जमानत अर्जियां खारिज करने पर हाई कोर्ट ने की गंभीर टिप्पणी, 'पॉक्सो केस में मेडिकल जांच से तय हो पीड़िता की आयु'
कोर्ट ने कहा है कि सतत लर्निंग प्रोग्राम के तहत संबंधितों को प्रशिक्षित कर उनको कार्य संस्कृति या मानसिक रूप से योग्य बनाया जाए ताकि न्यायिक व्यवस्था में बदलाव आ सके और निर्दोष अनावश्यक रूप से जेल में न बंद रहे। जमानत का संबंध अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मूल अधिकार से है। यह न केवल विधिक अपितु संवैधानिक अधिकार है।
विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पाक्सो केस में ट्रायल कोर्टों की ओर से आयु निर्धारण संबंधी मेडिकल रिपोर्ट पर विचार किए बिना जमानत अर्जियों को एकतरफा खारिज करने पर गंभीर टिप्पणी की है। निर्देश दिया है कि पाक्सो केस में पीड़िता की आयु मेडिकल जांच से तय की जाए।
कहा है कि ट्रायल कोर्ट पीड़िता की आयु पर विचार किए बिना यांत्रिक तरीके से जमानत अर्जियों को तय कर रही हैं, यह न्यायिक प्रणाली के लिए गर्भपात जैसा है। यह रवैया उनके पूर्वाग्रह को प्रतिबिंबित करता है। कोर्ट ने इसमें सुधार के लिए न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान लखनऊ, जिला जजों, पुलिस महानिदेशकों और अभियोजन कार्यालय को ठोस कदम उठाने का निर्देश दिया है।
डीजीपी को सर्कुलर जारी कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कड़ाई से पालन करने का भी निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने जालौन के अनिरुद्ध की जमानत अर्जी को स्वीकार करते हुए दिया है।
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कहा कि इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। ट्रायल कोर्ट को पाक्सो के तहत जमानत अर्जियों को निस्तारित करते समय पीड़िता की आयु को महत्व देना चाहिए। उससे जुड़े सभी दस्तावेजों की सावधानीपूर्वक जांच करना चाहिए।
मुकदमे के तथ्यों के अनुसार जालौन निवासी याची के खिलाफ दुष्कर्म सहित आइपीसी की विभिन्न धाराओं में प्राथमिकी दर्ज है। पीड़िता ने बयान दिया कि दोनों सहमति से संबंधों में रह रहे हैं। कोर्ट ने पाया कि पीड़िता की उम्र को लेकर विरोधाभास है। स्कूल रिकार्ड में उम्र 13 साल दो माह दर्ज है जबकि बयान में उसने अपनी उम्र 15 साल बताई और चिकित्सकीय रिपोर्ट में यह 18 साल मिली।
इसे भी पढ़ें-भैंस ने खुद सुलझा लिया अपना विवाद, थाने में पुलिस के सामने चुना अपना मालिक, यूपी के इस जिले का मामलाकोर्ट ने कहा, अक्सर लोग स्कूल में वास्तविकता से विपरीत कम आयु लिखाते हैं। इस विरोधाभास पर मेडिकल रिपोर्ट पर भरोसा करना चाहिए। कोर्ट ने ऐसे 40 केसों का अवलोकन करते हुए पाया कि ट्रायल कोर्टों ने एक सिरे से जमानत अर्जियों को पास्को केस मानते हुए खारिज कर दिया था।
मोनिस और अमन केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश का हवाला कोर्ट ने दिया। जांच और ट्रायल कोर्ट के फैसलों पर खेद जताते हुए कहा कि पीड़िता की आयु निर्धारण के मामले में विरोधाभास है और पीड़िता की ओर से याचियों के खिलाफ कोई आपत्तिजनक बातें नहीं कहीं गईं। इसके बावजूद ट्रायल कोर्ट द्वारा जमानत अर्जियों को खारिज कर दिया गया।
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