UP Lok Sabha Election: रघुराज प्रताप उर्फ राजा भइया के रुख से मुश्किल में भाजपा, इन सीटों पर फंस सकता है पेंच
UP Lok Sabha Election पिछले एक महीने से कौशांबी की राजनीति गरमाई हुई है। रघुराज ने सब कुछ समर्थकों पर छोड़कर तपिश और बढ़ा दी है। स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी किसी दल के साथ नहीं है। इससे वोटरों की उलझन और बढ़ गई है और वोटरों को रिझाने के लिए भाजपा सपा और बसपा के नेताओं की जिम्मेदारी भी।
जागरण संवाददाता, प्रयागराज। जिस दौर में सभी भाजपा की ओर जा रहे हैं। ऐसे समय में जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के राष्ट्रीय अध्यक्ष व कुंडा विधायक रघुराज प्रताप सिंह ‘राजा भैया’ ने अपने समर्थकों और लोकसभा चुनाव में उतरे प्रत्याशियों को खरा संदेश दिया है। दो प्रमुख दल के प्रत्याशियों के समर्थन मांगने पर साफ किया कि इस चुनाव में जनसत्ता दल लोकतांत्रिक की ना काहू से दोस्ती है न काहू से बैर।
कहा तो यह भी जा रहा है कि अपने राजनीतिक भविष्य को देखते हुए कौशांबी सांसद चुनने का दायित्व सीधे मतदाताओं के हाथों में सौंप दिया है। इस बयान के बाद कौशांबी (सुरक्षित) लोकसभा में अचानक चुनावी तपिश बढ़ गई है। 20 मई को होने वाले चुनाव में इस बार कांटे की टक्कर दिखाई दे रही है।रघुराज से समर्थन के लिए मंगलवार को केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान और सांसद विनोद सोनकर बेंती कोठी पहुंचे थे। इससे पूर्व सपा प्रत्याशी पुप्पेंद्र सरोज व पूर्व मंत्री इंद्रजीत ने भी मुलाकात कर समर्थन मांगा था। लेकिन “राजा” का कांटा न इधर गया न उधर।
इसे भी पढ़ें- इन दो दिग्गजों के बीच 33 साल से चल रही दुश्मनी, अब गठबंधन में हुए एक साथ, 'हाथ' मिला, 'दिल' नहींकौशांबी लोकसभा सीट का चुनावी समीकरण यहां की तीन विधानसभा सिराथू, मंझनपुर (सुरक्षित) और चायल के अलावा प्रतापगढ़ की दो विधानसभा बाबागंज (सुरक्षित) व कुंडा तय करती है। रघुराज प्रताप सिंह का कुंडा और आसपास के क्षेत्रों में मजबूत जनाधार है। उनके समर्थकों का एक बड़ा समूह है, जो किसी भी चुनाव में एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
वह स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ते हैं और उनका एक अलग वोट बैंक है जो किसी भी पार्टी के उम्मीदवार के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है। इसके अलावा क्षेत्र में उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता और प्रभाव का असर भी चुनाव को प्रभावित करता रहा है। यही कारण है कि वह कुंडा विधानसभा से लगातार सातवीं बार विधायक है।हालांकि वर्ष 2022 के चुनाव में पहली बार ऐसा हुआ जब जब रघुराज की जीत का अंतर एक लाख से नीचे आया। बाबागंज विधान की कहानी भी इससे अलग नहीं है। यहां भी रघुराज प्रताप सिंह का खासा प्रभाव है। यहां विनोद सरोज वर्ष 2007 से लगातार चौथी बार विधायक हैं तो इससे पूर्व विनोद के पिता रामनाथ सरोज यहां से विधायक रहे। वह भी रघुराज समर्थित रहे।
इसे भी पढ़ें- प्रदेश का सबसे गर्म शहर बना आगरा, आसमान से बरस रही आग, जानिए आज यूपी के मौसम का हालकुंडा और बाबागंज विधानसभा क्षेत्र में रघुराज समर्थकों और सांसद विनोद सोनकर के बीच तनातनी जगजाहिर है। मंगलवार को केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान और सांसद विनोद सोनकर रघुराज प्रताप से मिलने पहुंचे थे, हालांकि वह भी उन्हें अपने पक्ष में नहीं कर सके।
दोनों नेताओं की मुलाकात की तस्वीर जैसे ही सामने आई लोकसभा सीट के चुनावी समीकरण बदलने की चर्चा शुरू हो गई। राजनीति के जानकार इसे विनोद सोनकर के लिए झटका मान रहे हैं। कहते हैं जनसत्ता दल लोकतांत्रिक का समर्थक राष्ट्रीय नीतियों को देखता है। इससे बहुत फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन वर्तमान में सपा को इसका लाभ होता दिखाई दे रहा है।जिसे मिला कुंडा-बाबागंज का साथ वह पहुंचा दिल्ली
पिछले एक महीने से कौशांबी की राजनीति गरमाई हुई है। रघुराज ने सब कुछ समर्थकों पर छोड़कर तपिश और बढ़ा दी है। स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी किसी दल के साथ नहीं है। इससे वोटरों की उलझन और बढ़ गई है और वोटरों को रिझाने के लिए भाजपा, सपा और बसपा के नेताओं की जिम्मेदारी भी।बाबागंज विधानसभा में मतदाताओं की कुल संख्या 3,27,407 जबकि कुंडा विधानसभा में 3,65,942 मतदाता हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी विनोद सोनकर को 3,83,009, सपा प्रत्याशी इंद्रजीत सरोज को 3,44,287 और जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के प्रत्याशी शैलेंद्र कुमार 1,56,406 वोट हासिल हुए थे।
भाजपा ने दो बार के सांसद विनोद सोनकर को तीसरी बार चुनाव मैदान में उतारा है। सपा ने पांच बार के विधायक और पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज के बेटे पुष्पेंद्र सरोज पर दांव चला है। बसपा ने शुभ नारायण गौतम को टिकट दिया है।यह माना जाता है कि कुंडा और बाबागंज विधानसभा में जिस प्रत्याशी को जनता जनार्दन का आशीर्वाद मिल जाता है, उसके सिर पर ही ताज सजता है। इन दोनों विधानसभाओं पर रघुराज प्रताप सिंह का खासा प्रभाव कई वर्षों से है। इसलिए उनका रुख हमेशा अहम रोल निभाता है। तीन बार इनके करीबी शैलेंद्र कुमार सांसद भी रह चुके हैं।
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