HC News: चलती कार में सामूहिक दुष्कर्म व हत्या में फांसी की सजा उम्रकैद में बदली, साढ़े छह साल पहले हुई थी घटना
बुलंदशहर में चलती कार में सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले में हाई कोर्ट ने फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। कोर्ट ने कहाअभियुक्तों को बिना किसी छूट के 25 वर्ष की निश्चित अवधि जेल में बितानी होगी। कोर्ट ने कहा कि अपीलार्थियों का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और उनकी आयु लगभग 24 वर्ष है इसलिए उनके सुधार-पुनर्वास की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।
विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। बुलंदशहर में छह साल पहले चलती कार में सामूहिक दुष्कर्म तथा हत्या मामले में सुनाई गई फांसी की सजा इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दी है। कोर्ट ने कहा है कि अभियुक्तों (अपीलकर्ताओं) को बिना किसी छूट के 25 वर्ष की निश्चित अवधि जेल में बितानी होगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान और न्यायमूर्ति अजहर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अपीलार्थियों का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। उनकी आयु लगभग 24 वर्ष है। उनके सुधार-पुनर्वास की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। यह दुर्लभतम मामला नहीं है जिसमें मौत की सजा दी जा सकती हो।
जुल्फिकार अब्बासी, इजराइल उर्फ मलानी व दिलशाद अब्बासी की तरफ से फांसी की सजा के खिलाफ दायर अपील को हाई कोर्ट ने आंशिक रूप से स्वीकार किया है। नगर कोतवाली पुलिस ने यह मामला जनवरी 2018 को दर्ज किया था। तीन जनवरी को पीड़िता का शव दादरी के रजवाहे में मिला था।
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उसकी मां ने रिपोर्ट लिखाई थी कि बेटी ट्यूशन पढ़ कर लौट रही थी और गायब है। शव मिलने तथा पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने पाक्सो एक्ट की धारा 5 जी/6 के साथ साथ आइपीसी की धारा 364, 376 डी, 302/34 व 404 में मुकदमा दर्ज किया था। अभियुक्तों की गिरफ्तारी नौ जनवरी को हुई।
उन्होंने पुलिस के समक्ष स्वीकार किया कि वे कार में जा रहे थे। इसी दौरान साइकिल से जा रही लड़की को खींच कर उसके साथ दुष्कर्म करने के बाद दुपट्टे से गला कस दिया। बुलंदशहर की पाक्सो कोर्ट ने 26 मार्च 2021 को फांसी की सजा सुनाते समय सख्त टिप्पणी की थी।
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कहा था, ‘अगर पढ़ाई के लिए घर से बाहर निकलने वाली बेटियों की सुरक्षा नहीं की गई तो बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ जैसे अभियान के कोई मायने नहीं रह जाएंगे।’ खंडपीठ ने रिकार्ड और कार्रवाई ट्रायल कोर्ट को वापस भेजने का निर्देश दिया है।
संबंधित प्रकरण में पुलिस ने ठोस साक्ष्य जुटाने के लिए छात्रा के माता-पिता का ब्लड सैंपल डीएनए जांच के लिए लखनऊ स्थित प्रयोगशाला भी भिजवाया था। ट्रायल कोर्ट ने विभिन्न धाराओं में जुर्माना भी लगाया था। उसे हाई कोर्ट ने बरकरार रखा है।