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शिक्षकों की अनुपस्थिति प्राइमरी शिक्षा की जड़ खोखली कर रही: हाई कोर्ट

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा है कि प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की अनुपस्थिति से प्राथमिक शिक्षा की जड़ खोखली हो रही है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे शिक्षकों के खिलाफ सक्षम अधिकारियों को सख्त कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी कर्मचारी को अपनी पसंद के स्थल पर तैनाती का अधिकार नहीं है और स्थानांतरण सेवा का हिस्सा है।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Sat, 19 Oct 2024 12:00 PM (IST)
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इलाहाबाद हाई कोर्ट शिक्षकों को लेकर टिप्‍पणी की है।- जागरण

 विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की अनुपस्थिति से प्राथमिक शिक्षा की जड़ खोखली हो रही है। ऐसे शिक्षकों के खिलाफ सक्षम अधिकारियों को सख्त कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए।

कोर्ट ने कहा, ‘किसी कर्मचारी को अपनी पसंद के स्थल पर तैनाती का अधिकार नहीं है। स्थानांतरण सेवा का हिस्सा है। अदालत को विशेष स्थिति में ही सीमित दायरे में हस्तक्षेप का अधिकार है।’ कोर्ट ने टिप्पणी के साथ स्थानांतरण आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी।

यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने सहायक अध्यापिका पूनम रानी की याचिका पर दिया है। बुलंदशहर की याची को पूर्व माध्यमिक विद्यालय, अनहेड़ा में सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्ति मिली। इसके बाद उच्च प्राथमिक विद्यालय सैमाली से संबद्ध कर दिया गया।

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आक्षेपित आदेश से याची की संबद्धता वापस ले ली गई, उसे जूनियर हाईस्कूल अनहेड़ा में तैनात कर दिया गया है। याची ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट ने कहा, यह कानून है कि स्थानांतरण सेवा का हिस्सा है। स्थानांतरण के संबंध में न्यायिक समीक्षा का दायरा सीमित है।

दुर्भावना से प्रेरित होकर या वैधानिक प्रविधानों के उल्लंघन में पारित स्थानांतरण आदेश में सीमित आधार पर हस्तक्षेप किया जा सकता है। किसी भी कर्मचारी को स्थान विशेष पर अनिश्चितकाल तक बने रहने का अधिकार नहीं है।

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कोर्ट ने कहा कि इस मामले में कोई दुर्भावना या किसी वैधानिक प्रविधान का उल्लंघन नहीं हुआ है। याची समय से पहले स्कूल छोड़ रही है और अपने काम में ईमानदार नहीं है। ग्रामीणों की तरफ से इस आशय की कई शिकायतें की गई हैं।

कोर्ट ने विभागीय जांच का आदेश देते हुए कहा कि याचिका तीन साल की देरी के बाद दायर की गई है। याची ने देरी के लिए कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण भी नहीं दिया है।

केंद्र सरकार एम्स बनाए तो राज्य करेगी पूरा सहयोग

राज्य सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में कहा है कि यदि केंद्र सरकार प्रयागराज में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) स्थापित करती है तो वह पूरा सहयोग करेगी। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार का यह पक्ष सुनने के बाद केंद्र सरकार से दो सप्ताह में अनुपालन हलफनामा मांगा है और जनहित याचिका की सुनवाई की अगली तिथि पांच नवंबर नियत की है।

न्यायमूर्ति एमके गुप्ता तथा न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने सहज सारथी फाउंडेशन व अन्य की तरफ से दाखिल जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है। केंद्र सरकार के अधिवक्ता ने हलफनामे के लिए दो सप्ताह का समय मांगा था।

याचिका पर अधिवक्ता सत्येन्द्र चंद्र त्रिपाठी ने बहस की। उन्होंने कहा कि पिछले 10 सालों में प्रदेश में केवल एक एम्स स्थापित किया जा सका है जबकि आबादी में तेजी से वृद्धि हुई है। इसलिए प्रयागराज में एम्स जैसी संस्था जरूरी है।

इससे पहले 18 सितंबर को हुई सुनवाई में कोर्ट ने मुख्य सचिव से पूछा था कि प्रयागराज में एम्स क्यों नहीं स्थापित हो सकता? तब अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता एके गोयल ने आश्वस्त किया था कि आदेश की जानकारी मुख्य सचिव को दी जाएगी।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार से प्राप्त जानकारी के हवाले से अपर सालिसिटर जनरल यह बता चुके हैं कि वित्तीय वर्ष 2014-15 में आंध्रप्रदेश, बंगाल, महाराष्ट्र व उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में चार, 2015-16 के बजट में सात नए एम्स स्थापित करने की घोषणा हुई।

वर्ष 2017-18 में गुजरात व झारखंड में दो, 2019-20 के बजट में हरियाणा में नया एम्स स्थापित किए जाने की घोषणा हुई। वर्ष 2014-15 के बजट में घोषित गोरखपुर का एम्स स्थापित कर दिया गया है। अपर सालिसिटर जनरल व भारत सरकार के अधिवक्ता संजय कुमार ओम का यह भी कहना था कि पूर्वांचल में एम्स की स्थापना के बाद प्रदेश में किसी नए एम्स की योजना केंद्र सरकार की नहीं है।

पहले कहा था -प्रयागराज में एम्स को मंजूरी संभव नहीं

अगस्त में हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की तरफ से दायर संक्षिप्त हलफनामे में कहा गया था कि प्रयागराज में एम्स को मंजूरी देना संभव नहीं है। यहां मोतीलाल नेहरू मेडिकल कालेज के अस्पताल स्वरूपरानी नेहरू हास्पिटल में कई सुविधाएं व सुपर स्पेशयलिटी ब्लॉक है। हालांकि कोर्ट ने इसे अपर्याप्त माना था। खंडपीठ ने कहा था कि यह जमीनी हकीकत के अनुरूप नहीं दिखता।

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