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पोकर और रमी को लेकर हाई कोर्ट ने दिया बयान, बोले-'यह जुआ नहीं, कौशल का खेल है'

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पोकर और रमी जुआ नहीं बल्कि कौशल के खेल हैं। कोर्ट ने कहा कि केवल संबंधित अधिकारी की दूरदर्शिता के आधार पर अनुमति देने से इनकार करना ऐसा आधार नहीं हो सकता जिसे बनाए रखा जा सके। कोर्ट ने संबंधित प्राधिकरण को इस मामले में फिर से विचार करने का निर्देश दिया है।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Thu, 05 Sep 2024 07:31 AM (IST)
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले पर बयान दिया है। जागरण
 विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पोकर (ताश का खेल) और रमी जुआ नहीं, बल्कि कौशल के खेल हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ एवं न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ल की खंडपीठ ने मेसर्स डीएम गेमिंग प्राइवेट लिमिटेड की याचिका पर दिया है।

डीएम गेमिंग प्राइवेट लिमिटेड ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दाखिल कर गत 24 जनवरी को डीसीपी, सिटी कमिश्नरेट आगरा के आदेश को चुनौती दी। इस आदेश में पोकर एवं रमी के लिए गेमिंग इकाई संचालित करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था।

तर्क दिया गया कि अनुमति देने से इन्कार करना केवल इस अनुमान पर आधारित था कि ऐसे खेलों से शांति और सद्भाव में बाधा उत्पन्न हो सकती है या उन्हें जुआ माना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले व हाईकोर्ट के अन्य आदेशों का हवाला देते हुए कहा गया कि पोकर और रमी कौशल के खेल हैं न कि जुआ।

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न्यायालय के समक्ष प्राथमिक कानूनी मुद्दा यह था कि पोकर और रमी को जुआ गतिविधियों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है या कौशल खेल के रूप में मान्यता दी जा सकती है। खंडपीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अधिकारियों को इस मुद्दे की गहन जांच करनी चाहिए और केवल अनुमान के आधार पर अनुमति देने से इन्कार नहीं करना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि केवल संबंधित अधिकारी की दूरदर्शिता के आधार पर अनुमति देने से इन्कार करना ऐसा आधार नहीं हो सकता जिसे बनाए रखा जा सके। पोकर और रमी की गेमिंग इकाई चलाने की अनुमति देने से अधिकारियों को अवैध जुआ गतिविधियों के लिए परिसर की निगरानी करने से नहीं रोका जा सकता है।

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कोर्ट ने संबंधित प्राधिकरण को इस मामले में फिर से विचार करने का निर्देश दिया है। कहा कि प्राधिकरण निर्णय की तिथि से छह सप्ताह के भीतर याची को सुनवाई का अवसर प्रदान करने के बाद तर्कसंगत आदेश करे।

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