'अयोध्या में प्रमाण देना पड़ा पर काशी व मथुरा के दस्तावेज मौजूद', इतिहासकार डॉ. बिशन बहादुर का Exclusive Interview
अयोध्या में श्रीराम मंदिर के अस्तित्व का प्रमाण देना पड़ा जबकि काशी- मथुरा के मंदिरों के दस्तावेज पहले से मौजूद हैं। इतिहासकार डॉ. बिशन बहादुर ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि भारतीय दर्शन के अनुसार आस्था के लिए साक्ष्य की आवश्यकता नहीं है। मंदिर का मालिक स्वयं वहां स्थापित विग्रह होता है। उन्होंने नई शिक्षा नीति इतिहास के पुनर्लेखन और इस्लाम जैसे मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए।
अयोध्या में श्रीराम मंदिर के मौजूद होने का प्रमाण देना पड़ा। साबित करना पड़ा कि प्रभु श्रीराम हैं। इसके लिए साक्ष्य रखे गए। उसे कोर्ट कमेटी के चेयरमैन एसयू खान ने स्वीकार किया। लंबी प्रक्रिया के बाद न्यायालय का निर्णय आया लेकिन काशी और मथुरा की स्थिति भिन्न है। यहां तो सभी दस्तावेज पहले से मौजूद हैं।
औरंगजेब के फरमान में साफ-साफ लिखा है कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई। इसके बाद भी कोर्ट में मामला लटका, समझ से परे हैं। यह बात इतिहासकार एवं साक्ष्यकार डॉ. बिशन बहादुर ने दैनिक जागरण से अनौपचारिक बातचीत में कही।
उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि विवाद मामले में ऐतिहासिक दस्तावेजों को प्रस्तुत करने में मदद की थी। कोर्ट के सामने तथ्यों को विश्लेषित किया था। एक दिन पूर्व अरुंधति वशिष्ठ अनुसंधान पीठ की ओर से श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन और राष्ट्रीय पुनर्जागरण विषय स्मृति व्याख्यान में शामिल होने संगम नगरी आए थे। महावीर भवन में उनसे नई शिक्षा नीति, इतिहास के पुनर्लेखन और इस्लाम के विस्तार जैसे बिंदुओं पर चर्चा हुई। अमलेन्दु त्रिपाठी से बातचीत के प्रमुख अंश...
काशी और मथुरा की ओर कैसे बढ़ेंगे?
काशी और मथुरा में मंदिरों को तोड़ा गया। इसके दस्तावेज हमारे पास हैं। मुगलकाल के फरमानों में स्पष्ट अंकित है। इसके अतिरिक्त हमें अपनी चीजों को भारतीय दर्शन के अनुसार सुलझाना चाहिए। कात्यायन कहते हैं कि आस्था के लिए साक्ष्य की आवश्यकता नहीं। मंदिर का मालिक स्वयं वहां स्थापित विग्रह होता है। भारतीय संविधान भी इसे स्वीकार करता है। l
इतिहास के पुनर्लेखन की बात चल रही है, इसे किस तरह देखते हैं?
इतिहास तो मौजूद है। उसे फिर से लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। नए सिरे से वास्तविक तथ्यों के साथ प्रस्तुत करने और व्याख्यायित कर समाज में उसे मान्यता दिलाने की आवश्यकता है। जहां तथ्यों का लोप हो उसे तलाशने की जरूरत है। टूटी हुई कड़ियों को जोड़ना होगा। संतोष की बात है कि बहुत से ज्योतिष गणनाओं से जुड़े लोग फिर से काल गणना में लगे हैं। उनके तथ्य वैज्ञानिक हैं। नासा ने भी स्वीकार किया है। उसे आम जन को बताने की आवश्यकता है। lनई शिक्षा नीति पर क्या कहना है?
नई शिक्षा नीति पुराने पर पैबंद सी है। उसकी चीजें स्पष्ट नहीं हैं। अब भी हम अपने मौलिक शिक्षण व्यवस्था की ओर नहीं लौट रहे। जो शिक्षा पद्धति छोड़कर अंग्रेज गए बस उसी परिपाटी पर बढ़ रहे हैं। अब भी परीक्षा पास कर आईएएस या पीसीएस सरीखी नौकरियों को प्राप्त करना लक्ष्य है।शिक्षा व्यवस्था में जब तक बालक के मूल गुण जैसे नृत्य-कला, कृषि, विज्ञानी, खेल, सैनिक आदि विधाओं का विकास नहीं होगा तब तक बदलाव की उम्मीद नहीं है। जिसमें जो गुण है वह उसे निखारे और वही करे। शिक्षा में समाज का भी योगदान आवश्यक है, जैसा पहले होता था। तय करना होगा यूजीसी, आइसीएसएसआर या अन्य संस्थाएं क्या सिर्फ बजट देने के लिए हैं। इनका लक्ष्य अधिक से अधिक अवसर देना मौलिकता को बढ़ावा देना होना चाहिए।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।