'वैवाहिक रिश्तों को लेकर झूठी शिकायत करना क्रूरता', तलाक मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी
Allahabad High Court इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा है कि पति-पत्नी रिश्ते से नाखुश हों तो उन्हें साथ रहने के लिए विवश करना क्रूरता होगी। लंबे समय से अलग रह रहे जोड़े को एक साथ लाने के बजाय उनका तलाक कर देना अधिक हित में है।
By Jagran NewsEdited By: Abhishek PandeyUpdated: Thu, 19 Oct 2023 09:44 AM (IST)
विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा है कि पति-पत्नी रिश्ते से नाखुश हों तो उन्हें साथ रहने के लिए विवश करना क्रूरता होगी। लंबे समय से अलग रह रहे जोड़े को एक साथ लाने के बजाय उनका तलाक कर देना अधिक हित में है।
इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने अपर प्रधान न्यायाधीश परिवार अदालत गाजियाबाद द्वारा पति की तरफ से तलाक के लिए दायर अर्जी खारिज करने संबंधी आदेश को रद्द कर दिया है और दोनों के बीच हुए विवाह को भंग कर दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति एसडी सिंह तथा न्यायमूर्ति एकेएस देशवाल की खंडपीठ ने अशोक झा की प्रथम अपील स्वीकार करते हुए दिया है।
कोर्ट ने स्थायी विवाह विच्छेद के एवज में पति को तीन महीने में एक करोड़ रुपये भी पत्नी को देने का निर्देश दिया है। पति दो करोड़ रुपये सालाना आयकर देता है। कोर्ट ने कहा, यदि आदेश का पालन नहीं हुआ तो छह प्रतिशत ब्याज देना होगा।
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कोर्ट ने कहा, दहेज उत्पीड़न के केस में पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट पेश की। याची अदालत से बरी कर दिया गया। दोनों ने ही आरोप प्रत्यारोप लगाए हैं। स्थिति यहां तक पहुंच गई कि समझौते की गुंजाइश खत्म हो गई। झूठे केस कायम किए गए। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि झूठे केस में फंसाना क्रूरता है।
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