Nithari Kand Story in Hindi: आरुषि कांड के बाद दूसरी बार सीबीआई से सवाल- जब सबूत नहीं थे तो क्यों लगे आरोप?
Nithari Kand Story in Hindi - निठारी कांड में सोमवार को आए इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले ने जांच एजेंसी को कठघरे में खड़ा किया है। लोगों का सवाल यही है कि हत्याएं दर हत्याएं होती रहीं लेकिन किसने की उसका पता नहीं चल सका तो क्यों? सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या जांच एजेंसी को ऐसे मामले में विवेचना के लिए प्रशिक्षित करने की जरूरत नहीं है।
विधि संवाददाता, प्रयागराज। Nithari Kand Story in Hindi - निठारी कांड में सोमवार को आए इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले ने जांच एजेंसी को कठघरे में खड़ा किया है। लोगों का सवाल यही है कि हत्याएं दर हत्याएं होती रहीं, लेकिन किसने की उसका पता नहीं चल सका तो क्यों? सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या जांच एजेंसी को ऐसे मामले में विवेचना के लिए प्रशिक्षित करने की जरूरत नहीं है।
आरुषि कांड (Aarushi Hatya Kand) के बाद यह दूसरा ऐसा मामला है, जिसमें अभियोजन ठोस सबूत पेश करने में नाकाम रहा। प्रकरण लंबे समय तक चर्चा का विषय रहेगा। कई अधिवक्ताओं ने आशंका जताई है कि शायद ही अब असली कातिल पकड़ा जाएगा।
मानव अंग व्यापार का आरोप क्यों लगाया?
कहा जाता है कि कानून के हाथ लंबे हैं, लेकिन निठारी (Nithari Kand) और आरुषि केस के मामले में यह हाथ कहीं नहीं दिखा। सवाल यह भी है कि जब प्रमाण नहीं था तब अभियोजन ने मनिंदर सिंह पंधेर पर मानव अंग व्यापार का आरोप क्यों लगाया? ऐसे ही किसी एक मामले में पंधेर के खिलाफ एफआईआर हुई थी, इसलिए सीबीआई ने उसे इसमें भी लपेट दिया।
हाई कोर्ट ने सजा को उम्रकैद में बदला
मुख्य अभियुक्त सुरेंद्र कोली को 13 मामलों में फांसी की सजा सुनाई गई है। एक केस में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भी सजा की पुष्टि कर दी थी, लेकिन क्षमा याचना पर राष्ट्रपति के निर्णय लेने में देरी से इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने सजा को उम्रकैद में बदला।
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हाई कोर्ट के सवाल अत्यंत गंभीर
पुलिस और सीबीआई (CBI) को लेकर कोर्ट के सवाल अत्यंत गंभीर हैं। यह विवेचना को कठघरे में ला देते हैं। प्रकरण में लगभग 40 गवाहों को परीक्षित कराया गया, लेकिन कोई चश्मदीद गवाह न होना केस कमजोर करने की वजह बना। जुर्म कबूलने के बयान में पुलिस न्यायिक प्रक्रिया का पालन कैसे भूल गई, यह बड़ा सवाल है।
अभियोजन कहां और कैसे चूका?
कहने वाले यह कह रहे हैं कि जब पूर्व में सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट तक ने इन्हीं सबूतों पर एक मामले में फांसी की सजा बरकरार रखी थी तब अब अभियोजन कहां और कैसे चूका है। पुलिस तो शुरू से इस केस में अन्यमनस्क थी। कोर्ट के निर्देश पर ही पंधेर व कोली के खिलाफ अपहरण के आरोप में प्राथमिकी दर्ज हुई थी।
हत्याएं कबूलने के बाद भी जांच पर सवाल
इतना ही नहीं कोर्ट के निर्देश पर ही तत्कालीन एसपी ने उपाधीक्षक नोएडा दिनेश यादव के नेतृत्व में एसआईटी गठित की। कोली को संदेह पर 29 दिसंबर 2006 को गिरफ्तार किया। उसने पुलिस के समक्ष दर्जनों हत्याएं कबूल की, कहा काटकर नाले में फेंका है। इसके बाद नाले से कंकाल बरामद हुए और पूरा प्रकरण अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बन गया, लेकिन अब जांच पर ही सवाल हैं।
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