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UP News: इलाहाबाद विश्वविद्यालय में खुला बंद लॉकर तो निकला हजारों वर्ष पुराना 'खजाना', जम्‍मू-कश्‍मीर का यह राज भी आया सामने

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय में 25 वर्षों से बंद पड़े लॉकर-अलमारी से एक अनमोल खजाना मिला है। इसमें 500 से अधिक प्राचीन सिक्के जम्मू-कश्मीर राजवंश के इतिहास को दर्शाने वाले दुर्लभ दीनार सिक्के पर्शियन भाषा में लिखा एक शाही फरमान और ताम्रपत्र पर अंकित पाली भाषा में विनय पिटक शामिल हैं। यह खोज इतिहासकारों के लिए महत्वपूर्ण है जम्मू-कश्मीर के प्राचीन इतिहास पर नए आयाम खोल सकती है।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Fri, 18 Oct 2024 07:45 AM (IST)
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय का खुला लॉकर।-जागरण

 जागरण संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय में 25 वर्षों से बंद पड़े लॉकर और अलमारी से 'खजाना' निकला है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण दुर्लभ दीनार के वह सिक्के हैं, जो जम्मू-कश्मीर राजवंश के इतिहास पर रोशनी डाल रहे हैं।

कुछ सिक्कों का मुद्राशास्त्र विशेषज्ञ से परीक्षण के बाद सामने आई रिपोर्ट के अनुसार ये सिक्का लगभग 400-500 ईस्वी के बीच किदाराइट साम्राज्य द्वारा जारी किए गए थे, जो उस समय जम्मू और कश्मीर क्षेत्र पर शासन करता था। इसके अलावा मिली धरोहरों में विभिन्न धातुओं के करीब 500 प्राचीन सिक्के, पर्शियन भाषा में लिखा एक शाही फरमान और ताम्रपत्र पर अंकित पाली भाषा में विनय पिटक शामिल है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के केंद्रीय लाइब्रेरी में स्थित आलमारियों से निकले ताम्र पत्र व अभिलेख। सौ. इवि


विनय पिटक बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अनुशासन नियमों का संग्रह है। एक दशक से भी ज्यादा समय से इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मौजूद इस पुरातात्विक धरोहरों को 1998 में एक समिति ने लाकर व अलमारी में बंद कर दिया था। इसके बाद से ये वस्तुएं अनछुई थीं।

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गुरुवार को लॉकर खुलने के बाद सिक्कों का मुद्राशास्त्र विशेषज्ञ से परीक्षण कराया गया है। इसकी रिपोर्ट के अनुसार 400-500 ईस्वी में किदाराइट साम्राज्य जम्मू और कश्मीर क्षेत्र पर शासन करता था। इस विशेष सिक्के का वजन 7.34 ग्राम है और इसका व्यास 21 मिमी है। इसे गोल आकार में तैयार किया गया था।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के केंद्रीय लाइब्रेरी में स्थित आलमारियों से निकले ताम्र पत्र व अभिलेख। सौ. इवि


हालांकि यह थोड़ा असमान है। सोने से निर्मित इस सिक्के की रचना "डिबेस्ड" मानी जाती है, जिसका अर्थ है कि इसमें शुद्ध सोने की मात्रा कम है। इसके अग्रभाग पर एक राजा को खड़ा दिखाया गया है, जो बाएं तरफ वेदी पर बलि दे रहा है।

राजा के हाथ के नीचे ब्राह्मी लिपि में लिखा हुआ है, जिसका अनुवाद "किदारा" होता है, जो किदाराइट साम्राज्य के शासक का संदर्भ है। इस खोज से किदाराइट साम्राज्य और जम्मू-कश्मीर के प्राचीन इतिहास पर शोध करने वाले विद्वानों के लिए नए आयाम खुल सकते हैं।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय की केंद्रीय लाइब्रेरी में बंद पड़े लाकर से मिले पुरातात्विक महत्व के सिक्के।- इवि


चांदी, तांबा और सोने के सिक्के भी शामिल

लॉकर में मिले प्राचीन सिक्के विभिन्न शासकों के काल से संबंधित हैं और इनमें से कई सिक्के 2,000 साल पुराने माने जा रहे हैं। इनका संबंध मौर्य, कुषाण, और गुप्तकाल जैसी प्राचीन सभ्यताओं से है। वहीं, पर्शियन भाषा में लिखा हुआ शाही फरमान 16वीं शताब्दी का है, जब इलाहाबाद सूबा बना था और यह सोरांव तहसील से संबंधित है।

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जम्मू-कश्मीर में अल्पकालिक था किदाराइट का प्रभाव

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इतिहासकार प्रो. हर्ष कुमार के मुताबिक किदाराइट साम्राज्य का इतिहास मध्य एशिया और भारत के उत्तरी क्षेत्र, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर से जुड़ा है। यह साम्राज्य चौथी से छठी शताब्दी के बीच सक्रिय था।

किदाराइट्स मध्य एशियाई जनजाति थे, जिन्हें "हेफथलाइट्स" या "सफेद हूणों" से भी जोड़ा जाता है, इनके बारे में ऐतिहासिक जानकारी सीमित और विवादित है। किदाराइट्स का जम्मू-कश्मीर में प्रभाव अल्पकालिक था, लेकिन उन्होंने राजनीतिक संक्रमण के इस युग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मिले सिक्के (दीनार) किदाराइट साम्राज्य के शासक प्रतापादित्य-टू के शासन काल के बताए जाते हैं।

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