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महाकुंभ 2025: शाही स्नान और पेशवाई के नाम बदलेंगे, अखाड़ा परिषद ने किया प्रस्ताव पारित

महाकुंभ 2025 में बदलाव की बयार बह रही है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने कुंभ और महाकुंभ के दौरान विभिन्न अखाड़ों के शाही स्नान और पेशवाई जैसे उर्दू-फारसीनिष्ठ शब्दों के स्थान पर हिंदी-संस्कृतनिष्ठ शब्दों के प्रयोग का प्रस्ताव पारित किया है। इसी के साथ गाय को राष्ट्रमाता घोषित करने मंदिरों में सरकारी हस्तक्षेप हटाने देश भर में समान नागरिक संहिता लागू करने सहित अन्य प्रस्ताव भी पारित किए गए हैं।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Sun, 06 Oct 2024 08:02 AM (IST)
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महाकुंभ में उर्दू-फारसीनिष्ठ शब्दों के स्थान पर हिंदी-संस्कृतनिष्ठ शब्दों के प्रयोग का प्रस्ताव पारित किया है। जागरण

 जागरण संवाददाता, प्रयागराज। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने कुंभ व महाकुंभ के दौरान विभिन्न अखाड़ों के शाही स्नान व पेशवाई जैसे उर्दू-फारसीनिष्ठ शब्दों के स्थान पर हिंदी-संस्कृतनिष्ठ शब्दों के प्रयोग का प्रस्ताव पारित किया है। इसी के साथ गाय को राष्ट्रमाता घोषित करने, मंदिरों में सरकारी हस्तक्षेप हटाने, देश भर में समान नागरिक संहिता लागू करने सहित अन्य प्रस्ताव भी पारित किए हैं।

बैठक में संतों ने शाही व पेशवाई के स्थानापन्न कई नए नामों पर चर्चा की, तय हुआ कि नया नाम परिषद की अगली बैठक में तय किया जाएगा। इन नामों को बदलने का अभियान दैनिक जागरण व मध्य प्रदेश में दैनिक जागरण समूह के सहयोगी प्रकाशन नई दुनिया ने शुरू किया था।

मध्य प्रदेश में संत व सरकार शाही के स्थान पर राजसी शब्द पर सहमत हो चुके हैं। रविवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी महाकुंभ की तैयारियों की समीक्षा के लिए आ रहे हैं। संभावना है कि शासकीय आयोजनों में भी वह शाही व पेशवाई जैसे शब्दों के विकल्पों के प्रयोग पर सहमति दे सकते हैं।

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नाम बदलने के अभियान को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रवीन्द्र पुरी पहले ही समर्थन दे चुके हैं। उन्होंने परिषद की बैठक में यह प्रस्ताव लाने का वचन दिया था। संत समाज के साथ, महापौर, सांसद, विधायक, सनातन धर्म के मर्मज्ञों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र भेजकर उचित कार्रवाई की मांग की थी।

परिषद की बैठक के दूसरे दिन शनिवार को अध्यक्ष श्रीमहंत रवीन्द्र पुरी ने कहा कि भारत धर्म निरपेक्ष देश है, जहां संविधान सर्वोपरि है। संविधान ने समस्त नागरिकों को बराबर अधिकार दिया है। इसके बावजूद जाति-धर्म के नाम पर विशेष वर्ग के लोगों को अतिरिक्त सुविधा दी जा रही है।

ऐसे में देशभर में समान नागरिक संहिता लागू होनी चाहिए। अखाड़ों के संत प्रवचन, वैचारिक गोष्ठी, संवाद के जरिए माहौल बनाएंगे। उन्होंने लव जिहाद व हिंदुओं के मतांतरण को गंभीर समस्या बताते हुए सख्त कानून बनाने की मांग की।

उन्होंने कहा कि शाही स्नान व पेशवाई की जगह नए नाम पर महाकुंभ से पहले निर्णय ले लिया जाएगा। फिर उसे जहां-जहां कुंभ लगता है, उन प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को भेजा जाएगा, जिससे वह उसके अनुरूप उचित कदम उठाएं।

यह प्रस्ताव भी पारित हुए

सरकारी हस्तक्षेप

बड़ा उदासीन अखाड़ा के मुखिया महंत दुर्गा दास ने कहा कि मंदिरों का सरकारी अधिग्रहण होने से उनकी परंपरा नष्ट हो रही है। मंदिर का पैसा मदरसा व चर्चों के विस्तार को भेजा जा रहा है। ऐसे में सरकार मंदिरों से अपना हस्तक्षेप खत्म करे।

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गाय घोषित हो राष्ट्रमाता

परिषद के महामंत्री महंत हरि गिरि ने केंद्र सरकार से मांग किया कि गाय को राष्ट्र माता घोषित करके उनके संरक्षण और संवर्धन को ठोस कदम उठाए।

सरकार बढ़ाए अनुदान

निर्वाणी अनी अखाड़ा के अध्यक्ष श्रीमहंत मुरली दास ने महाकुंभ क्षेत्र के पास के मोहल्लों में मांस-मदिरा की दुकानों को बंद कराने की मांग की। साथ ही अखाड़ों को कुंभ 2019 में दिए गए अनुदान को बढ़ाकर दोगुना किए जाने की मांग की। इसके अलावा गंगा की अविरलता और निर्मलता का प्रस्ताव पास हुआ।

अखाड़ों के इष्टदेव पर हो घाटों का नाम

गंगा व यमुना पर बन रहे स्नान घाटों का नामकरण 13 अखाड़ों के इष्टदेव व देवताओं के नाम पर किए जाने की मांग की, ताकि श्रद्धालुओं में अखाड़ों की पहचान बनी रहे।

इन विकल्पों पर हुआ मंथन

शाही स्नान : राजसी स्नान, अमृत स्नान, वैभव स्नान, देव स्नान, देवर्षि स्नान

पेशवाई : छावनी प्रवेश, संत प्रवेश, देवर्षि प्रवेश, देव प्रवेश, आराध्य पालकी प्रवेश

यह है परंपरा

कुंभ व महाकुंभ का वैभव अखाड़े होते हैं। 13 अखाड़ों की विशेष संस्कृति व परंपरा है। जिस शहर में कुंभ मेला लगता है, उसके क्षेत्र में अखाड़े ध्वज-पताका, बैंडबाजा के साथ आराध्य की पालकी लेकर प्रवेश करते हैं। इसे पेशवाई कहते हैं।

वहीं, मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या व वसंत पंचमी के स्नान पर अखाड़े स्नान करते हैं, जिसे शाही स्नान कहा जाता है। इसमें अखाड़ों के आचार्य महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर, नागा संन्यासी सहित समस्त संत स्नान करते हैं।

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