प्रयागराज में गंगा का पानी पीने और आचमन योग्य नहीं, एनजीटी का केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस
महाकुंभ को दिव्य भव्य और नव्य स्वरूप देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार लगातार प्रयास कर रही है। इसके तहत शहर के प्रमुख मंदिरों को अलौकिक स्वरूप देने के लिए नव्य प्रयोग के रूप में फसाड लाइट का काम किया जा रहा है। इसमें कुंभ मेला क्षेत्र के अंदर और बाहर के प्रमुख प्राचीन मंदिरों को शामिल किया गया है। हालांकि अब एनजीटी के रिपोर्ट ने परेशान कर दिया है।
जागरण संवाददाता, प्रयागराज। गंगा का पानी संगमनगरी में पीने और आचमन योग्य नहीं रह गया है। इस आशय की टिप्पणी राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की प्रधानपीठ ने क्षेत्रीय अधिकारी उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) की रिपोर्ट देखने के बाद की है।
प्रकरण में एनजीटी 23 सितंबर को अगली सुनवाई करेगा। उसने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। यह आदेश चेयरपर्सन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, सदस्य (न्यायिक) न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी व सदस्य (विशेषज्ञ) ए.सेंथिल वेल की तीन सदस्यीय पीठ ने दिया है।
बीते मंगलवार को हाइब्रिड मोड में सुनवाई हुई थी। उच्च न्यायालय के अधिवक्ता सौरभ तिवारी की तरफ से दायर याचिका की सुनवाई करते हुए इससे पहले प्रधान पीठ ने 18 जनवरी को पारित आदेश में प्रयागराज में गंगा और यमुना में बिना शोधित नालों के पानी के निस्तारण संबंधी आरोपों की सत्यता की जांच और वास्तविकता जानने के लिए सदस्य सचिव, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं जिलाधिकारी प्रयागराज की अगुवाई में संयुक्त समिति गठित की थी।
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एनजीटी को भेजी गई संयुक्त समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों नदियों में 76 नाले गिरते हैं। इनमें 37 नालों को जल निगम द्वारा टैप कर 10 विभिन्न एसटीपी के माध्यम से शुद्धिकरण के पश्चात गंगा व यमुना नदियों में निस्तारित किया जा रहा है। शेष 39 अनटैप्ड नालों के उत्प्रवाह को नगर निगम द्वारा बायोरेमेडिएशन पद्वति से उपचार कर गंगा और यमुना नदियों में निस्तारित किया जा रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार महाकुंभ 2025 के दृष्टिगत अनटैप्ड नालों को टैप्ड किए जाने के लिए जल निगम द्वारा राजापुर में 90 एमएलडी, नैनी-1 में 50 एमएलडी और सलोरी में 43 एमएलडी क्षमता वाले तीन अलग अलग एसटीपी की स्थापना प्रस्तावित है। आगामी सुनवाई के लिए 18 जुलाई को ईमेल से नोटिस जारी किया गया है।
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