Maha Kumbh 2025: संगम पहुंचे आठ देशों से 70 नागरिक, बोले-'गंगा केवल जलधारा नहीं, जीवनदायिनी शक्ति'
Maha Kumbh 2025 आठ देशों के 70 विदेशी नागरिक संगम पहुंचे और पुण्य की डुबकी लगाई। स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने रेत पर बैठकर साधना की और भारतीय संस्कृति की गहराई को अनुभव किया। दक्षिण अमेरिका से 13 आस्ट्रिया कनाडा और बेल्जियम से 2-2 बरमूडा और आयरलैंड से 1-1 और अमेरिका के 23 नागरिक शामिल है। निर्मोही अनी अखाड़ा से जुड़े ये विदेशी सेक्टर-17 स्थित शक्तिधाम शिविर में पहुंचे हैं।

जागरण संवाददाता, महाकुंभ नगर । Maha Kumbh 2025: महाकुंभ की दिव्यता और आध्यात्मिक आभा विदेशियों को भी आकर्षित कर रही है। आठ देशों के 70 विदेशी नागरिक संगम पहुंचे और पुण्य की डुबकी लगाई।
स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने रेत पर बैठकर साधना की और भारतीय संस्कृति की गहराई को अनुभव किया।इनमें से कुछ सनातन की दीक्षा ले चुके हैं और कुछ अमृत स्नान के बाद दीक्षा ग्रहण करेंगे।
अमेरिका के 23 नागरिक शामिल
निर्मोही अनी अखाड़ा से जुड़े ये विदेशी सेक्टर-17 स्थित शक्तिधाम शिविर में पहुंचे हैं। दल में सर्वाधिक 25 नागरिक जापान से हैं। दक्षिण अमेरिका से 13, आस्ट्रिया, कनाडा और बेल्जियम से 2-2, बरमूडा और आयरलैंड से 1-1 और अमेरिका के 23 नागरिक शामिल है।
अमेरिका के एरिक ब्लैक ने गंगा स्नान के अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा, "यह केवल नदी नहीं है, बल्कि ऊर्जा स्रोत है। जब मैंने पहली बार गंगा में डुबकी लगाई, तो अनोखी शांति का अनुभव हुआ, मानो मेरी आत्मा को नया जीवन मिल गया हो।" उनके साथ आईं सेलेना लाएल ने कहा, "मैंने बहुत से धार्मिक स्थलों की यात्रा की है, लेकिन गंगा के स्पर्श में जो दिव्यता है, वह कहीं और नहीं मिली।
गंगा जल आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा हुआ है।" दक्षिण अमेरिका के मार्सेला डियाज ने कहा, "भारत आकर अनुभव हुआ कि यहां हर तत्व में ईश्वर का वास है। " उनकी साथी कैरोलीना टोरेस अयाला ने कहा, "गंगा केवल जलधारा नहीं है, जीवनदायिनी शक्ति है। जापान से आए शोजी त्सुचिया और उनकी पत्नी रेइला त्सुचिया ने कहा कि ‘गंगा किनारे साधना करने से मन को जो स्थिरता मिली, वह अनमोल है।"
प्रभु प्रेमी संघ के शिविर में आरएसएस के प्रचारक ने बताया सनातन संस्कृति का महत्व
महाकुंभ नगर : सेक्टर 18 स्थित प्रभु प्रेमी संघ के शिविर में शनिवार को "सनातन संस्कृति में समाहित हैं समष्टि कल्याण के सूत्र" विषयक व्याख्यान हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि पुरुषार्थ स्वयं किया जा सकता है लेकिन गुरु के आशीर्वाद और सत्संग के बिना यह संभव नहीं है। कहा कि हमारे संत आदिकाल से वैदिक परंपराओं को बनाए हुए हैं। वे किसी का विरोध न करके एकत्व को इंगित करते हैं।
आज जब भारत समृद्धि की ओर बढ़ रहा है तो यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि प्रभावशीलता के साथ ही सद्प्रवृत्ति भी बनी रहे और इसके लिए हमें संतों का मार्गदर्शन चाहिए। सनातन धर्म में निहित एकत्व के सूत्र को दोहराते हुए सुनील आंबेकर ने कहा कि भले ही हमारे रंग रूप, आदतें अलग हों लेकिन सबमें ईश्वरत्व है। इसलिए हमारी सनातन संस्कृति केवल मानव केंद्रित न होकर सृष्टि केंद्रित रही है। पाश्चात्य प्रभाव के कारण बाजार के दबाव में संस्कृति से समझौता हुआ है इसलिए आज हमें अपनी मूल संस्कृति में लौटना होगा। व्याख्यान के दौरान जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि उपस्थित रहे।
श्री लक्ष्मीनारायण देव वड़ताल धाम के आचार्य राकेश प्रसाद ने अध्यक्षता की। उन्होंने कहा कि कहा महाकुंभ में युवाओं का उत्साह देखकर हर्ष हो रहा है। इससे लगता है कि सनातन धर्म का भविष्य सुरक्षित है। इस अवसर पर स्वामी नारायण गुरुकुल चारोड़ी गुजरात के सद्गुरु माधवप्रिय दास, श्री दत्त पद्मनाभ पीठ गोवा के पीठाधीश ब्रह्मेशानन्द, प्रभु प्रेमी संघ की अध्यक्षा महामंडलेश्वर स्वामी नैसर्गिका गिरि, योग वशिष्ठ की विद्वान शैला माता, महामंडलेश्वर स्वामी अपूर्वानंद, न्यासीगण विवेक ठाकुर, स्वामी कैलाशानंद, महेंद्र लाहौरिया, किशोर काया, प्रवीण चौधरी आदि उपस्थित रहे।
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