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Maha Kumbh 2025: निरंजनी अखाड़ा का संतों को निर्देश-उर्दू, फारसी शब्दों का न करें प्रयोग

निरंजनी अखाड़े ने अपने संतों को उर्दू फारसी शब्दों के प्रयोग से बचने का निर्देश दिया है। महाकुंभ 2025 में शाही स्नान की जगह राजसी स्नान और पेशवाई की जगह छावनी प्रवेश शब्द का इस्तेमाल किया जाएगा। अखाड़े की इस पहल का उद्देश्य सनातन धर्म की वैदिक परंपरा को बढ़ावा देना है। महामंडलेश्वर व उनके अनुयायी विदेश में हैं वह अंग्रेजी भाषा का प्रयोग कर सकते हैं।

By amardeep bhatt Edited By: Vivek Shukla Updated: Sat, 07 Sep 2024 03:29 PM (IST)
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महाकुंभ-2025 को लेकर निरंजनी अखाड़ा ने निर्देश जारी किया है। जागरण

जागरण संवाददाता, प्रयागराज। महाकुंभ-2025 को लेकर अखाड़े उर्दू, अरबी-फारसी भाषा का प्रयोग करने से बचेंगे। श्रीनिरंजनी अखाड़ा ने अपने महामंडलेश्वर, महंतों सहित समस्त संतों को निर्देश दिया है कि वह बोल-चाल में हिंदी व संस्कृत भाषा का प्रयोग करें। जरूरत पड़ने पर अंग्रेजी बोल सकते हैं, लेकिन उर्दू, अरबी-फारसी का प्रयोग न करें। महाकुंभ में जिन शिष्यों को आमंत्रित करें अथवा निमंत्रण कार्ड छपवाएं उसमें शाही स्नान की जगह राजसी स्नान व पेशवाई की जगह छावनी प्रवेश लिखा जाय। वहीं, दूसरे अखाड़े भी शाही स्नान व पेशवाई शब्द का प्रयोग बंद कराने पर जोर दे रहे हैं।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष (अध्यक्ष श्री निरंजनी अखाड़ा व मां मनसा देवी) श्रीमहंत रवींद्र पुरी ने स्पष्ट किया है कि गुलामी के दौर में तमाम कुरीतियां सनातन धर्म से जुड़ी हैं। वह बोलचाल में भी शामिल हैं। अब समय आ गया है कि उन्हें धीरे-धीरे खत्म किया जाय।

इसके लिए निरंजनी अखाड़े में उर्दू, फारसी, अरबी भाषा का प्रयोग करने पर रोक लगाई गई है। देववाणी संस्कृत अथवा हिंदी का प्रयोग अधिक किया जाए। जो महामंडलेश्वर व उनके अनुयायी विदेश में हैं वह अंग्रेजी भाषा का प्रयोग कर सकते हैं।

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आमंत्रण पत्रों, धार्मिक अनुष्ठान के बैनरों, पोस्टरों में उर्दू शब्द का प्रयोग न होने पाए। वहीं, जूना अखाड़ा के मुख्य संरक्षक महंत हरि गिरि का कहना है कि अखाड़ों की परंपरा सदियों पुरानी है। बदलाव करने से पहले उसकी तह में जाना होगा।

शाही स्नान व पेशवाई शब्द को लेकर भाषा विज्ञानियों से जानकारी ली जाएगी। फिर अखाड़ा परिषद की बैठक में उसे रखा जाएगा। 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि मिलकर अंतिम निर्णय लेंगे। श्रीनिर्मोही अनी अखाड़ा के अध्यक्ष श्रीमहंत राजेंद्र दास ने भी उर्दू, अरबी-फारसी शब्दों का प्रयाेग रोकने पर जोर दिया है।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी ने कहा कि सनातन धर्म वैदिक पंरपरा से चलता है, उसमें विज्ञान, संस्कार व संस्कृति का समावेश है। इसका आधार देववाणी संस्कृत है। धर्मग्रंथ संस्कृत में लिखे गए हैं। महाकुंभ से पहले उसका प्रचलन बढ़ाया कराया जाएगा।

अखाड़े के समस्त महामंडलेश्वर, महंतों व संतों को निर्देश दिया गया है कि वह संस्कृत व हिंदी भाषा का प्रयोग बढ़ाएं। आमंत्रण पत्र में शाही स्नान की जगह राजसी स्नान व पेशवाई की जगह छावनी प्रवेश लिखवाएं। इसे बाेलचाल में भी लाएं।

महामंडलेश्वर जूना अखाड़ा स्वामी यतींद्रानंद गिरि ने कहा कि सनातन धर्म में उर्दू, अरबी-फारसी भाषा का प्रयोग नहीं होना चाहिए। समस्त अखाड़ों को देखना चाहिए कि हमारी परंपरा में कहां-कहां इन भाषाओं का प्रयोग हो रहा है। इसका प्रयोग रुकना चाहिए। हिंदी व संस्कृत भाषा का प्रयोग बढ़ाना होगा। ऐसा करने से सनातन धर्म का स्वरूप उत्कृष्ट होगा।

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निर्मोही अनी अखाड़ा के अध्यक्ष श्रीमहंत राजेंद्र दास ने कहा कि गुलामी के कालखंड में जो कुरीतियां आयी हैं, उन्हें समाप्त करने की जरूरत है। तभी सनातन धर्म व भारत का स्वरूप निखरेगा। पेशवाई व शाही स्नान शब्द का प्रयोग रुकना चाहिए। इसके लिए समस्त अखाड़े आम सहमति बनाएं। हमारा अखाड़ा इसके प्रयोग पर रोक लगाने काे तैयार है। इस मामले में जल्द सार्थक निर्णय लिया जाएगा।

प्राचीन इतिहास विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर -प्रो. डीपी दुबे ने कहा कि महाकाल की शाही सवारी के शाही शब्द पर आपत्ति उचित है। अब प्रयागराज महाकुंभ में शाही स्नान के स्थान पर राजसी स्नान करने का विचार आया है। शाही शब्द फारसी स्याही का लोक नाम है। इसका नाम भी सात्विक स्नान होना चाहिए। अखाड़ों में अनेक फारसी शब्द प्रयोग में लाये जाते हैं उन्हें भी बदला जाना चाहिए। जैसे पेशवाई की जगह कुंभनगर प्रवेश होना चाहिए।

खास बात

  • पेशवाई व शाही स्नान शब्द को बदलने को लेकर बनाई जाएगी सहमति।
  • राजसी स्नान व छावनी प्रवेश शब्द का प्रयोग बढ़ाने के लिए उसे बोलचाल में लाया जाएगा।
  • अखाड़ों की परंपरा में उर्दू, फारसी व अरबी शब्द जहां होंगे उसे प्रचलन से हटाया जाएगा।
  • संवाद के जरिए आमजन को नई परंपरा से जोड़ा जाएगा।
  • सार्थक पहल के लिए 13 अखाड़ों को एक मंच पर लाने की चल रही मुहिम।