Move to Jagran APP

Kaushambi Lok Sabha: रजवाड़ों की धरती व तपोभूमि में हिला कांग्रेस का किला, कुछ ऐसी रही है अब तक की कहानी

अजीत प्रताप सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर 1980 का चुनाव जीता। वर्ष 1991 में जनता दल से राजा अभय प्रताप सिंह यहां से सांसद बने। दिनेश सिंह की बेटी राजकुमारी रत्ना सिंह ने 1996 में कांग्रेस के टिकट पर राजनीति में कदम रखा। वह प्रतापगढ़ की पहली महिला सांसद बन गईं। भाजपा से 1998 में राम विलास वेदांती चुनाव लड़े और यहां पहली बार कमल खिलाने में कामयाब रहे।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Tue, 30 Apr 2024 01:55 PM (IST)
Hero Image
प्रतापगढ़ और कौशांबी में कांग्रेस का कोई प्रत्‍याशी नहीं है।
कौशांबी सुरक्षित संसदीय क्षेत्र ने राजनीति के कई रंग देखे हैं। कभी यह कांग्रेस का अभेद्य किला था और चायल संसदीय क्षेत्र कहलाता था। परसीमन से इसकी सीमाएं भी बदलीं और जनप्रतिनिधि भी। यहां आठ बार कांग्रेस जीती। लोकसभा चुनाव 1989 में कांग्रेस के रामनिहोर राकेश आखिरी बार सांसद चुने गए।

इसके बाद कांग्रेस के लिए यह जमीन उर्वर नहीं हो सकी। यही हाल राजा रजवाड़ों की धरती प्रतापगढ़ संसदीय क्षेत्र का भी है। यहां कांग्रेस नौ बार सफल रही। इस बार तो दोनों ही संसदीय क्षेत्रों में यह पार्टी चुनाव मैदान में ही नहीं है। उसने यह सीट गठबंधन के तहत समाजवादी पार्टी को दे दी है। दोनों संसदीय क्षेत्र का हाल बताती गुरुदीप त्रिपाठी की रिपोर्ट...

वर्ष 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ था तब आज जो कौशांबी जनपद है, वह संसदीय क्षेत्र इलाहाबाद का हिस्सा था। कौशांबी अस्तित्व में ही नहीं था। यह क्षेत्र इलाहाबाद ईस्ट कम जौनपुर वेस्ट संसदीय क्षेत्र कहलाता था। यहां कांग्रेस प्रत्याशी थे मसुरियादीन और जीत का सेहरा उनके सिर सजा। वर्ष 1957 में संसदीय सीट चायल अस्तित्व में आई।

पांच विधानसभा क्षेत्र इसका हिस्सा बने। यह थे शहर पश्चिमी, चायल, मंझनपुर, सिराथू और खागा। अब शहर पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र, प्रयागराज के फूलपुर संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है और प्रतापगढ़ का कुंडा व बाबागंज विधानसभा क्षेत्र कौशांबी संसदीय क्षेत्र का। संविधान सभा के सदस्य मसुरियादीन यहां लोकप्रिय थे वह 1962 और 1967 में भी निर्वाचित हुए।

इसे भी पढ़ें- सियासी राह पर उतरीं अफजाल अंसारी की बेटी नुसरत, शिव मंदिर में टेका माथा, वायरल हो रही तस्‍वीर

साल 1969 में कांग्रेस विभाजित हुई तो वर्ष 1971 के चुनाव में कांग्रेस (इंदिरा) से छोटेलाल प्रत्याशी बने और मसुरियादीन कांग्रेस (संगठन) से। इस चुनाव में मसुरियादीन को हार मिली। फिर आपातकाल के बाद वर्ष 1977 में हुए चुनाव में कांग्रेस हारी।

भारतीय किसान दल (बीकेडी) के टिकट पर रामनिहोर राकेश सांसद बने लेकिन वर्ष 1980 में वह कांग्रेस से मैदान में थे और जीते। वर्ष 1984 में कांग्रेस प्रत्याशी डा. बिहारीलाल शैलेश को सफलता मिली। वर्ष 1989 में कांग्रेस ने एक बार फिर रामनिहोर राकेश पर दांव लगाया, जो सफल रहा।

इसे भी पढ़ें- चलती कार व स्कूटर बनी आग का गोला, चालकों ने कूदकर बचाई जान, वाहन चलाने से पहले इन बातों का रखें ख्‍याल

1991 में जनता दल के शशि प्रकाश पहुंचे संसद

वर्ष 1991 के मध्यावधि चुनाव में जनता दल के शशिप्रकाश सांसद बने। वर्ष 1996 में भारतीय जनता पार्टी के लिए डा. अमृतलाल भारती ने पहली बार कमल खिलाया। वर्ष 1998 में समाजवादी पार्टी से शैलेंद्र कुमार को जनता ने सांसद चुना। वर्ष 1999 में हुए चुनाव में बसपा के सुरेश पासी सांसद बने।

वर्ष 2004 और 2009 में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी शैलेंद्र कुमार को जनता ने पुन: मौका दिया। शैलेंद्र तीन बार सांसद बने। वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां भगवा लहर दौड़ी। विनोद सोनकर सांसद चुने गए। वह इस बार भी चुनाव मैदान में हैं भाजपा के टिकट पर।

बेल्हा में नौ बार कांग्रेस जीती

प्रतापगढ़ लोकसभा सीट 1957 में अस्तित्व में आई थी। किसी समय इसका बड़ा हिस्सा फूलपुर लोकसभा सीट का हिस्सा था। यह सीट भी एक समय कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी। 1957 में कांग्रेस के मुनीश्वर दत्त उपाध्याय चुनाव जीतकर सासंद बने। जनसंघ से 1962 में अजीत प्रताप सिंह ने जीत हासिल की।

1967 में कांग्रेस ने दोबारा विजय दर्ज की और आरडी सिंह सांसद बने। वर्ष 1971 में कालाकांकर के राजा दिनेश सिंह जीते। वर्ष 1984 व 1989 में भी वह इस क्षेत्र से निर्वाचित हुए। इमरजेंसी के बाद 1977 में रूपनाथ सिंह यादव ने भारतीय लोकदल से चुनाव लड़ा और दिनेश सिंह को हराया।

अजीत प्रताप सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर 1980 का चुनाव जीता। वर्ष 1991 में जनता दल से राजा अभय प्रताप सिंह यहां से सांसद बने। दिनेश सिंह की बेटी राजकुमारी रत्ना सिंह ने 1996 में कांग्रेस के टिकट पर राजनीति में कदम रखा। वह प्रतापगढ़ की पहली महिला सांसद बन गईं। भाजपा से 1998 में राम विलास वेदांती चुनाव लड़े और यहां पहली बार कमल खिलाने में कामयाब रहे। हालांकि 1999 में राजकुमारी रत्ना सिंह ने उन्हें हरा दिया।

इसके बाद 2004 में समाजवादी पार्टी के अक्षय प्रताप सिंह गोपाल जी चुनाव जीते। कांग्रेस की रत्ना सिंह 2009 के चुनाव में फिर सांसद बनीं। यह सीट 2014 में भाजपा की साथी अपना दल (एस) के खाते में गई और कुंवर हरिबंश सिंह यहां से सांसद चुने गए।

वर्ष 2019 में यह सीट अपना दल के खाते से भजपा के पास आ गई। भाजपा ने अपना दल के ही विधायक संगमलाल गुप्ता को टिकट दिया। अब भाजपा ने 2024 के चुनाव में भी संगमलाल पर दांव आजमाया है।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।