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हिंदू विवाह कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं, जिसे सहमति से भंग किया जा सके: इलाहाबाद हाई कोर्ट

Allahabad High Court इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाह एक अनुबंध नहीं है जिसे सहमति से भंग किया जा सकता है। कानूनी प्रक्रिया के तहत ही सीमित आधारों पर हिंदू विवाह भंग या समाप्त किया जा सकता है। कोर्ट ने यह आदेश पिंकी की अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। अपील पर अधिवक्ता महेश शर्मा ने बहस की।

By Mehmood Alam Edited By: Abhishek Pandey Updated: Tue, 17 Sep 2024 12:40 PM (IST)
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प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर

विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाह अनुबंध नहीं है, जिसे सहमति से भंग किया जा सके। कानूनी प्रक्रिया के तहत ही सीमित आधारों पर हिंदू विवाह भंग या समाप्त किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा यदि दोनों में से किसी पर नपुंसकता का आरोप है तो अदालत साक्ष्य लेकर विवाह को शून्य घोषित कर सकती थी।

यह आदेश न्यायमूर्ति एसडी सिंह तथा न्यायमूर्ति डोनादी रमेश की खंडपीठ ने पिंकी की अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। अपील पर अधिवक्ता महेश शर्मा ने बहस की।

तीन साल तक लंबित रहा मुकदमा

कोर्ट ने कहा कि विवाह विच्छेद वाद दायर होने के बाद तीन साल केस लंबित रहा। पत्नी ने अपने पहले लिखित कथन में विवाह विच्छेद पर सहमति जताई। इसके बाद मिडिएशन विफल होने और दूसरा बच्चा पैदा होने से परिस्थितियों में बदलाव के कारण पत्नी ने दूसरा लिखित कथन दाखिल करके विवाह विच्छेद की सहमति वापस ले ली।

अदालत को पति की आपत्ति व जवाब सुनकर गुण-दोष पर वाद तय करना चाहिए था। अदालत ने पत्नी के दूसरे लिखित कथन पर पति की आपत्ति की सुनवाई की तिथि तय की और विवाह विच्छेद की डिक्री पारित कर गलती की है।

कोर्ट ने अपर जिला जज बुलंदशहर के 30 मार्च 2011 के आदेश व विवाह विच्छेद की डिक्री रद कर दिया। साथ ही अधीनस्थ अदालत को विवाह बनाये रखने का मिडिएशन विफल होने की दशा में नियमानुसार नये सिरे से पत्नी के दूसरे जवाब पर पति का जवाब लेकर आदेश पारित करने का निर्देश दिया है।

मामले के अनुसार अपीलार्थी की शादी पुष्पेंद्र कुमार के साथ दो फरवरी 2006 को हुई। पति सैनिक था। पेट में बच्चा था तो पत्नी 31 दिसंबर 2007 को अपने मायके आ गई। इसके बाद पति ने 11 फरवरी 2008 को विवाह विच्छेद का वाद दायर किया। पत्नी ने भी सहमति जताई कहा कि वह पति की पाबंदी के साथ नहीं रहना चाहती। केस लंबित रहा। मिडिएशन का प्रयास सफल नहीं हुआ।

इसी बीच एक बच्चा और पैदा हुआ तो पत्नी ने यह कहते हुए विवाह विच्छेद की सहमति वापस ले ली कि साबित हो गया कि वह बच्चा पैदा कर सकती है, दूसरा जवाब दाखिल किया। पति ने दूसरे जवाब पर आपत्ति की। उसकी सुनवाई की तारीख तय हुई, लेकिन अदालत ने विवाह विच्छेद की डिक्री पारित कर दी। उसे अपील में चुनौती दी गई थी।

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