Giridhar Malviya: अधूरी रह गई गिरिधर मालवीय की ये अंतिम इच्छा, चार दिन पहले मनाया गया था जन्मदिन
न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय ने भारती भवन पुस्तकालय के सभापति के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने पुस्तकालय के संरक्षण के लिए अनेक कदम उठाए। उनकी आखिरी इच्छा थी कि पुस्तकालय में रखी लगभग 300 साल पुरानी पांडुलिपियों को डिजिटल करा दिया जाए। न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय 1998 से इसके सभापति रहे। वर्तमान में भी यह पद उनके ही पास था लेकिन कोविड-19 आने के बाद उन्होंने पुस्तकालय आना छोड़ दिया था।
जागरण संवाददाता, प्रयागराज। तीर्थनगरी प्रयागराज में जिन संस्थाओं से महामना मदन मोहन मालवीय का जुड़ाव था, उनसे गिरिधर मालवीय ने भी अपनी आत्मीयता जोड़ ली थी। इन्हीं में एक है भारती भवन पुस्तकालय, यह ऐसा पुस्तकालय है, जिसमें राजनीति, शिक्षा और साहित्य की तमाम विभूतियों को छांव मिली।
यही वह पुस्तकालय है जहां स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में क्रांतिकारियों ने पुस्तकों के माध्यम से क्रांति की ज्वाला जलाए रखी। न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय 1998 से इसके सभापति रहे। वर्तमान में भी यह पद उनके ही पास था, लेकिन कोविड-19 आने के बाद उन्होंने पुस्तकालय आना छोड़ दिया।
उन्होंने अपने कार्य का दायित्व पुस्तकालय प्रबंधन कमेटी बनाकर इसके अध्यक्ष सुधीर टंडन को सौंप दिया। संस्मरण सुनाते हुए सुधीर टंडन कहते हैं कि न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय की आखिरी इच्छा थी कि पुस्तकालय में रखी लगभग 300 साल पुरानी पांडुलिपियों को डिजिटल करा दिया जाए, ताकि वे दशकों दशक अनुसंधान करने वालों के काम आ सकें।
बताया कि गिरिधर मालवीय हमेशा शैक्षणिक संस्थाओं को प्रोत्साहित करते रहे। प्रदेश के पूर्व राज्यपाल राम नाईक को न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय ही लेकर भारती भवन पुस्तकालय आए थे।
उन्होंने पुस्तकालय के सभापति रहते अनेक बड़े कदम उठाए, जिससे पुस्तकालय का संरक्षण हो सका। सुधीर टंडन ने बताया कि गिरिधर मालवीय का हम सभी के बीच से जाना काफी दुखद है।
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