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इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी- अपूरणीय विवाह विच्छेद को भी बनाया जाना चाहिए आधार

UP News in Hindi कोर्ट ने कहा यह समझ में नहीं आता है कि जब पार्टियां वर्षों से और कुछ मामलों में दशकों से अलग-अलग रह रही हैं तो अपूरणीय टूटन को एक आधार के रूप में मान्यता क्यों नहीं दी जा रही है? कोर्ट ने कहा ‘कई मामलों में पक्षों के बीच वैवाहिक जीवन केवल नाममात्र रह जाता है।

By Jagran News Edited By: Mohammed Ammar Updated: Fri, 01 Mar 2024 10:06 PM (IST)
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इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी- अपूरणीय विवाह विच्छेद को भी बनाया जाना चाहिए आधार
विधि संवाददाता, प्रयागराजः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक के आधार में संशोधन की आवश्यकता जताई है। कोर्ट ने कहा है कि वो विवाह जिसे पुनर्स्थापित नहीं किया जा सकता अथवा पूर्व की स्थिति में नहीं लाया जा सकता, उस पर विचार करने का समय है। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने की है।

कोर्ट ने कहा, ‘चाहे प्रेम विवाह हो या परिवारिक सम्मति से, विभिन्न कारक रिश्ते को प्रभावित करते हैं। यह कहना जरूरी नहीं कि प्रत्येक क्रिया की समान प्रतिक्रिया होती है। प्रेम विवाह की तरह आसानी से होने वाले विवाह (परिवारिक सम्मति) भी वैवाहिक विवाद का कारण बन रहे हैं।

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है? पक्ष ऐसे रिश्ते को जारी रखने के इच्छुक नहीं हैं। यह टिप्पणी खंडपीठ ने एक डाक्टर की अपील पर सुनवाई करते हुए की, जिसने लगभग 30 वर्षों तक भारतीय सेना में भी सेवा की है।

फैमिली कोर्ट ने उसे अपनी पत्नी को जो वरिष्ठ डाक्टर भी है, तलाक देने की अनुमति देने से इन्कार कर दिया था। शादी 2007 में हुई थी। यह दूसरी शादी थी। 2015 में तलाक के लिए आवेदन करने से छह साल पहले पत्नी ने पति को छोड़ दिया था। क्रूरता के आधार पर तलाक मांगा गया था। फैमिली कोर्ट ने पति की अर्जी स्वीकार नहीं की तो 2019 में हाई कोर्ट में अपील दायर की गई। यहां पति की मुख्य दलील यह थी कि पत्नी लंबे समय से उससे दूर है और यह मानसिक क्रूरता है।

कोर्ट ने कहा, विवाह के अपूरणीय टूटन को सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के आधार के रूप में मान्यता दी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नवीन कोहली मामले में दिए गए फैसले का उल्लेख करते हुए खंडपीठ ने कहा, कानूनन तलाक की मंजूरी के आधारों में यह है कि याचिका दायर करने से पहले कम से कम दो साल की निरंतर अवधि के लिए याची ने परित्याग किया हो।

कोर्ट ने कहा, यह समझ में नहीं आता है कि जब पार्टियां वर्षों से और कुछ मामलों में दशकों से अलग-अलग रह रही हैं, तो अपूरणीय टूटन को एक आधार के रूप में मान्यता क्यों नहीं दी जा रही है? कोर्ट ने कहा, ‘कई मामलों में पक्षों के बीच वैवाहिक जीवन केवल नाममात्र रह जाता है।’ सुप्रीम कोर्ट ने लगातार महसूस किया है कि ऐसे अव्यावहारिक वैवाहिक संबंधों को जारी रखना पक्षों पर मानसिक क्रूरता के अलावा कुछ नहीं है।

वर्तमान मामले के संदर्भ में अदालत ने कहा कि चूंकि पत्नी काफी लंबे समय से पति से दूर रह रही है और यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि उसे वैवाहिक जीवन जारी रखने में कोई दिलचस्पी नहीं है। यह पाते हुए कि शादी पूरी तरह टूट गई है, निश्चित रूप से इस मामले को पति पर ‘मानसिक क्रूरता’ का मामला माना जाना चाहिए।

शादी पूरी तरह अव्यावहारिक और भावनात्मक रूप से मृत है। कोर्ट ने अपील मंजूर कर ली और पति के पक्ष में तलाक की डिक्री देते कहा, तलाक दिया जा सकता है।’ हाई कोर्ट ने आदेश की प्रति गंभीरतापूर्वक विचार के लिए विधि आयोग एवं सचिव कानून एवं न्याय मंत्रालय, भारत सरकार को भी भेजने का निर्देश संबंधितों को दिया है। अपीलार्थी का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता तरूण अग्रवाल एवं पंकज अग्रवाल ने किया।

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