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Giridhar Malviya: अधूरी रह गई गिरिधर मालवीय की ये अंतिम इच्छा, चार दिन पहले मनाया गया था जन्मदिन

न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय ने भारती भवन पुस्तकालय के सभापति के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने पुस्तकालय के संरक्षण के लिए अनेक कदम उठाए। उनकी आखिरी इच्छा थी कि पुस्तकालय में रखी लगभग 300 साल पुरानी पांडुलिपियों को डिजिटल करा दिया जाए। न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय 1998 से इसके सभापति रहे। वर्तमान में भी यह पद उनके ही पास था लेकिन कोविड-19 आने के बाद उन्होंने पुस्तकालय आना छोड़ दिया था।

By amardeep bhatt Edited By: Shivam Yadav Updated: Tue, 19 Nov 2024 01:41 AM (IST)
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न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय। फोटो क्रेडिट- जागरण आर्काइव
जागरण संवाददाता, प्रयागराज। तीर्थनगरी प्रयागराज में जिन संस्थाओं से महामना मदन मोहन मालवीय का जुड़ाव था, उनसे गिरिधर मालवीय ने भी अपनी आत्मीयता जोड़ ली थी। इन्हीं में एक है भारती भवन पुस्तकालय, यह ऐसा पुस्तकालय है, जिसमें राजनीति, शिक्षा और साहित्य की तमाम विभूतियों को छांव मिली। 

यही वह पुस्तकालय है जहां स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में क्रांतिकारियों ने पुस्तकों के माध्यम से क्रांति की ज्वाला जलाए रखी। न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय 1998 से इसके सभापति रहे। वर्तमान में भी यह पद उनके ही पास था, लेकिन कोविड-19 आने के बाद उन्होंने पुस्तकालय आना छोड़ दिया। 

उन्होंने अपने कार्य का दायित्व पुस्तकालय प्रबंधन कमेटी बनाकर इसके अध्यक्ष सुधीर टंडन को सौंप दिया। संस्मरण सुनाते हुए सुधीर टंडन कहते हैं कि न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय की आखिरी इच्छा थी कि पुस्तकालय में रखी लगभग 300 साल पुरानी पांडुलिपियों को डिजिटल करा दिया जाए, ताकि वे दशकों दशक अनुसंधान करने वालों के काम आ सकें। 

बताया कि गिरिधर मालवीय हमेशा शैक्षणिक संस्थाओं को प्रोत्साहित करते रहे। प्रदेश के पूर्व राज्यपाल राम नाईक को न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय ही लेकर भारती भवन पुस्तकालय आए थे। 

उन्होंने पुस्तकालय के सभापति रहते अनेक बड़े कदम उठाए, जिससे पुस्तकालय का संरक्षण हो सका। सुधीर टंडन ने बताया कि गिरिधर मालवीय का हम सभी के बीच से जाना काफी दुखद है।

जन्मदिन मनाने के चार दिन बाद निधन

न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय का जन्म 14 नवंबर 1936 को हुआ था। आवास पर उनका बीते 14 नवंबर को जन्मदिन केक काटकर मनाया गया। उस दिन वह काफी खुश थे। हालांकि दूसरे ही दिन यानी 15 नवंबर को उनकी तबीयत बिगड़ गई और अस्पताल ले जाना पड़ा। 

गिरिधर मालवीय की प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी के बेसेंट थियोसोफिकल स्कूल में हुई थी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चिल्ड्रन स्कूल में हाई स्कूल उत्तीर्ण किया। विधि स्नातक और एमए (राजनीति शास्त्र) की डिग्री उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से प्राप्त की। 

1960 में उन्होंने वकालत शुरू कर दी। इससे एक साल पहले दिल्ली में सरदार ज्ञान सिंह वोहरा के साथ तीस हजारी कोर्ट में वकालत की। 1961 में पिता का निधन हो गया तो प्रयागराज आकर 1965 में जिला कचहरी में पं. विश्वनाथ पांडेय और सत्यनारायण मिश्र के साथ वकालत करने लगे।

देवपुत्र थे गिरिधर मालवीय

न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय के बारे में एक रोचक तथ्य है। उन्हें देवपुत्र माना गया था। उनके करीबी हरिश्चंद्र मालवीय बताते हैं कि न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय के पिता गोविंद मालवीय की सात बेटियां हुई थीं। कोई पुत्र रत्न की प्राप्त नहीं हो रही थी। बेटियों से तो परिवार खुश था, लेकिन भगवान से इच्छा थी कि एक बेटा भी हो जाए। 

महामना पं. मदन मोहन मालवीय ने अपने वाराणसी स्थित आवास पर देव पूजा कराई। कई दिन अनुष्ठान चला। संपूर्ण विधि विधान, हवन और मंत्रोच्चार हुए। इसका सुखद परिणाम रहा। देवकृपा से गोविंद मालवीय की पत्नी की गोद भर गई और गिरिधर मालवीय के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्त हुई।

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