो जरूरी नहीं कि हर वर्ष उसका लाइसेंस बढ़ाया जाए। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने कानपुर में आजाद नगर स्थित सेठ एमआर जयपुरिया स्कूल के समीप शराब की दुकान का लाइसेंस मार्च 2025 के बाद बढ़ाने पर रोक लगा दी है।

यह आदेश मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली तथा न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने पांच वर्षीय एलकेजी के छात्र मास्टर अथर्व की जनहित याचिका पर दिया है। छात्र ने पिता के मार्फत जनहित याचिका दायर की थी और स्कूल से 20 फीट दूर स्थित शराब ठेके को हटाने की मांग की थी। कोर्ट ने इसे आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया है।

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याची का कहना था कि शासनादेश का उल्लंघन कर स्कूल के बगल में शराब ठेका दिया गया है। इस कारण आए दिन शराबियों की हुड़दंग से परेशानी होती है। कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा था कि शराब के ठेके का नवीनीकरण हर वर्ष कैसे होता जा रहा है? तो सरकार ने कहा कि ठेका, स्कूल खुलने से पहले था और उपबंधों का हवाला दिया।

कोर्ट ने व्याख्या करते हुए कहा कि लाइसेंस अवधि बीत जाने के बाद नवीनीकरण करना जरूरी नहीं है। दुकान का लाइसेंस 31 मार्च, 2025 तक है, इसलिए उसके बाद न बढ़ाया जाए। याचिका में यह भी कहा गया था कि अक्सर सुबह छह सात बजे से ही शराबियों का जमावड़ा लग जाता है।

स्कूल के पास रिहायशी बस्ती भी है, जहां सैकड़ों की संख्या में लोग रहते हैं। अथर्व के परिवार वालों ने कानपुर में अफसरों से लेकर सरकार तक कई बार शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। दलील दी गई कि यह स्कूल 2019 में खुला है और शराब का ठेका तकरीबन 30 वर्ष पुराना है।

तीन बच्चियों के हत्यारोपितों की मौत की सजा उम्रकैद में बदली

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तीन बच्चियों के हत्यारोपितों राजेंदर व नरवेश कुमार को सत्र अदालत शाहजहांपुर द्वारा सुनाई गई मौत की सजा को 20 साल की उम्रकैद में बदल दिया है और जेल में बंद दोनों आरोपियों को बची सजा पूरी करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा, केस "दुर्लभ में दुर्लभतम" की श्रेणी में नहीं आता। इसलिए मौत की सजा संशोधित कर उम्र कैद की सजा देना उचित होगा।

एक की आयु 75 साल तो दूसरे की 50 साल है। यह फैसला न्यायमूर्ति एके सांगवान तथा न्यायमूर्ति आरएमएन मिश्र की खंडपीठ ने आरोपियों राजेंदर व नरवेश की अपील खारिज करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा, सत्र अदालत के आदेश में अनियमितता हो सकती है लेकिन अवैधानिकता नहीं मिली। याचियों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता जीएस चतुर्वेदी व आदित्य तथा शिकायतकर्ता की तरफ से अधिवक्ता कुलदीप जौहरी ने बहस की।

मुकदमे के तथ्यों के अनुसार 15/16 अक्टूबर, 2002 की रात अवधेश कुमार के घर में घुसकर तीन आरोपियों ने फायर किया किंतु वह जान बचाकर भागने में सफल रहे। हमलावरों ने सो रही बेटियों, क्रमश: नौ वर्षीय रोहिणी, आठ वर्षीय नीता और सात वर्षीय सुरभि की गोली मारकर हत्या कर दी। इसे उनकी मां शशि देवी ने देखा।

विवेचना अधिकारी ने नामजद तीनों आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया और बच्चियों के पिता (शिकायतकर्ता) अवधेश कुमार के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। ट्रायल के दौरान गवाहों के परीक्षण में अवधेश कुमार निर्दोष करार दिए गए और नामजद आरोपियों के खिलाफ ट्रायल किया गया। सत्र अदालत ने गवाहों के बयान व साक्ष्यों के आधार पर तीनों आरोपितों की हत्या करने का दोषी पाया।

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एक आरोपित चुटकन्नू उर्फ नाथूलाल की 2010 में मौत हो गई। इसलिए दो आरोपितों को सजा सुनाई गई। इसके खिलाफ सत्र अदालत ने हाई कोर्ट में रिफरेंस भेजा था। कोर्ट ने कहा, पहला आरोपित जिसकी मौत हो चुकी है, उसका आपराधिक इतिहास है किंतु सजायाफ्ता दोनों आरोपियों का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। आरोपित शिकायतकर्ता की हत्या करने गए थे। बच्चियों की हत्या का इरादा नहीं था।

गांववालों ने अभियुक्तों को हथियार सहित मौके पर देखा था। बच्चियों की मां ने घटना देखी थी। यह केस रेयरेस्ट आफ रेयर नहीं है। मौत की सजा नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के तमाम फैसलों का सहारा लिया और सजा संशोधित कर दी।

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