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इंटरनेट मीडिया ने उठा लिया चुनावी प्रचार-प्रसार का जिम्मा, झंडा, बैनर व पोस्टर का धंधा हुआ मंदा; कारोबारी परेशान

चौक-चौराहों और मुहल्लों में प्रत्याशियों के झंडे पोस्टर और बैनर नदारद है। पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना करें तो इस बार शहर में बैनर पोस्टर अंगुलियों पर गिनने लायक ही नजर आ रहे हैं। साथ ही प्रत्याशियों का प्रचार करने वाले वाहन भी घूमते दिखाई नहीं दे रहे हैं। प्रत्याशियों के समर्थक बैनर पोस्टर से प्रचार-प्रसार करने के बजाय दिन रात घर-घर दस्तक देने में ज्यादा विश्वास कर रहे हैं।

By rajendra yadav Edited By: Riya Pandey Updated: Sun, 12 May 2024 10:06 PM (IST)
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इंटरनेट मीडिया ने उठा लिया चुनावी प्रचार-प्रसार का जिम्मा
जागरण संवाददाता, प्रयागराज। चुनाव प्रचार करने में झंडा, बैनर, पोस्टर व होर्डिंग न दिखे, यह हो ही नहीं सकता। या यूं कहे कि इन सभी सामग्री का चुनाव में अहम योगदान रहता है, लेकिन समय बदलने के साथ ही इसका स्वरूप भी बदल गया है।

प्रचार प्रसार का जिम्मा इंटरनेट मीडिया ने अपने कंधों पर उठा लिया है। यही वजह है कि पोस्टर, बैनर व होर्डिंग का कारोबार लगभग ठप हो गया है। वहीं घर-घर में लगने वाले राजनीतिक दलों के झंडे भी करीब-करीब नदारद हैं।

ज्यादा दिन पुरानी बात नहीं है। 2022 में विधानसभा और 2023 में निकाय चुनाव हुआ था। इसमें झंडा, बैच, पटका, टोपी, बैनर, पोस्टर की जबरदस्त बिक्री हुई थी। करीब पांच करोड़ का कारोबार विधानसभा चुनाव में हुआ था, जबकि निकाय चुनाव में भी लगभग इतने की ही बिक्री हुई थी।

प्रिंटिंग प्रेस के कारोबारियों को खाना खाने तक की फुर्सत नहीं मिलती थी। छोटे दुकानदार भी एक सीजन में अच्छा खासा कारोबार कर लेते थे, लेकिन समय बदलने के साथ ही प्रत्याशियों व उनके समर्थकों ने इंटरनेट मीडिया को प्रचार-प्रसार का जरिया बना लिया। सभी राजनैतिक दलों ने अपने फेसबुक पेज, वाट्सएप ग्रुप, इंस्ट्राग्राम, एक्स आदि अकाउंट बना रखे हैं और इसी पर अपना चुनाव प्रचार अपडेट करते रहते हैं।

झंडा, बैच, पटका, टोपी के कारोबारी मो. कादिर, शमशाद का कहना है कि कभी चुनाव का मौका हजारों परिवारों के लिए रोजी-रोटी का जरिया बनता था। व्यापारियों को जहां खूब आर्डर मिलते थे, वहीं सैकड़ों गरीब परिवार झंडे-बैनर बनाकर, पोस्टर चिपकाकर या जगह-जगह उम्मीदवारों के प्रचार बैनर टांगकर अपने के लिए कई माह की रोटी का जुगाड़ कर लेते थे, लेकिन इस बार कोई बिक्री नहीं है। थोड़ी बहुत झंडा जरूर बिका है, जबकि अन्य प्रचार सामग्री धरी की धरी हैं।

प्रिंटिंग प्रेस के राजेश कुमार, संजय अग्रवाल ने बताया कि पिछले चुनाव में जहां पार्टियों को समय पर बैनर-पोस्टर उपलब्ध कराना चुनौती रहती थी, वहीं इस चुनाव में गिने-चुने आर्डर ही आए हैं।

चौक-चौराहों व मुहल्लों में नहीं आ रहा कुछ नजर

शहर के चौक-चौराहों और मुहल्लों में प्रत्याशियों के झंडे, पोस्टर और बैनर नदारद है। पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना करें तो इस बार शहर में बैनर, पोस्टर अंगुलियों पर गिनने लायक ही नजर आ रहे हैं। साथ ही प्रत्याशियों का प्रचार करने वाले वाहन भी घूमते दिखाई नहीं दे रहे हैं। प्रत्याशियों के समर्थक बैनर, पोस्टर से प्रचार-प्रसार करने के बजाय दिन रात घर-घर दस्तक देने में ज्यादा विश्वास कर रहे हैं।

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