फूलपुर उपचुनाव: कांग्रेस पर राजनीति की दोधारी तलवार की मार, भाजपा-सपा में ठनी
Phulpur By-Election फूलपुर उपचुनाव में कांग्रेस राजनीति की दोधारी तलवार की मार झेल रही है। एक ओर सपा के मुजतबा सिद्दीकी और भाजपा के दीपक पटेल के बीच मुकाबला है तो दूसरी ओर बसपा के जितेंद्र सिंह भी दम दिखा रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस के बागी सुरेश यादव ने भी ताल ठोक दिया है। पार्टी कार्यकर्ता और पदाधिकारी असमंजस में हैं।
जागरण संवाददाता, प्रयागराज। फूलपुर तहसील की बाबूगंज, झूंसी, बहादुरपुर कानूनगो सर्किल, सिकंदरा, फाजिला उर्फ कालूपुर, रामगढ़ कोठारी, सरायगनी, चैमलपुर, अतनपुर पटवार सर्किल मिलकर फूलपुर विधानसभा बनाती हैं। इसी में यहां की नगर पंचायत भी शामिल है।
क्षेत्र की विरासत को बताने के लिए इफको की ऊंची ऊंची चिमनियां काफी हैं। यहां होने वाला विधानसभा का उपचुनाव राेचक होगा। वजह, सपा के मुजतबा सिद्दीक और भाजपा के दीपक पटेल का आमने सामने होने के साथ बसपा के जितेंद्र सिंह का भी दमदारी दिखाना है।
कुल 12 उम्मीदवार यहां ताल ठोक रहे हैं जिसमें कांग्रेस से बागी सुरेश यादव भी शामिल हैं। कहना गलत न होगा कि कांग्रेस पर राजनीति की दोधारी तलवार की मार पड़ रही है। पार्टी कार्यकर्ता, पदाधिकारी के साथ समर्थक भी पसोपेश में हैं।
क्षेत्र का नाम लेते ही प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू का नाम कौंध जाता है। वह यहां की संसदीय सीट से जीत कर प्रधानमंत्री बने। यही वजह है कि क्षेत्र को कांग्रेस अपनी विरासत मानती है। राजनीति की चाल ही कहेंगे कि वर्तमान में कांग्रेस परिदृश्य से गायब है। वह पर्दे के पीछे खड़ी होकर सपा को समर्थन दे रही है।
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शीर्ष नेतृत्व ने अपना उम्मीदवार न उतारने का निर्णय लिया। उधर, धरातल पर कार्य करने वाले कार्यकर्ता और पदाधिकारी इस निर्णय से बहुत संतुष्ट नहीं हैं। उन्हीं में से एक कांग्रेस के गंगापार अध्यक्ष सुरेश यादव ने पार्टी लाइन से हटकर ताल ठोक दिया।
महत्वपूर्ण यह कि जब वे नामांकन के लिए पहुंचे तो समर्थक राहुल और प्रियंका के कटआउट हाथ में लिए हुए थे। बावजूद इसके कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय ने उन्हें नोटिस देकर जवाब मांगा गया। बाद में छह वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया। अब प्रचार का दौर चल रहा है।तमाम कांग्रेसी उनके साथ क्षेत्र में नजर आ रहे हैं। इनमें से पांच समर्थकों को भी पार्टी की ओर से नोटिस दिया गया है। पूछा गया है कि वे पार्टी विरोधी गतिविधि में क्यों शामिल हैं, इस पर उनका कहना है कि वे कांग्रेस को क्षेत्र में जीवित रखने के लिए प्रयास रत हैं। उधर सपा उम्मीदवार का प्रचार पार्टी कैडर के लोग कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस नेता व अन्य कार्यकर्ता पूरी तरह से परिदृश्य से गायब हैं।
अहम यह कि जो पार्टी चुनाव से लगभग किनारा किए हुए है वह बिना लड़े ही नुकसान उठा रही है। अपने गंगापार अध्यक्ष को निकालने के साथ पांच अन्य नेताओं को भी किनारे लगा चुकी है। राजनीति में यह दोधारी तलवार की मार पार्टी की अपनी रणनीतिक हार कहेंगे या फिर उनकी जमीन के बंजर होने की कहानी है।
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तमाम राजनीतिक पंडित इसे पार्टी की वैचारिक शून्यता भी करार दे रहे हैं फिलहाल पार्टी के महानगर अध्यक्ष प्रदीप मिश्र अंशुमन का कहना है कि पार्टी में किसी तरह की कमजोरी नहीं है। कार्यकर्ता उत्साह से भरे हैं। हम सब ने अपना जोर लोकसभा चुनाव में दिखाया है। आगे और दमदारी दिखाएंगे।उप चुनाव में उम्मीदवार न उतारना शीर्ष नेतृत्व की रणनीति और निर्णय है। हम सब गठबंधन धर्म का पालन कर रहे हैं। प्रत्येक कार्यकर्ता अनुशासित और सक्रिय है। शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ जाने वाले पर कार्रवाई की गई है। पाटी की विचारधारा के लोगों को गठबंधन उम्मीदवार के साथ ले जाएंगे।
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