UP News: अनचाहे गर्भ को हटाने की कानूनी प्रक्रिया से अनजान हैं सीएमओ और डॉक्टर, हाई कोर्ट ने जताई चिंता
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी और डॉक्टरों को अनचाहे गर्भ को हटाने के मामलों में अपनाई जाने वाली कानूनी प्रक्रिया की जानकारी नहीं होती है। कोर्ट ने प्रमुख सचिव (चिकित्सा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण) को मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी करने का निर्देश दिया है। इस आदेश के बाद अब सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों और उनके द्वारा गठित बोर्डों को एसओपी का पालन करना होगा।
विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी व डाक्टरों को महिला की जांच करते समय अनचाहे गर्भ को हटाने (टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी ) के मामलों में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया की जानकारी नहीं होती। कोर्ट ने प्रमुख सचिव (चिकित्सा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण) को मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी करने का निर्देश दिया है, जिसका पालन सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों व उनके द्वारा गठित बोर्डों द्वारा किया जाएगा।
नाबालिग पीड़िता याची और उसके परिवार ने गर्भपात कराने की अनुमति के लिए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड के गठन का निर्देश दिया। बोर्ड की रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्भ लगभग 29 सप्ताह का है। इस अवस्था में गर्भ को पूर्ण अवधि तक ले जाने से पीड़िता के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचेगा।पीड़िता और उसके स्वजन चिकित्सीय गर्भपात चाहते थे इसलिए न्यायालय ने याचिका स्वीकार कर ली और गर्भपात की अनुमति दे दी। न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ तथा न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने कहा, ‘ऐसे कई मामले आए जिनसे पता चला कि जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों सहित मेडिकल कालेजों व पीड़िता की जांच के लिए मेडिकल बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्त डाक्टरों को जांच करते समय और उसके बाद मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी के दौरान अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के बारे में उचित जानकारी नहीं है।’
इसे भी पढ़ें-पूर्वांचल व अवध में झमाझम बारिश, चार की मौत; 30 से अधिक जिलों में अलर्ट जारीअपनाई जाने वाली प्रक्रिया चिकित्सीय गर्भपात अधिनियम, 1971 में निर्धारित की गई है। मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 और मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी रेगुलेशन, 2003 के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों में भी इसका उल्लेख किया गया है। पूरी प्रक्रिया में शामिल संवेदनशीलता को ध्यान में रखना होगा।
खंडपीठ ने कहा, ‘यह गंभीर चिंता का विषय है कि कुछ जिलों के डाक्टर उपरोक्त विधानों और भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित प्रक्रिया से बिल्कुल भी परिचित नहीं हैं।’कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि पीड़िता और उसके परिवार के सदस्यों का नाम केस रिकार्ड से हटा दिया जाए। यह भी कहा गया है कि गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति से संबंधित ऐसे सभी मामलों में पीड़िता या उसके परिवार के सदस्यों का नाम उल्लेखित नहीं किया जाना चाहिए।
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