एक संकल्प से लपरी को नया जीवन, बदली 50 हजार जिंदगी, मनरेगा के तहत हुई नदी खुदाई
वर्षों बाद इस धान के कटोरे में फिर से धान की खेती शुरू हुई है। प्रयागराज मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर कोरांव की यह लपरी नदी है। कोरांव तहसील के ग्राम पंचायत रत्यौरा से घेघसाही तक लगभग 17.5 किमी में इसका प्रवाह है। कोरांव से मेजा होते हुए टोंस नदी में मिल जाती है। नदी के दोनों किनारों को ग्रीन बेल्ट में बदला जा रहा है।
पर्यावरण दिवस पर जीर्णोद्धार का संकल्प
पांच जून 2023 को पर्यावरण दिवस पर आईएएस अफसर गौरव कुमार की अगुवाई में इस नदी के जीर्णोद्धार के लिए मनरेगा योजना के तहत अभियान शुरू हुआ। दस गांव में मनरेगा के तहत अलग-अलग कार्य योजना बनी। हर गांव में लोगों को खुदाई का काम मिला। नदी मार्ग को वापस गहरा किया गया। रत्यौरा में न्यूनतम 721 और भलुहा में सर्वाधिक 2939 सृजित मानव दिवस का कार्य ग्रामीणों को मिला। अब नदी अपने पूर्व आकार में आ बई है, पानी भर चुका है। अब नदी के दोनों किनारों पर हरियाली है। सूखे रहने वाले खेत हरे भरे हैं। वर्ष 2001 के बाद जन्मे बच्चे तो लपरी नदी की कहानियां ही सुनते थे, लेकिन वह भी अब जीवंत लपरी का साक्षात्कार कर रहे हैं। लपरी कोरांव के 10 ग्राम पंचायतों से होकर गुजरती है और इसके बाद मेजा ब्लाक से होते हुए टोंस नदी में मिल जाती है।पर्यावरण और जल संरक्षण के लिए जमीन पर प्रयास करने के लिए संकल्प की जरूरत तो होती है और इच्छाशक्ति हो तो कोई भी काम असंभव नहीं है। पुनर्जीवित लपरी नदी अब सुखद अनुभूति देती है। सूखी नदी की तस्वीरें अंतरमन को कचोटती थी। इस इलाके में लोगों की बड़ी परेशानी पानी थी। मुझे जब इस नदी के बारे में पता चला तो भौगोलिक स्थिति को परखा गया, मनरेगा से पुनरुद्धार शुरू हुआ, अब सुखद परिणाम सामने हैं। पूरी टीम, ग्रामीण हर कोई बधाई के पात्र हैं। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिला। अब यह नदी आर्थिक व सामाजिक लाभ के साथ पर्यावरणीय लाभ भी दे रही है। नदियों के किनारे विविध जल जीवनों का विकास होता है जो पर्यावरण का संतुलन बनाता है। आगे इसके दोनों किनारों को ग्रीन बेल्ट में परिवर्तित करेंगे।
-गौरव कुमार, सीडीओ प्रयागराज