रेल कर्मी को 47 साल की कानूनी लड़ाई के बाद 79 साल की आयु में मिला न्याय, पूरा मामला जानकर हो जाएंगे हैरान
उत्तर प्रदेश में एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहां अगस्त 1976 में बर्खास्त रेलवे अधिकारी को 47 साल की लंबी जद्दोजहद के बाद अंततः 79 साल की आयु में न्याय मिला है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रेलवे के सीनियर रक्षक की सेवा समाप्ति आदेश को अवैध करार देते हुए रद कर दिया है और सेवा जनित सभी परिलाभ पाने का हकदार ठहराया है।
विधि संवाददाता, प्रयागराज। अगस्त 1976 में बर्खास्त रेलवे अधिकारी को 47 साल की लंबी जद्दोजहद के बाद अंततः 79 साल की आयु में न्याय मिला है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रेलवे के सीनियर रक्षक की सेवा समाप्ति आदेश को अवैध करार देते हुए रद कर दिया है और सेवा जनित सभी परिलाभ पाने का हकदार ठहराया है।
कोर्ट ने काम नहीं तो दाम नहीं के सिद्धांत के तहत कहा, याची को बकाया वेतन नहीं मिलेगा किंतु सेवा जनित अन्य परिलाभ पाने का हक है। रेलवे को इसे तीन माह में भुगतान करने का निर्देश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन ने पांचू गोपाल घोष की याचिका स्वीकार करते हुए दिया है। बिना विभागीय जांच याची को सेवा से हटा दिया गया। अपील भी खारिज कर दी। हाई कोर्ट ने सात मार्च 2010 के आदेश से बर्खास्तगी आदेश पर रोक लगाते हुए विभागीय जांच कर नये सिरे से आदेश पारित करने का निर्देश दिया।
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इसके बाद विभागीय जांच शुरू की गई। पांच आरोप लगाए गए। जांच कमेटी ने चार मई 2012 को जांच रिपोर्ट दी और कहा कि मामला 35 साल पुराना है। आरोप साबित करने के लिए दस्तावेज उपलब्ध नहीं है। आरोप सिद्ध नहीं पाया गया। किंतु यह भी कारण नहीं बताया कि आखिर साक्ष्य क्यों उपलब्ध नहीं थे।
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विभागीय अधिकारी इस रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं हुए। कहा कि 1976 की बर्खास्तगी आदेश को साक्ष्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए था और 1976 के बर्खास्तगी आदेश के आधार पर नये सिरे से पांच जून 2012को बर्खास्त कर दिया। कोर्ट ने इसे कल्पनातीत दिग्भ्रमित आदेश करार देते हुए रद कर दिया।
कहा कि हाई कोर्ट ने जांच का आदेश दिया था। जांच रिपोर्ट में पांचों आरोप सिद्ध नहीं हुए। सिद्ध करने के लिए साक्ष्य नहीं मिले। कोर्ट ने कहा , याची को 79 साल की आयु में विभाग को फिर निर्णय लेने के लिए भेजना उचित नहीं होगा। विभाग के काम के चलते यह स्थिति पैदा हुई। जांच में आरोप साबित नहीं हुआ। इसलिए बर्खास्तगी अवैध है।
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