बिना उचित कारण के जीवनसाथी से अलग रहना क्रूरता, इलाहाबाद हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा है कि हिंदू विवाह में बिना किसी उचित कारण के जीवनसाथी से अलग रहना क्रूरता है। कोर्ट ने इस मामले में आदेश दिया कि दोनों के बीच विवाह विच्छेद हो चुका है और पति को पत्नी को एकमुश्त पांच लाख रुपये स्थायी गुजारा भत्ते का भुगतान तीन महीने के भीतर करना होगा।
विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाह में बिना किसी उचित कारण जीवनसाथी से अलग रहना क्रूरता है। हिंदू विवाह वैवाहिक संस्कार है, कोई सामाजिक अनुबंध नहीं। जीवनसाथी को छोड़ना संस्कार, अपनी आत्मा व भावना को समाप्त करना है।
इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने मामले में आदेश सुनाया कि दोनों के बीच विवाह विच्छेद हो चुका है। साथ रहना नहीं चाहते। इसलिए पति एकमुश्त पांच लाख रुपये पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ते का भुगतान तीन महीने के भीतर करे। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो आठ प्रतिशत ब्याज देना होगा।
यह आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह तथा न्यायमूर्ति डोनादी रमेश की खंडपीठ ने अभिलाषा श्रोती की प्रथम अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया है।
कोर्ट ने भंग किया था विवाह
झांसी निवासी अभिलाषा स्रोती की शादी राजेंद्र प्रसाद श्रोती के साथ 1989 में हुई। उन्हें 1991 में एक बच्चा हुआ। दोनों शादी के कुछ साल बाद अलग हो गए। समझौते के तहत कुछ समय बाद फिर साथ रहने लगे, लेकिन 1999 में फिर अलग हो गए। फिर साथ आए, लेकिन 2001 में तीसरी बार अलग हो गए और तब से अलग-अलग रह रहे हैं। पति ने पारिवारिक न्यायालय, झांसी में विवाह विच्छेद के लिए वाद दाखिल किया।
पारिवारिक अदालत ने मानसिक क्रूरता के आधार पर विवाह को भंग कर दिया। इस आदेश के खिलाफ पत्नी ने अपील दाखिल की। खंडपीठ ने परिवार अदालत के आदेश में हस्तक्षेप से इन्कार कर दिया।
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