Maha Kumbha 2025: महाकुंभ में शाही की जगह हो राजसी स्नान का प्रयोग, बैठक बुलाकर पास किया जाएगा प्रस्ताव
संतों ने महाकुंभ में उर्दू-फारसी शब्दों के प्रचलन का विरोध किया है। शाही स्नान और पेशवाई का नाम बदलने की मांग उठी है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने शाही को उर्दू शब्द बताते हुए उसकी जगह राजसी स्नान का प्रयोग करने पर जोर दिया है। अखाड़ा परिषद अध्यक्ष (अध्यक्ष मनसा देवी) श्रीमहंत रवींद्र पुरी ने शाही स्नान व पेशवाई का प्रयोग भी बंद करने की मांग की है।
जागरण संवाददता, प्रयागराज। उज्जैन (मध्य प्रदेश) में महाकाल की शाही सवारी का नाम राजसी सवारी किए जाने के बाद अब महाकुंभ में भी उर्दू-फारसी शब्दों के प्रचलन का विरोध संतों ने किया है। शाही स्नान व पेशवाई का नाम बदलने की मांग उठाई है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने शाही को उर्दू शब्द बताते हुए उसकी जगह राजसी स्नान का प्रयोग करने पर जोर दिया है।
इसके अलावा अमृत स्नान, दिव्य स्नान व देवत्व स्नान में से किसी एक नाम पर विचार किया जा सकता है। इसी प्रकार फारसी शब्द पेशवाई की जगह छावनी प्रवेश शब्द का प्रयोग किया जाएगा। इसको लेकर अखाड़ा परिषद की प्रयागराज में बैठक बुलाई जाएगी। सभी 13 अखाड़ों की सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करके उसे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को भेजकर सरकारी अभिलेखों में संशोधित शब्दों का प्रयोग करने की मांग की जाएगी।
कुंभ-महाकुंभ मेला के वैभव अखाड़े होते हैं। अखाड़ों के संतों के स्नान को शाही स्नान और अखाड़े के आश्रम से मेला क्षेत्र में जाने को पेशवाई बोला जाता है। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। महाकाल की सवारी में शाही शब्द हटाकर राजसी करने के मप्र सरकार के निर्णय का समर्थन करते हुए अखाड़ा परिषद अध्यक्ष (अध्यक्ष मनसा देवी) श्रीमहंत रवींद्र पुरी ने शाही स्नान व पेशवाई का प्रयोग भी बंद करने की मांग की है।
इसे भी पढ़ें- गोरखपुर में ग्राहक बनकर पहुंचे 'बंटी-बबली', नकली रख असली जेवर लेकर हुए फरारउनका कहना है, हमारी भाषा संस्कृत और हिंदी है। गुलामी के दौर में उर्दू-फारसी भाषाओं का प्रचलन अधिक था। उसका प्रभाव अखाड़ों की परंपरा पर भी पड़ गया था। अब उसे समाप्त करना होगा। शाही व पेशवाई शब्द का प्रयोग बंद करने पर विचार चल रहा है। अंतिम निर्णय अखाड़ा परिषद की बैठक में आपसी सहमति से लिया जाएगा।
हमारी परंपरा को नष्ट करना चाहते थे मुगल
वासुदेवानंद श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के वरिष्ठ सदस्य जगदगुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती कहते हैं कि मुगलों ने सनातन धर्म की संस्कृति व परंपरा को नष्ट करने का हर संभव प्रयत्न किया था। वह हर चीज का इस्लामीकरण करना चाहते थे। हमारी परंपराओं में उसी कारण उर्दू शब्द का प्रयोग होने लगा। अब उसे बदलने की जरूरत है। यह धर्म व राष्ट्रहित में है।
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