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Prayagraj News: लड़की पर फब्ती कसने वाले को जमानत से हाई कोर्ट का इन्कार, घटना को बताया शर्मनाक

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक लड़की के साथ फब्ती कसने और बाइक पर बैठाने की कोशिश करने वाले आरोपित की जमानत अर्जी खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि यह घटना भयमुक्त समाज और गुड गवर्नेंस के सिद्धांत के विरुद्ध है। कहा कि उसके भाई व अन्य लोग बचाने न पहुंच गए होते तो ऐसी घटना हो सकती थी जो मानवता और समाज के लिए शर्मनाक होती।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Sat, 24 Aug 2024 12:40 PM (IST)
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लड़कियों पर फब्ती कसने वाले की जमानत रद्द। जागरण
 विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि सुबह नौ बजे अपने घर आ रही लड़की पर बाइक सवार दो लड़कों द्वारा फब्ती कसने तथा पकड़कर बाइक पर बैठाने की कोशिश करने की घटना भयमुक्त समाज और गुड गवर्नेंस के सिद्धांत के विरुद्ध है। चीख सुनकर उसके भाई व अन्य लोग बचाने न पहुंच गए होते तो ऐसी घटना हो सकती थी जो मानवता और समाज के लिए शर्मनाक होती।

इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने अलीगढ़ के क्वार्सी क्षेत्र में हुई घटना के आरोपित के कृत्य की गंभीरता और उपलब्ध साक्ष्यों को देखते हुए जमानत देने से इन्कार कर दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन ने सफी उर्फ साबी की जमानत अर्जी खारिज करते हुए दिया है। पीड़िता 19 जुलाई 2024 को सुबह नौ बजे घर आ रही थी।

उसी समय साबी व ताबिश नामक लड़के मोटरसाइकिल पर आए और फब्ती कसी। याची (साबी) ने दूसरे से कहा, उठाकर बैठा ले। साथ बैठे ताबिश ने पकड़कर बैठाने की कोशिश की। तब तक लड़की का भाई मौके पर आ गया और कुछ अन्य लोगों ने शोर सुनकर पीड़िता को बचाया।

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ताबिश को मौके पर पकड़ लिया परंतु याची मोटरसाइकिल लेकर भाग गया। सह अभियुक्त ने याची का नाम बताया। इसके बाद उसे 20 जुलाई को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। पीड़िता ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 180 व 183 में बयान दर्ज कराया और घटना का से ब्योरा दिया। इसमें याची को पूरी तरह से शामिल पाया गया है। पीड़िता ने कहा है कि अभियुक्त के गले व हाथ में टैटू है, वह पहचान सकती है।

समझौते से रद नहीं किया जा सकता पाक्सो एक्ट का केस

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि पाक्सो एक्ट के अपराध से जुड़े केस को समझौते के आधार पर समाप्त नहीं किया जा सकता। बच्चों के खिलाफ यौन अपराध जघन्य अपराधों में एक है। ऐसे अपराध पीड़ित बच्चे पर जीवन भर के लिए गहरे और स्थायी घाव छोड़ जाते हैं।

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ये बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य, भावनात्मक स्थिरता और सामाजिक संबंधों को प्रभावित करते हैं। बचपन में मिला भावनात्मक आघात वयस्क होने तक बना रहता है। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने रामबिहारी की याचिका खारिज करते हुए की और दर्ज केस को रद करने से इन्कार कर दिया।

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