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Gyanvapi Case: वुजूखाने के वास्तविक चरित्र पता लगाने के मामले में आपत्ति दाखिल, मिला दो सप्ताह का समय

ज्ञानवापी परिसर स्थित कथित वुजूखाने के एएसआई सर्वे की मांग वाली याचिका पर गुरुवार को विपक्षी अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी की तरफ से आपत्ति दाखिल की गई। याची राखी सिंह के अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने इसका जवाब (रि-ज्वाइंडर) दाखिल करने के लिए समय मांगा। कोर्ट ने इसके लिए दो सप्ताह का समय देते हुए सुनवाई टाल दी। अब मामले में अगली सुनवाई 9 सितंबर को होगी।

By Jagran News Edited By: Shivam Yadav Updated: Thu, 22 Aug 2024 09:19 PM (IST)
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ज्ञानवापी वुजूखाना सर्वेक्षण मामले में आपत्ति, अगली सुनवाई 9 सितंबर को।
विधि संवाददाता, प्रयागराज। वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर स्थित कथित वुजूखाने का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से सर्वे कराने की मांग में दाखिल पुनरीक्षण याचिका की अगली सुनवाई इलाहाबाद हाई कोर्ट में अब नौ सितंबर को होगी। 

गुरुवार को विपक्षी (अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी) की तरफ से आपत्ति दाखिल की गई। याची राखी सिंह के अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने इसका जवाब (रि-ज्वाइंडर) दाखिल करने के लिए समय मांगा। कोर्ट ने इसके लिए दो सप्ताह का समय देते हुए सुनवाई टाल दी। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की एकल पीठ इस प्रकरण की सुनवाई कर रही है। 

शिवलिंग को छोड़कर हो सर्वे

शृंगार गौरी केस की मुख्य वादी राखी सिंह ने वाराणसी जिला अदालत के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा यथास्थिति बनाए रखने के आदेश के कारण हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए अर्जी खारिज कर दी गई थी। 

याची का कहना है कि जिस तरह ज्ञानवापी के पूरे परिसर का एएसआई सर्वे किया गया है, उसी तरह से सील वुजूखाने (शिवलिंग को छोड़ कर) का भी सर्वे किया जाना चाहिए। इससे ही कथित वुजूखाने के वास्तविक चरित्र का पता चलेगा। 

दो साल पहले कोर्ट कमिश्नर के सर्वे के दौरान ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग की आकृति मिलने के बाद पूरे वुजूखाने को सील कर दिया गया था। याची का कहना है कि शिवलिंग को छोड़कर पूरे वुजूखाने का बिना कोई नुकसान पहुंचाए सर्वे कराया जाए। 

संपत्ति सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अधीन

अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने अपनी आपत्ति (काउंटर) में कहा है कि वक्फ एक्ट 1995 की धारा 90(3) के अनुसार मूल वाद और वर्तमान पुनरीक्षण याचिका पोषणीय नहीं है। संपत्ति सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अधीन है और वक्फ के रूप में दर्ज है, लेकिन जानबूझकर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को प्रतिवादी/पक्षकार नहीं बनाया गया है। दीन मोहम्मद केस में भी इस भू-भाग को वक्फ की भूमि माना गया है। 

प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट 1991 की धारा 4 के तहत 15 अगस्त, 1947 को स्थल का जो धार्मिक चरित्र है, उसको बदला नहीं जा सकता और नए वाद की अनुमति नहीं दी जा सकती। अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने कहा कि हम मस्जिद पक्ष के जवाब का विस्तृत अध्ययन करने के बाद अपना जवाब दाखिल करेंगे।

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