अदालतें कानून के तहत आदेश देकर अहसान नहीं करतीं, पुरानी पेंशन के मामले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी
इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली तथा न्यायमूर्ति विकास की खंडपीठ ने रेलकर्मी अविनाशी प्रसाद की याचिका मंजूर करते हुए कहा कि अदालतें या अधिकरण कर्मचारी के पक्ष में कानून के आधार पर फैसला सुनाती हैं कोई अहसान नहीं करतीं। जो आदेश ट्रिब्युनल या कोर्ट देती है वह कानून के मुताबिक होता है। याची ने पुरानी पेंशन योजना में शामिल किए जाने की मांग की थी।
विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रेलवे कर्मी की याचिका मंजूर करते हुए कहा कि अदालतें या अधिकरण कर्मचारी के पक्ष में कानून के आधार पर फैसला सुनाती हैं, कोई अहसान नहीं करतीं। जो आदेश ट्रिब्युनल या कोर्ट देती है, वह कानून के मुताबिक होता है।
यह टिप्पणी मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली तथा न्यायमूर्ति विकास की खंडपीठ ने बुधवार को रेलकर्मी अविनाशी प्रसाद की याचिका पर दिया है।
केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण, प्रयागराज (कैट) ने रेल कर्मचारी की पेंशन की मांग खारिज करते हुए कहा था कि उसे नौकरी मिल गई, इसका धन्यवाद देना चाहिए। अन्यथा सैकड़ों लोग कोर्ट में नौकरी के लिए केस लड़ रहे हैं। इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। याची ने कैट में पुरानी पेंशन स्कीम का लाभ दिए जाने की मांग की थी, जिसे टिप्पणी के साथ खारिज कर दिया था।
वरिष्ठाता सूची के आधार पर हुआ था प्रमोशन
याची के अधिवक्ता आलोक कुमार यादव का कहना था कि कैट का पुरानी पेंशन स्कीम में याची को शामिल न करने का यह आधार लेना कि नौकरी मिल गई है, उसे धन्यवाद देना चाहिए, गलत है।
अधिवक्ता ने कहा कि याची का प्रमोशन तीन फरवरी 1990 की वरिष्ठाता सूची के आधार पर हुआ है। इस कारण उसे सभी सेवाजनित परिणामी लाभ उसी तिथि से मिलना चाहिए लेकिन कैट ने देने से इनकार कर दिया था।
पुरानी पेंशन स्कीम में शामिल करने की मांग
रेलवे में ट्रैकमैन ग्रुप (डी) पोस्ट पर काम करने वाले याची का सीनियर सेक्शन इंजीनियर पद पर तीन फरवरी 1990 की वरिष्ठता सूची के आधार पर प्रमोशन किया गया। याची की मांग थी कि उसकी नौकरी को देखते हुए उसे पुरानी पेंशन स्कीम में शामिल किया जाए। हाई कोर्ट ने याचिका मंजूर कर कैट का आदेश रद कर दिया और याची को पुरानी पेंशन स्कीम में शामिल करने का निर्देश दिया है।
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